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  लेख  व्यापार गोष्ठी: अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग के हित में है?
लेख

व्यापार गोष्ठी: अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग के हित में है?

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —July 29, 2008 12:01 AM IST0
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विवादों से रास्ता नहीं निकलता…
गुलाबचंद वात्सल्य, कवि, लेखक एवं पत्रकार, विकास ऑफसेट प्रिन्टर्स, बुधवारी बाजार, छिन्दवाड़ा, मप्र


विवादों से कभी, उन्नति का रास्ता नहीं निकलता है
समस्याएं बड़ी होती हैं और दिल भी जलता है
आपस में मिल-बैठ के, घर में ही इसे ढूंढिए
समस्याओं की तह में ही, समाधान मिलता है।
विवादों का रास्ता फिसलन-भरा ही होता है
इस राह पर जो भी गया, वह तो बहुत फिसलता है
जिसने पहचानी है, कांटों की चुभन जीवन में
फूल सुंगध भरा, ‘वात्सल्य’ उसी का खिलता है।
हम स्वयं अपने प्रश्न हैं, स्वयं उत्तर के निधान
हम स्वयं अपनी समस्याएं, स्वयं उनके समाधान
ढूंढिए अपने बनाए, तूफान में अपनी कश्ती
स्वयं हम अपने अंधेरे, स्वयं अपने ही विहान

एकता में बहुत ताकत होती है
ओ. पी. मालवीय, भोपाल

अंबानी भाइयों के बीच सुलह से उद्योग जगत को नई रोशनी मिलेगी। उन दोनों भाइयों को चाहिए कि आपस में मिल-बैठकर अपने गिले-शिकवे दूर करें, ताकि कोई तीसरा इसका फायदा न उठा सके। उन्हें यह मान लेना चाहिए कि एकता में बहुत ताकत होती है।

एकता में बल है
मनोज कुमार ‘बजेवा’, शोधार्थी, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार

आपसी सुलह, समझौता और सहयोग भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है। अंबानी बंधुओं की सुलह न केवल उद्योग जगत बल्कि स्वयं उनके और राष्ट्र हित में भी है। क्योंकि अंबानी बंधुओं का जो कद वैश्विक धरातल पर है, उससे काफी लोगों का जीवन प्रभावित होता है। अंबानी बंधुओं को ‘एक किसान’ कहानी से शिक्षा लेनी चाहिए जो उन्होंने शायद पहली या दूसरी कक्षा में पढ़ी होगी।

जिसमें बीमार किसान अपने बच्चों को लड़ते-झगड़ते देखकर सदा चिन्तित रहता था कि उसकी मृत्यु के बाद उनका क्या होगा, तो उसे एक योजना सूझी और अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और एक-एक लकड़ी लाने को कहा और फिर उन्हें तोड़ने को कहा, तो एक-एक लकड़ी सभी ने आसानी से तोड़ दी। फिर किसान ने चारों लकड़ियों को उनसे इकठ्ठा तोड़ने को कहा, तो उसे तोड़ने में चारों असमर्थ थे।

तब किसान ने कहा कि ‘एकता में बल है।’ अकेली लकड़ी को तोड़ना आसान है लेकिन उनके गठ्ठे  को तोड़ना मुश्किल है। यदि तुम भी एक लकड़ी के गठ्ठे की तरह मिलजुल कर रहोगे  तो कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। अत: अंबानी बंधुओं को एक किसान की कहानी को सच दिल से आत्मसात कर अहम रहित होकर स्वस्थ प्रतिस्पध्र्दा से एकजुट होकर काम करना चाहिए। इसी में सभी का कल्याण निहित है।

सुलह से वैश्विक स्तर पर छवि सुधरेगी
दीपेंद्र सिंह मनराल, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, लखनऊ

