पूरी दुनिया में फैली आर्थिक मंदी, विज्ञापन एजेंसियों और मीडिया में विज्ञापन देने वाली कंपनियों के लिए परेशानी का सबब बन चुकी है।
मीडिया के सभी माध्यमों में विज्ञापनों के लिए पिछली तिमाही का वक्त बहुत बुरा रहा है और इसमें 10-20 प्रतिशत की कमी आई है। कुछ लोगों को संदेह है कि वैश्विक संकट के इस दौर में सुधार नहीं होगा तो अब से एक महीने बाद विज्ञापनों की कीमतों के लिए एक बार फिर से मोलभाव किया जाएगा।
ऐसे में टेलीविजन चैनलों पर विज्ञापन की दरों में भी 10-15 प्रतिशत की कमी का अनुमान लगाया जा रहा है। इंडिया मीडिया एक्सचेंज के स्ट्रैटजिक इनवेस्टमेंट की देश में प्रमुख मोना जैन का कहना है, ‘दरअसल अब विज्ञापनों की मांग बहुत ज्यादा हो गई है और कंपनियां बहुत कम विज्ञापन दे रही हैं। इससे मांग और आपूर्ति के बीच एक बड़ी खाई जैसी स्थिति बन गई है। वैसे आपको विज्ञापनों की दरों में बहुत कमी नजर नहीं आएगी लेकिन ग्राहकों से मोलभाव करने जैसी स्थिति पैदा हो गई है। अब विज्ञापनदाता बहुत ज्यादा मोलभाव करने पर तुले हुए हैं।’
अब टीवी विज्ञापनों की कमी को झेल रहे हैं इसीलिए चैनल अब बहुत सारे छूट और लुभावने ऑफर दे रहे हैं। मीडिया मार्केट में भी विज्ञापनों के लिए कई माध्यमों का विकल्प मौजूद है। इसकी वजह से टीवी को अपने विज्ञापनों की दरों में नरमी बरतने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जैन के मुताबिक ब्रांड को बनाने वाले विज्ञापनों पर मंदी का बहुत असर पड़ा है।
अगर बाजार में स्थायित्व नहीं आएगा तो इसके भविष्य के लिए कई सवालिया निशान खड़े हो सकते हैं। दूसरी ओर त्योहार का मौसम होने की वजह से स्कीम आधारित विज्ञापनों का प्रदर्शन बढ़िया रहा है। जैन का मानना है कि जिन विज्ञापनदाताओं ने दीपावली तक अपना स्टॉक खत्म नहीं किया होगा, वे अपनी स्कीम को दिसंबर तक बढ़ा भी सकते हैं।
ग्लोबल मीडिया प्लानिंग कंपनी माइंडशेयर के प्रबंध निदेशक गौतमन रागोतमन का कहना है, ‘विज्ञापनों के लिए कई समझौते सालाना आधार पर ही होते हैं, ऐसे में दुबारा मोलभाव जैसी कोई बात नहीं हो पाती है। इस वजह से विज्ञापनदाता बहुत सक्रिय तौर पर मोलभाव करने की स्थिति में नहीं होते। हालांकि प्रिंट मीडिया बहुत ज्यादा दबाव में है।
यहां ग्राहक दर ग्राहक समझौते और मोलभाव के लिए बातचीत होने लगी है।’ बेट्स (ओओएच) के कंट्री हेड प्रवीण वडेरा का कहना है, ‘हमलोग अभी देखने और इंतजार करने की नीति पर काम कर रहे हैं। अभी फिलहाल जितने भी विज्ञापन देखने को मिल रहे हैं, वह त्योहारी मौके की वजह से ही हैं। अभी तो कोई यह नहीं बता सकता है कि इस त्योहारी मौके के बीतने के बाद किस तरह की स्थिति बनने वाली है। हमारे ग्राहक अपनी योजनाओं के बारे में अभी बात तक नहीं कर रहे हैं।’
रीडिफ्यूजन वाई ऐंड आर के चीफ क्रिएटिव डायरेक्टर रामानुज शास्त्री इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं, ‘इस वक्त बाजार के हालात बहुत नाजुक हैं और लोग जोखिम उठा कर पैसे खर्च नहीं करना चाहते। बाजार में अस्थायित्व की स्थिति बनी हुई है और अर्थव्यवस्था में मंदी है। इसी वजह से कंपनियों में मार्केटिंग से जुड़े लोग परेशान होकर प्रत्यक्ष विज्ञापनों का सहारा लेने लगे हैं। अब क्रिएटिव मार्केटिंग के बजाय प्रमोशनल ऑफर का सहारा लिया जा रहा है।’
हालांकि उनका कहना है कि कम बजट में भी बेहतरीन विज्ञापन बनाए जा सकते हैं। उनके मुताबिक कुछ बेहतरीन विज्ञापन कम बजट में ही बने हैं। मसलन दो मछुआरों वाला फेवीक्विक का विज्ञापन इसकी सबसे बेहतरीन मिसाल है।
परसेप्ट के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट अमिताभ मित्रा का कहना है, ‘बाजार और अर्थव्यवस्था में आए इस संकट का असर निश्चित रूप से विज्ञापन इंडस्ट्री की विकास दर पर इस साल के साथ ही अगले साल भी पड़ने वाला है। कंपनियां अपने खर्चो में कटौती करने की बात सोचेंगी तो सबसे पहले मार्केटिंग और विज्ञापनों के खर्चों में ही कटौती होगी।’
मुद्रा मैक्स के प्रेसीडेंट और प्रमुख चंद्रदीप मित्रा का कहना है, ‘विज्ञापनदाता अब कम बजट में ही फायदा मिलने वाला काम करना चाहते हैं। इसकी वजह से टीवी और प्रिंट के विज्ञापनों पर इसका असर सबसे ज्यादा दिख रहा है। केवल बडे और मजबूत अखबार ही नई दरों पर विज्ञापन लेने की स्थिति में हैं।
हालांकि एफएमसीजी, डीटीएच और टेलीकॉम के बजट में कोई कमी नजर नहीं आई है लेकिन रियलिटी और बीएफएसआई सेक्टर ने अपने बजट में 30 से 40 प्रतिशत की कटौती की है।’ निश्चित तौर पर इस मंदी का असर विज्ञापन उद्योग पर इस साल तो रहेगा ही अगले साल भी ऐसा ही रहने की उम्मीद है।