आखिरकार महाराष्ट्र में अधिकारियों को वह कदम उठाना ही पड़ा, जो उन्हें काफी पहले उठा लेना चाहिए था। उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के अध्यक्ष राज ठाकरे को गिरफ्तार कर यह बात साफ कर दी कि वह जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उसकी इजाजत कतई नहीं दी जा सकती।
उनकी इस राजनीति की वजह से मुंबई में हिंसा का तांडव देखने को मिला, जबकि इसके जवाब में पटना में भी इक्का-दुक्का घटनाएं हुईं। लेकिन अब जरूरत है कड़े कदमों की।एमएनएस की कानून को अपने हाथों में लेने की आदत ताजा मिसाल इसी रविवार को देखने को मिली थी।
उस दिन राज के समर्थकों ने मुंबई में अलग-अलग जगहों पर हो रहे रेलवे बोर्ड की परीक्षा देने आए उत्तर भारत के प्रतियोगियों को परीक्षा हॉलों में घुसकर मारा था। कुछ ही दिन पहले राज ने खुले तौर पर ऐलान किया था कि जब तक जेट बर्खास्त किए गए अपने 1900 कर्मचारियों को वापस नहीं लेता, उसके विमान को न तो मुंबई से उड़ने और न ही मुंबई में उतरने की इजाजत दी जाएगी।
ऊपर से, उन्होंने यह भी मांग रख दी कि जेट लोगों को लेते वक्त मराठियों को तरजीह दे। ये सारी बातें नाकाबिले बर्दाश्त हैं। हमारे संविधान ने लोगों को अपनी मर्जी के मुताबिक मुल्क में कहीं भी जाने-आने की छूट दी है।
ऊपर से भारतीय रेल एक राष्ट्रीय संगठन है, जहां इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं हो सके। क्षेत्रीय रेलवे को जब भी लोगों की जरूरत होती है, तो वह स्थानीय भर्ती बोर्ड के साथ मिलकर पूरे मुल्क में विज्ञापन जारी करती है।
इसके पीछे उनका मकसद यही होता है कि हर नागरिक को एक राष्ट्रीय संगठन में काम करने का बराबर का मौका मिलना चाहिए। एमएनएस के कार्यकर्ता इस साल की शुरुआत से ही उत्तर भारत के मजदूरों को निशाना बनाती आई है।
उनका निशाने पर सबसे पहले आए टैक्सी ड्राइवर। हालात तब और भी गंभीर हो गए, जब उन्होंने पुणे और नासिक के ऑटो उद्योग के मजदूरों को अपना निशाना बनाया। इस वजह से 40 हजार मजदूरों ने सूबो को अलविदा कह दिया।
हद तो तब हो गई, जब राज के इन गुर्गों ने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के खिलाफ इसलिए मोर्चा खोल दिया। उनका विरोध तभी बंद हुआ, जब उन्होंने बिना किसी शर्त माफी मांगी। रेलवे में नौकरी हसरत लेकर मुंबई आए वे छात्र तो ऐसा भी नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने ऐसा कुछ किया ही नहीं है, जिसके लिए वे माफी मांगे।
दरअसल इसकी जड़ में है, 40 साल पहले बाल ठाकरे का दक्षिण भारतीयों के खिलाफ छेड़ा गया आंदोलन। इसी आंदोलन की वजह से तो शिवसेना अपनी जड़ें जमा सकीं। ठाकरे सीनियर ने उसके बाद अपना निशाना बनाया मुसलमानों को।
आज का यह आंदोलन मोटी कमाई वाले लोगों को नहीं, बल्कि मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट पालने वाले लोगों को अपना निशाना बना रही है। इसकी असल वजह लोगों की मांग नहीं, बल्कि राज ठाकरे की खुद को एक राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करने की चाहत है।
इस समस्या से राज्य सरकार को काफी कड़े तरीके से निपटना चाहिए। साथ ही, उसे राज के खिलाफ भी एक जबरदस्त मामला तैयार करना चाहिए ताकि उनके नक्शे कदम पर चलने की कोई हिम्मत नहीं कर सके।