इसमें कोई शक नहीं कि अंबानी भाइयों में सुलह उद्योग जगत के लिए काफी हितकारी होगा। मुकेश और अनिल अंबानी दोनों ही बड़े उद्यमी हैं। वे अपनी ऊर्जा और पैसा दोनों को नए उद्यम में निवेश करेंगे। उन दोनों भाइयों और समूह के बीच सौहार्दपूर्ण सुलह से न केवल उनके शेयरधारकों को फायदा होगा बल्कि वैश्विक स्तर पर देश की छवि को बढ़ाने में भी काफी मदद मिलेगी।

कोई फर्क नहीं पड़ता
कपिल अग्रवाल, पूर्व वरिष्ठ उप संपादक , दैनिक जागरण, 1915 थापर नगर, मेरठ

रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने सत्ता संभालते ही सबसे पहले देश के सबसे बड़े उद्यमी और तेल कंपनी के मालिक को गिरफ्तार कर उसके साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। उस समय यह कहा जाता था कि रूस को तथा वहां के उद्योग जगत को वही चला रहा है। उसके साम्राज्य के छिन्न-भिन्न होने के बाद भी वहां उद्योगों, सरकार और जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि खुशी की लहर दौड़ पड़ी। देश ने और तरक्की की। इसी तरह हमारे देश में भी अंबानी बंधुओं के झगड़े का आम जनता को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है।

उद्योग जगत के लिए हितकारी
अमित कुमार सिंह, जयपुरवा, गांधी नगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश

अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग जगत के लिए हितकारी है। यह औद्योगिक घराना अपनी अलग पहचान रखता है, लोगों को इनसे बड़ी अपेक्षाएं हैं। उद्योग जगत में इनकी बड़ी हिस्सेदारी है। इनके आपसी विवाद से अस्थिरता की स्थिति का उत्पन्न होना निहायत दुर्भाग्यपूर्ण है। जितनी भी जल्दी हो सके इनके बीच सुलह हो जानी चाहिए। इससे न केवल इनका उद्योग समृध्द होगा बल्कि अनिश्चितता का दौर भी समाप्त होगा जो उद्योग जगत के लिए हितकारी है।

सुलह उद्योग के हित में
स्नेहा असाटी, सिल्वर 1 सीडीए, रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस को. लिमिटेड, छिंदवाड़ा, मप्र

सच ही कहा गया है ‘बंद मुट्ठी लाख की और खुल गई तो खाक की’। अभी दोनों भाई अपना दिमाग, अपनी शारीरिक ऊर्जा और अपना पैसा अलग-अलग उपयोग कर रहे हैं। जब दोनों में सुलह हो जाएगी तो दोनों की ऊर्जा, दिमाग और पैसा एक साथ लगेगा तो निश्चित ही उद्योग जगत को फायदा होगा। क्योंकि दोनों का अभी कुछ न कुछ वक्त और पैसा एक दूसरे की टांग खींचने में लगता है। चाहे वो मामला एमटीएन से बातचीत का हो। अगर वह पैसा और समय बचेगा तो दोनों का विकास और भारत का विकास डबल तेजी से होगा।

‘हवेली की उम्र साठ साल’
हर्ष वर्ध्दन कुमार, डी-5556 गांधी विहार, मुखर्जी नगर, नई दिल्ली

नि:संदेह अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग जगत के हित में है। इससे न केवल 12 करोड़ सब्सक्राइबरों के आधार और 70 लाख डॉलर टर्न ओवर वाली एक विराट भारतीय मल्टीनेशनल का उदय होता अपितु यह कंपनी विश्व मानचित्र के 23 देशों पर भारतीय उद्यमिता का परचम लहराती।

लेकिन एक मेगाडील की रोशनी में सराबोर होने का जो गौरव रतन टाटा या मित्तल को कोरस या आर्सेलर के जरिए मिला वह अंबानी को नसीब नहीं हो सकी। बड़े भाई मुकेश की एक कानूनी दलील ने छोटे भाई के महत्वाकांक्षी सौदे पर फुलस्टॉप लगा दिया और पुराने जुमले ‘हवेली की उम्र साठ साल’ को चरितार्थ करता दिखा। अंबानी बंधुओं की रार देश की एक बड़ी दूरसंचार संधि को ले डूबी, जो कॉरपोरेट जगत के लिए अशुभ संकेत हैं। ऐसे में जरूरी है कि दोनों भाइयों में किसी तरह की तनातनी न हो और देश हित में वे आपसी सुलह कर लें।

