इस वर्ष के आरंभ में वर्ष 2021 के आम बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि वर्ष के दौरान सीमा शुल्क में मिलने वाली सैकड़ों रियायतों की समीक्षा की जाएगी। सीतारमण ने कहा था कि अक्टूबर तक सीमा शुल्क का एक नया ढांचा तैयार किया जाएगा। यह बजट के दौरान सीमा शुल्क में किए गए बदलाव के अतिरिक्त था। सीतारमण ने उसे उचित ठहराते हुए कहा था कि ऐसा मोबाइल फोन विनिर्माण और वाहन कलपुर्जा जैसे चुनिंदा क्षेत्रों की मदद के लिए किया गया। अब खबर है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 523 सीमा शुल्क रियायतों की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू की है जिन्हें पांच खेपों में अधिसूचित किया गया था। इनमें से पहली फरवरी 1999 की है।
रियायतों की समीक्षा और उन्हें कर नियमों के अनुसार उन्नत बनाने में कुछ भी गलत नहीं है। बहरहाल, यह स्पष्ट नहीं है कि यह कवायद दिमाग में स्पष्ट और सुसंगत लक्ष्यों के साथ की जा रही है अथवा नहीं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि फिलहाल व्यवस्थागत कमियों को दूर करने, आयात प्रतिस्थापन और राजस्व प्राप्ति जैसे विविध लक्ष्यों को ध्यान में रखकर ऐसा किया जा रहा है। समस्या यह है कि कई लक्ष्यों के चलते नीति खराब हो सकती है। इसलिए कि उनके बीच कई अवसरों पर टकराव उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा नीति निर्माताओं को कम सक्षम हल चुनने पड़ सकते हैं। चाहे जो भी हो लेकिन आशंका यही है कि सरकार ने वृद्धि आधारित अन्य लक्ष्यों पर आयात प्रतिस्थापन तथा राजस्व निर्माण जैसे लक्ष्यों को देरी से तरजीह दी है। ऐसा प्रतीत होता है कि रियायतों पर ध्यान केंद्रित करना सरकार के ऐसे नीतिगत लक्ष्य हासिल करने संबंधी प्राथमिकताओं के कारण है। इसके बजाय समूचे सीमा शुल्क ढांचे को तर्कसंगत बनाने का व्यापक प्रयास होना चाहिए।
देश की सीमा शुल्क संबंधी जरूरतें विभिन्न शुल्क दरों के साथ जटिल बनी हुई हैं। इस समय शून्य से 150 प्रतिशत तक की 20 दरें लागू हैं। इसके परिणामस्वरूप विदेशों में कारोबार से संबद्ध भारतीय कंपनियों के काफी प्रयास प्रत्यक्ष रूप से या प्रतिस्पर्धियों के जरिये, लॉबीइंग की प्रक्रिया में लग जाते हैं। हालिया अतीत में देश के वित्त मंत्री सीमा शुल्क में बदलाव का लोभ संवरण नहीं कर सके हैं। वर्ष 2021 का बजट भी इसका अपवाद नहीं था। ऐसे बदलाव समाजवादी दौर के भारत का अवशेष हैं जब सरकार के पास कंपनियों को बनाने या बिगाडऩे का अधिकार था। सीमा शुल्क में हर नए बदलाव के साथ भारत उन पुराने अंधकारपूर्ण दिनों की ओर वापस लौट रहा है।
सीमा शुल्क समेत किसी भी कर संहिता में पारदर्शिता, सहजता और स्थिरता की आवश्यकता है। भारतीय सीमा शुल्क ढांचा इन जरूरतों को पूरा नहीं करता। बल्कि रियायतों को बिना समुचित स्पष्टीकरण दिए केवल रियायत होने के कारण समाप्त करना अस्थिरता बढ़ाने और निवेशकों को निराश करने वाला कदम होगा। कम और स्थिर शुल्क दर कंपनियों को अपने मूल्यवद्र्धन और भविष्य के मुनाफे का समुचित आकलन करने में मदद करता है। भारत के वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने के लिहाज से यह अत्यंत आवश्यक है। ऐसी वैश्विक आपूर्ति शृंखला में शामिल उत्पादों की शुल्क दरें बढऩे से देश के निर्यात पर बुरा असर होगा। वैश्विक व्यापार महामारी से उबर रहा है और ऐसे में सबसे बड़ी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना होनी चाहिए कि भारत इस संकटग्रस्त अवधि से और अधिक प्रतिस्पर्धी बनकर उभरे। इस मोड़ पर बिना योजना बनाए दरों में इजाफा करने से इस प्रयास को धक्का पहुंचेगा। सरकार रियायतें समाप्त करने के प्रयास जारी रख सकती है लेकिन उसे सीमा शुल्क ढांचे के समग्र आधुनिकीकरण और बेहतरी के प्रयास करने चाहिए।