खबरों के मुताबिक कुछ कारोबारी समूह प्रबंधन न्यास स्थापित करके उत्तराधिकार का मसला हल करने की योजना बना रहे हैं। भारत के पारिवारिक स्वामित्व वाले कारोबारी जगत में इस नए तरीके ने काफी ध्यान खींचा है। कम से कम दो समूह इस ढांचे पर विचार कर रहे हैं। ये हैं देश का सबसे बड़ा सूचीबद्ध कारोबारी समूह रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) तथा चेन्नई का श्रीराम समूह जो कई बड़ी वित्तीय कंपनियों का संचालन करता है। उनका इरादा ऐसा करके प्रमुख रूप से उत्तराधिकार की प्रक्रिया को सहज रूप से अंजाम देने तथा पारिवारिक विवादों एवं बंटवारे से बचने का है। आमतौर पर संस्थापक-प्रवर्तक कंपनियों के उत्तराधिकार में आमतौर पर ऐसा होता ही है। धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद आरआईएल को भी इनसे दो-चार होना पड़ा।
जानकारी के मुताबिक अंबानी परिवार वाल्टन परिवार के तर्ज पर एक पारिवारिक न्यास का गठन करना चाहता है। वाल्टन परिवार के पास वॉलमार्ट का स्वामित्व है और वह बोर्ड स्तरीय निगरानी अपने पास रखे हुए है तथा प्रबंधन का काम पेशेवरों को आउटसोर्स करता है। योजना के मुताबिक मुकेश अंबानी, उनकी पत्नी, तीन बच्चे तथा कुछ विश्वसनीय सलाहकारों की निगरानी करने वाली संस्था में हिस्सेदारी होगी और बोर्ड स्तर पर उनका प्रतिनिधित्व भी होगा। जबकि तेल से लेकर दूरसंचार तक कारोबारी विस्तार रखने वाले इस समूह का प्रबंधन पेशेवर प्रबंधकों के हवाले होगा। श्रीराम समूह की होल्डिंग कंपनी श्रीराम कैपिटल में 30 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले श्रीराम स्वामित्व न्यास के सदस्यों को समूह की अहम कंपनियों में प्रबंध निदेशकों का पद प्राप्त होगा। समूह में कोई चेयरमैन नहीं होगा लेकिन उसके संस्थापक आर त्यागराजन मेंटर यानी परामर्शदाता के रूप में रहेंगे।
अहम सवाल यह है कि क्या पारिवारिक स्वामित्व वाले न्यास उत्तराधिकार के विवादों से बचा सकते हैं और स्पष्ट प्रबंधन ढांचा तैयार कर सकते हैं जो बोर्ड स्तर के हस्तक्षेप और प्रवर्तक स्तर के हस्तक्षेप में अंतर कर सके। परिवार के सदस्यों से बने हों या पेशेवरों से, प्रबंधन न्यासों से स्वामित्व और प्रबंधन के बीच एक और परत अवश्य तैयार होती है। वाल्टन परिवार का अनुभव बताता है कि प्रबंधन न्यास की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि परिवार/न्यास सदस्य व्यवस्था का खुद कितना मान रखते हैं। वाल्टन परिवार न्यास के सदस्य ज्यादातर मामूली संपर्क रखते हैं। सन 2015 में संस्थापक की पोती का पति समूह का चेयरमैन बना। चूंकि समूह में वाल्टन परिवार की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है इसलिए प्रवर्तकों और प्रबंधन के बीच नाममात्र की दूरी को लेकर उचित ही सवाल उठे।
ऐसे सवाल भविष्य में बनने वाले अंबानी प्रबंधन न्यास पर भी लागू होंगे, खासतौर पर यह देखते हुए कि मुकेश अंबानी और उनकी तीन संतानें फिलहाल प्रबंधन में प्रभावी हैं। श्रीराम न्यास का ढांचा स्पष्ट है लेकिन पारिवारिक परामर्शदाता के होने से अनिश्चितता पैदा होती है। न्यास और प्रबंधकीय शक्ति में ज्यादा दूरी नहीं है और ऐसा हम टाटा न्यास के मामले में देख चुके हैं जिसे समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस पर अत्यधिक अधिकार प्राप्त हैं। यह ढांचा इसलिए भी जटिल है क्योंकि न्यासों को परोपकारी प्रकृति के कारण कर छूट मिलती है। हालांकि यह ऐतिहासिक लाभ टाटा और बिड़ला समूह जैसे चुनिंदा न्यासों को हासिल है। हमारे देश में परोपकारी न्यास निजी कंपनियों में हिस्सा नहीं रख सकते और वे ऐसे शेयर केवल दान में प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें उनको एक वर्ष के भीतर निपटाना भी होता है। सच यह है कि जब तक वे स्वयं न चाहें तब तक देश के कारोबारी घरानों को परिवार से दूर करने की कोई जादू की छड़ी नहीं है। अमेरिका में कड़े उत्तराधिकार कर ने अमीरों को प्रोत्साहित किया कि वे अपनी मृत्यु के पहले संपत्ति को बच्चों में बांट दें। इस प्रक्रिया ने उनके द्वारा स्थापित कंपनियों में प्रबंधन को पेशेवर बनाने में भूमिका निभाई। भारत इस राह पर विचार कर सकता है।