नजदीक आने से नई बहार आएगी
दीप भटकल, निदेशक, दीप प्लास्टिक इंडस्ट्रीज, सांताक्रूज, मुंबई

इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसी के घर का झगड़ा खत्म होना एक शुभ संकेत होता है। इसी तर्ज पर अंबानी बंधुओं के बीच हुई सुलह भी उद्योग जगत के लिए वाकई में शुभसंकेत ही साबित होगी। इसके अलावा उम्मीद है कि दोनों भाइयों के नजदीक आने से उद्योग जगत में नयी बहार आएगी और इनके स्वामित्व वाली कंपनियों में निर्मित उत्पादों का बाजार भाव भी उछलेगा। इसका सीधे तौर पर लाभ छोटे उद्योग के कारोबारियों को भी मिलेगा। ऐसे में साफ जाहिर होता है कि अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग जगत के हित में है।

सुलह से ही होगा सपना सच
विकास कासट, 373, विवेक विहार, सोडाला, जयपुर

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा 200 करोड़ आंखों में जगाया सुनहरा सपना ‘भारत 2020 तक विकसित देशों के समकक्ष खड़ा हो’ पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र का सहयोग भी जरूरी है। ऐसे में निजी क्षेत्र के शीर्षस्थ उद्योगपतियों में टकराव उद्योगों के साथ देश के सुनहरे भविष्य के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा। मामला तब पेचीदा हो जाता है जब टकराव दो सगे भाइयों में हो।

पिछले तीन वर्षों से दोनों भाइयों में हुए टकराव को बिना उनसे मिले सुलह कराई जा सकती है ऐसा जादू नहीं हो सकता। लेकिन इसके लिए कुछ अनोखा उपाय तो करना ही होगा। अत: अंबानी बंधुओं में सुलह उद्योग जगत के साथ माननीय कलाम साहब द्वारा निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति में काफी सहायक होगी।

आपसी लड़ाई में तीसरे का फायदा
डॉ. सतीश कुमार शुक्ल, भूतपूर्व आईईएस अधिकारी, कॉटन एक्सचेंज बिल्डिंग, मुंबई

इस विषय में दो राय हो ही नहीं सकती है कि अंबानी बंधुओं में सुलह उद्योग के लिए हितकारी है। अंबानी बंधुओं की कलह बाहरी व्यक्तियों को ही फायदा पहुंचाएगी। भले ही दोनों के दृष्टिकोण अपनी-अपनी जगह सही हों परंतु उनकी आपसी लड़ाई निवेशकों पर भारी पड़ेगी। पिछले पांच सालों में बड़े भाई अंबानी को 15.4 फीसदी की कारोबारी बढ़त प्राप्त हुई, यह भारतीय बेंचमार्क के ऊपर है।

दोनों में उलझन हानि के संकेत
राजेंद्र प्रसाद मधुबनी, व्याख्याता मनोविज्ञान, फ्रेंड्स कॉलोनी, मधुबनी, बिहार

देश समाज हो या परिवार सभी में किसी स्थान प्राप्त व्यक्ति का विशेष महत्व होता है। अंबानी बंधु जब बंटवारे के लिए कभी लड़ने लगे थे तो भारतीय शेयर बाजार तक को प्रभावित होता देखा गया था। जब दोनों का विवाद आसानी से सुलझ कर सहयोगात्मक रहा तो चारों तरफ दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की होने लगी। आज फिर दोनों चौराहे पर उलझने को तैयार हैं। यह विनाश तो नहीं लेकिन आशंका व हानि होने का संकेत है।

क्यों नहीं ये दोनों पहले की तरह ईमानदारीपूर्वक अपने पूर्वजों की साख व सम्मान को ध्यान में रखकर छह-नौ कर लें तो भारतीय परंपरा की वह मिसाल भी बरकरार रह जाएगी कि बड़ा भाई-छोटे को इतना प्यार करता है कि राजपाट तक छोड़ दे और छोटा बड़े का इतना सम्मान करता है कि उनके चरणों में स्वर्ग का दर्शन पाता है।

