मुल्क के अरबपतियों के खजाने मे तगड़ी सेंध लगाने के बाद अब मंदी अब देश के गरीब आदमी को भी बख्शती नजर नहीं आ रही है।
गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के घर में खाना पकाने के काम में आने वाले केरोसिन स्टोव की बिक्री में काफी कमी आई है। पिछले एक साल में स्टोव की बिक्री में 20 से 25 फीसदी की गिरावट आई है। इसकी वजह केरोसिन मिलने में आ रही दिक्कत और वित्तीय संकट को बताया जा रहा है।
इससे पहले स्टोर उत्पादकों को कच्चे माल की कीमतों में हुए भारी इजाफे ने परेशान कर रखा था। इस इंडस्ट्री के अनुमानों के मुताबिक पिछले पांच साल में बिक्री में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। राजकोट में तकरीबन 25 से ज्यादा छोटी बडी स्टोव उत्पादक इकाइयां थीं। फिलहाल यह संख्या आधी रह गई है।
इन कारोबारियों ने इंजीनियरिंग और ऑटोमोबाइल जैसे सेक्टरों का रुख कर लिया है। अनुमान है कि स्टोव उत्पादन का कारोबार 600 से 700 करोड़ रुपये तक का है और इसका भी 50 फीसदी कारोबार राजकोट में ही केंद्रित है।
स्टोव की जानी मानी ब्रांड अशोक ग्रुप इंडस्ट्रीज के हरिकिशोर बरछा कहते हैं, ‘राजकोट देश में स्टोव उत्पादन के क्षेत्र में अव्वल रहा है। पांच साल पहले महीने भर में ढाई लाख स्टोव बनाये जाते थे लेकिन मौजूदा वक्त में यह आंकड़ा घटकर सवा लाख से डेढ़ लाख स्टोव तक पहुंच गया है।
दरअसल, केरोसिन की बिक्री और वितरण सरकार के हाथों में होने से इसकी अनुपलब्धता होती जा रही है और यह महंगा भी मिल रहा है। इसके चलते स्टोव की बिक्री में कमी आई है।’
इंडस्ट्री के सामने सबसे बड़ी मुश्किल कच्चे माल की कीमतों में इजाफे की वजह से आ रही है। लोहे और स्टील की कीमतों में तेजी के चलते लागत में कम से कम 15 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके अलावा मांग में कमी की वजह से भी इन इकाइयों के सामने समस्या आ गई है।
भारत में जितने स्टोवों का उत्पादन होता है उसका 10 फीसदी तो निर्यात कर दिया जाता है। निर्यात खास तौर से पूर्वी अफ्रीका के देशों को किया जाता है और अब इस मांग में भी कमी आती जा रही है। हालांकि चीन की तुलना में भारत काफी कम निर्यात करता है और स्टोव निर्यात के लिहाज से वैश्विक बाजार में चीन का ही दबदबा है।
सरल स्टोव के मालिक सरल चोटाई कहते हैं, ‘लोग अब इलेक्ट्रिक और गैस स्टोव का इस्तेमाल करने लगे हैं। यहां तक कि हॉस्पिटल और लैबोरेट्रियों में भी अब केरोसिन स्टोव का कम इस्तेमाल होने लगा है। हालांकि, हाल ही में कच्चे माल की कीमतों में कमी आई है लेकिन सच यही है इंडस्ट्री इस वक्त बहुत बुरे दौर से गुजर रही है।’
कंपनी ने अपने उत्पादन में कमी की है। छह महीने पहले जहां 400 स्टोव रोजाना बनते थे अब 300 ही बन रहे हैं।