अब तक के सबसे बड़े रकबे में फसल बुआई और अच्छी मॉनसूनी बारिश के बाद चालू खरीफ सत्र में अच्छी फसल होने की पूरी संभावना है। बल्कि इस बात के भी पूरे आसार हैं कि आने वाले रबी सत्र में भी जबरदस्त पैदावार होगी। इसकी एक प्रमुख वजह यह है कि अगस्त में खूब बारिश हुई है। सन 1988 के बाद पहली बार अगस्त में इतनी वर्षा हुई कि सारे जलाशय भर गए और भूजल भी इतना रिचार्ज हो गया कि आने वाले लंबे समय तक सिंचाई की जरूरतों की पूर्ति हो सकेगी। यही वजह है कि कृषि मंत्रालय 2020-21 में रिकॉर्ड उपज को लेकर आश्वस्त नजर आ रहा है जो पिछले वर्ष के रिकॉर्ड को अच्छे अंतर से पीछे छोड़ देगा। यदि यह अनुमान सही निकलता है (यह कीटों, बीमारियों और बाकी मौसमों पर निर्भर करेगा) तो कोरोनावायरस से जूझ रही अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र आशा की किरण बना रहेगा। माना जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक वस्तुओं और सेवाओं की मांग में सुधार से अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को भी राहत मिलने की अपेक्षा की जा सकती है। इससे भी अहम बात यह है कि खुदरा महंगाई को कम करने में यह मददगार साबित हो सकता है जो 7 फीसदी के चिंताजनक स्तर से आरबीआई के 2 से 6 फीसदी के सहज स्तर पर आ सकती है। यदि ऐसा हुआ तो केंद्रीय बैंक के पास आर्थिक सुधार को गति देने के लिए मौद्रिक नीतियों में बदलाव की अधिक गुंजाइश रहेगी।
आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो चालू खरीफ सत्र में फसल बुआई का रकबा 10.95 करोड़ हेक्टेयर के उच्चतम स्तर पर रहा। इसने 2016 के 10.75 करोड़ हेक्टेयर के पिछले रिकॉर्ड को पीछे छोड़ा। धान, प्रमुख अन्न, दाल, तिलहन, कपास और गन्ना समेत लगभग सभी प्रमुख फसलों का रकबा बढ़ा। इतना ही नहीं खरीफ की प्रमुख फसल चावल का रकबा और अधिक बढ़ सकता है क्योंकि देश के कुछ हिस्सों में अभी धान बुआई का सिलसिला चल रहा है।
महामारी से जुड़ी समस्याओं, श्रमिकों की कमी और देश के कई हिस्सों में आई बाढ़ को देखें तो यह मामूली उपलब्धि नहीं है। इसका श्रेय किसानों की दृढ़ता तथा केंद्र और राज्य शासन द्वारा उठाए गए सक्रिय कदमों को जाता है जिन्होंने कृषि क्षेत्र को कोविड-19 महामारी के असर से बचाने का हरसंभव प्रयास किया।
इसके अलावा मॉनसून भी इस वर्ष मेहरबान रहा। देश भर में अब तक कुल सामान्य बारिश से 7.5 फीसदी अधिक वर्षा हो चुकी है। जून और अगस्त महीनों में जहां सामान्य से अधिक बारिश हुई, वहीं जुलाई में थोड़ी कमी आई। यह बात किसानों के लिए लाभदायक साबित हुई क्योंकि उन्हें बुआई के लिए जमीन तैयार करने का अवसर मिल गया। अच्छे मॉनसून के कारण देश के अधिकांश जलाशय भी भर गए। केंद्रीय जल आयोग के अधीन आने वाले 123 प्रमुख जलाशयों में पानी, लंबी अवधि के औसत से 20 फीसदी और गत वर्ष की समान अवधि के स्तर से 4 फीसदी अधिक है। इस वर्ष बीज और उर्वरकों की बिक्री भी बढ़ी। इन कारकों ने कृषि उत्पादन में उछाल को लेकर उम्मीद बढ़ाई है।
हालांकि इसमें भी एक समस्या है। यदि अधिशेष उत्पादन का प्रभावी प्रबंधन नहीं किया गया तो फसल कीमतों में भारी गिरावट आएगी। खासतौर पर फसल कटाई के बाद जब बिक्री का मौसम होगा तब। यदि ऐसा हुआ तो किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों के लिए झटका साबित होगा। ऐसे मेंं अतिरिक्त उपज की खपत के लिए समझदारी भरे कदम उठाने होंगे और फसल कटाई के समय कृषि जिंसों के लिए प्रभावी मूल्य समर्थन की घोषणा करनी होगी। यदि ऐसा नहीं किया गया तो बंपर पैदावार उलटे नुकसानदेह साबित होगी।