सुलह से होगा कंपनियों को फायदा
राजीव खुराना, दक्षिणी दिल्ली

अंबानी बंधुओं के एक होने से न केवल रिलांयस के इन महा सूरमाओं के बीच भी आपसी पैठ बढेग़ी वरन कंपनियों को भी कई परियोजनाओं में एक-दूसरे का सहयोग मिल जाएगा। साथ में काम करने से रिलांयस के लिए कई विश्वस्तरीय कंपनियों के साथ क रार करने में भी आसानी होगी और दूसरी ओर कुछ कंपनियों का अधिग्रहण भी आसानी से किया जा सकेगा। ऐसा करने से देश के बुनियादी विकास को राह मिलेगी।

दोनों भाइयों में तकरार ठीक नहीं
विजय सिन्हा, मुनीरका , दिल्ली

अंबानी बंधु हों या इनका परिवार, सभी उद्योग जगत के सूरमा है। उन्होंने न केवल देश के बुनियादी विकास को थाम रखा है बल्कि देश के लिए एक सुनहरे भविष्य को भी तय किया है। इन दोनों में कारोबारी तकरार का होना कहीं से भी भारतीय अर्थव्यस्था के लिए ठीक नहीं है। इस समय जब ये देश के कारोबारियों के हीरो बन चुके है। उन्हें अपने आपसी गिले-शिकवे भूल जाना चाहिए। और एक होकर देश हित में काम करना चाहिए।

प्रेम से बनेगी बात
मनोज मोदी, हरिद्वार

जब भी प्रतिस्पर्धा की आती है लोग मिसाल देते है कि प्यार और जंग में सब जायज होता है। कुछ लोगों ने इसमें राजनीति और व्यापार को भी जोड़ लिया पर हमारा सोचना हे कि प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए भी हर व्यापारी को अपनी सीमाएं नहीं भूलनी चाहिए। एक-दूसरे से आगे बढ़ने और संपति के मामले में होड़ लगाकर रखते है। और इस तरह के मुद्दों का बार-बार देश के सामने चर्चा का विषय बनना शर्मनाक है।

पुरस्कृत पत्र

मील का पत्थर साबित होगी सुलह
राजेश कुमार गुप्ता
मालिक, श्री हेल्दी होम केयर मार्केटिंग कं., वाराणसी

इस मुद्दे पर मेरे विचार से सुलह उद्योग जगत के लिए बहुत ही हितकारी और भारत को विकासशील देश से विकसित देश की तरफ ले जाने में मील का पत्थर साबित होगी। आज हमारे देश में सबसे अधिक भुखमरी और बेरोजगारी मुंह बाए खड़ी है। अंबानी बंधुओं की सुलह से धीरू भाई अंबानी का सपना भी पूरा होगा।

यदि ये समूह आपस में समझौता कर लेते हैं, तो भारत के हर प्रदेश में उनकी ओर से अधिक से अधिक कल-कारखाने लगेंगे, जिससे बेरोजगारी में कमी आएगी। आज गांव के लोग शहर की तरफ भाग रहे हैं। अगर उनको गांव में ही रोजगार मिलेगा तो स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी द्वारा दिए गए नारे ‘जय जवान जय किसान’ का सपना पूरा होगा। आज अपने आप को कृषि प्रधान देश तो हम कहते हैं लेकिन आज भी भारत के बाहर से अनाज आयात करना पड़ रहा है।

सर्वश्रेष्ठ पत्र

झगड़े से उद्योग प्रभावित होगा
कृष्ण कुमार उपाध्याय
संस्थापक व अध्यक्ष, निवेशक कल्याण समिति, उत्तर प्रदेश

देश की जीडीपी में अंबानी भाइयों की पांच फीसदी हिस्सेदारी है। इनकी लड़ाई से उद्योग जगत प्रभावित होगा और  देश के सबसे बड़े और विश्वसनीय औद्योगिक घराने की साख भी प्रभावित होगी। यह किसी से छिपा नहीं है कि दो की लड़ाई में फायदा तीसरे का होता है। उनकी आपसी लड़ाई से भारतीय उद्योग जगत ही नहीं बल्कि विश्व का उद्योग जगत भी प्रभावित होगा। दोनों भाइयों में जो विवाद सामने आए हैं वे किसी भी प्रतिष्ठित व विश्व स्तर पर अलग पहचान रखने वाले औद्योगिक घराने को शोभा नहीं देते।

मिल जाएं तो कोई पछाड़ नहीं सकता
रेडियो जॉकी, लखनऊ

अंबानी समूह देश का जाना-माना उद्योग घराना है। अगर अनिल और मुकेश साथ रहें तो देश-विदेश के किसी भी बड़े उद्योग समूह को पछाड़ सकेंगे। धीरू भाई अंबानी की विरासत के इन दो वारिसों की जंग को जनता कतई पसंद नहीं कर रही है। भाई आपस में मिलें, साथ व्यापार करें और अगर साथ नहीं रहना हो तो कम से कम एक दूसरे के कामों में अड़ंगे लगाना बंद कर दें। भारत के उद्योग जगत के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता कि अंबानी समूह एक छतरी के नीचे आ जाएं और मिलकर देश का विकास करें।

सुलह का नतीजा फिफ्टी-फिफ्टी
संतोष सांगले
शेयर बाजार निवेशक, कांदिवली, मुंबई

अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग जगत के लिहाज से सिक्कों के दो पहलुओं की भांति है। एक ओर तो सुलह मात्र एमटीएन सौदे पर हुई है, तो दूसरी ओर कई सौदों की बोलियों पर दोनों भाइयों के स्वामित्व वाली कंपनियां आमने-सामने हैं। दोनों भाइयों में कारोबार के बंटवारे के दौरान आपसी समझौता हुआ था कि दोनों एक-दूसरे के कारोबार में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। हालांकि ऐसी कोई तस्वीर नहीं झलक रही है, तो जाहिर है कि अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग जगत के लिहाज से 50-50 के अनुपात में है।

राजनीति ने किया समूह को चौपट
राकेश सिंह
प्रवक्ता, भाजपा युवा मोर्चा, लखनऊ

राजनीतिक हितों ने देश के इस सबसे बड़े कारोबारी समूह को चौपट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। अंबानी (धीरू भाई अंबानी) अपनी मेहनत के दम पर और भविष्य के सही आकलन के चलते आगे बढ़े और देश में टाटा, बिड़ला से इतर एक नई औद्योगिक सत्ता स्थापित की। नेताओं ने श्री धीरु भाई अंबानी की मृत्यु के बाद राजनीतिक दल दोनों के बीच में आ गए और स्वार्थ साधने लगे। इन दलों न केवल दोनों भाइयों में फूट डलवाई बल्कि राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए देश को बांटने का काम किया।

बकौल विश्लेषक

विवाद किसी भी तरह का हो विकास के लिए अच्छा नहीं है
डी. एस. वर्मा
कार्यकारी निदेशक, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, लखनऊ

विवाद किसी भी तरह का हो, विकास के लिए अच्छा नहीं है। अंबानी बंधुओं के बीच विवाद जितना जल्दी सुलझ जाए अच्छा रहेगा। यहां एक बात हमेशा याद करने लायक है कि एकता में ही बल होता है। दोनों एक साथ हो जाएं तो उद्योग जगत को बहुत लाभ होगा। वैसे अलग-अलग भी दोनों भाई अच्छा काम कर रहे हैं। अलग होने के बाद से भी दोनों का कारोबार लगातार बढ़ा है। वैसे उद्योग जगत में दोनों के शुभचिंतक बैठे हैं और वे इस दिशा में कुछ मदद कर सकते है। मेरे हिसाब से उद्योग जगत के कुछ बड़े लोग इस मामले में पहल कर सकते हैं, पर राजनीतिक लोगों को इस विवाद में नही पड़ना चाहिए।

दरअसल राजनीति ने इस मामले को बेजा तूल दिया है। अगर नेता इस विवाद में न पड़ते तो शायद अब तक सब कुछ हल हो चुका होता। विवाद की जड़ में नहीं जाना चाहूंगा क्योंकि यह काफी पेचीदा मसला है। इतना जरुर है कि जिस तरह से विवाद को सार्वजनिक किया गया है वह शर्मनाक रहा है। इस विवाद में राजनीतिक पार्टियों का पड़ना बेहद गलत है।

अब भी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है। भाई साथ में बैठकर मामले को सुलझा लें, वही उद्योग जगत के लिए सही होगा। इस समय यह देश की जरुरत है कि समूचा उद्योग जगत एकजुट रहे और इस नाजुक मौके पर विकास के लिए यह आवश्यक है। अंत में यही कहना चाहूंगा कि अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग जगत के हित में है। इसके लिए परिवार के बड़े लोगों को इसकी पहल करनी होगी। 
बातचीत: सिध्दार्थ कलहंस

दो भाइयों की लड़ाई से दूर ही रहें राजनीतिक दल
चंद्र कुमार छाबड़ा
प्रवक्ता, उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापर मंडल

अंबानी बंधुओं की सुलह देश के हित में है। दोनों मिलकर देश का विकास करें तो यह और भी अच्छा है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि राजनीतिक दल इसमें कूद पड़े। दोनों भाइयों के बीच में राजनीति दल बेकार में कूद पड़े। इन दलों के आने से  राजनीति का एक बेहद शर्मनाक पहलू सबके सामने खुलकर आ गया कि राजनीतिक दल कॉरपोरेट के दम पर चल रहे हैं। अभी तक यह बात ढकी-छुपी थी कि उद्योग घरानों के दम पर राजनीतिक दल चलते हैं। भारतीय राजनीति का एक घिनौना सच आज सभी के सामने आ गया है। संसद में जो कुछ हुआ उसने भी इस विवाद को औरों के सामने ला दिया है। 

जहां तक सुलह की बात है तो यह अब संभव नहीं है। बात बहुत आगे तक जा पहुंची है। एक ही बात अब हो सकती है और वह है कि बड़ों का बीच में पड़ना। दरअसल जब भी इस तरह के आपसी विवाद होते हैं तो बहुत कुछ सामने आ जाता है। कीचड़ उछलना न तो अंबानी परिवार के हित में है और न ही कारोबार के लिए।  इस परिवार के विवाद अब बंद होना ही चाहिए। सरकार को इस पारिवारिक विवाद से दूर ही रहना चाहिए। सरकार इस मामले से खुद को अलग रखे और दोनों भाइयों को आपस में ही यह मामला सुलझा लेने का मौका दे।

सरकार के हस्तक्षेप से मामला और बिगड़ेगा, सुलझेगा नहीं। एक बात यह भी होनी चाहिए कि सरकार को किसी भी पक्ष के लिए कोई फैसला नहीं करना चाहिए। देश के सामने कुछ नितांत व्यक्तिगत किस्म की बातें उजागर हो गई हैं। दोनों भाइयों को एक साथ बैठकर विवाद को सुलझा लेना चाहिए। अभी दोनों की मां और बहनें हैं उन्हें भी बीच में पड़कर विवाद को सुलझाने में मदद करनी चाहिए।
बातचीत: सिध्दार्थ कलहंस

…और यह है अगला मुद्दा

सप्ताह के ज्वलंत विषय, जो कारोबारी और कारोबार पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे ही विषयों पर हर सोमवार को हम प्रकाशित करते हैं व्यापार गोष्ठी नाम का विशेष पृष्ठ। इसमें आपके विचारों को आपके चित्र के साथ प्रकाशित किया जाता है। साथ ही, होती है दो विशेषज्ञों की राय। इस बार का विषय है मानसून पर किसान की निर्भरता कृषि के लिए घातक है ?

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Economic Survey 2023: वैश्विक वृद्धि ने रफ्तार नहीं पकड़ी तो देश की निर्यात वृद्धि सपाट रहेगी

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