क्या ऐसे माता पिता को दंडित किया जाना चाहिए जिनके 2 से ज्यादा बच्चे हों? केरल सरकार कुछ ऐसा ही सोचती है।
सरकार ऐसे कानून का मसौदा तैयार कर रही है कि जिन माता-पिता के तीसरा बच्चा हो, उनके ऊपर 10,000 रुपया जुर्माना लगाया जाए। हैरानी की बात यह है कि माता- पिता के इस तरह के मानवाधिकार हनन के बारे में उस राज्य में सोचा जा रहा है जो साक्षरता और भूमि सुधार लागू करने के मामले में एक आदर्श राज्य माना जाता है और जहां ज्यादातर लोग छोटे परिवार का विकल्प चुनते हैं।
यह एक विडंबना है कि मार्क्सवादी सरकार के लिए इस तरह के क्रूर कानून का मसौदा तैयार करने वाली समिति की अध्यक्षता एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश करेंगे। देश में इस तरह के कदम उठाए जाने के बहुत से प्रशंसक होंगे, जिन्हें स्वतंत्रता के बाद से ही सिखाया गया है कि बढ़ती जनसंख्या अपने आप में बहुत बड़ी समस्या है। यह केरल का एक उदाहरण है, जिस तमाम नीति निर्माताओं को इस ओर आकर्षित करेगा कि दो बच्चों के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। आप देखेंगे कि जन्म दर को नियंत्रित करने वाले कानून या जन्म दर नियंत्रित करने से विकास नहीं हुआ है, बल्कि इसके अन्य कारण हैं।
केरल ऐसा राज्य है, जहां जन्म दर में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। ऐसा बगैर किसी सख्त कानून के हुआ है और हर समुदाय में जनसंख्या के मामले में जागरूकता आई है। अन्य राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां अशिक्षा की दर बहुत ज्यादा है, वहां विभिन्न समुदायों में इसे लेकर जागरूकता नहीं है। वामपंथी दलों के समर्थन वाली कांग्रेस सरकार ने इस मसले को न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल किया और जनसंख्या को लक्षित स्तर तक लाने का उद्देश्य मूल एजेंडे में शामिल किया। इसमें जन्म दर को नियंत्रित किया जाना प्रमुख उद्देश्य था।
कुछ राज्यों ने लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने के लोकतांत्रिक अधिकार को भी खत्म करने की बात की, जिनके दो से ज्यादा बच्चे हैं। लेकिन इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और इसे संविधान का उल्लंघन कहा। शहरी इलाके के शिक्षित लोगों के बीच दो बच्चों का उद्देश्य इस कदर सामने आया कि वे बच्चियों की भ्रूण हत्या करने लगे। केरल में प्रतिसाल जन्म दर में बढ़ोतरी 0.9 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 1.92 प्रतिशत है। स्वीडन में यह दर 0.09 प्रतिशत है और वहां पर जनसंख्या में कमी की समस्या हो गई है। इस हिसाब से केरल को भी घटती हुई आबादी पर चिंतित होना शुरू कर देना चाहिए।
सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज तिरुवनंतपुरम के हाल के एक अध्ययन के मुताबिक केरल में जल्द ही विकास दर शून्य के स्तर पर पहुंच जाएगी। इसका मतलब यह हुआ कि अगले दो दशक में वहां जन्म दर और मृत्यु दर बराबर हो जाएगी। और 2022 में वहां पर 33 प्रतिशत लोगों की उम्र 49 साल से ज्यादा होगी। इस समय वहां पर प्रति साल 1000 जनसंख्या पर 14 बच्चे पैदा होते हैं और 9 लोगों की मृत्यु होती है। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक 20 साल के भीतर यह दर बराबर हो जाएगी।
चीन की फिल्म निर्माता और लेखिका जिआओ गुओ ने अपने उपन्यास 20 फ्रेगमेंट्स आफ ए रेवेनस यूथ में फेनफेंग की कहानी का वर्णन किया गया है। वह पेइचिंग की रहने वाली है। उसे एक रात पुलिस स्टेशन में बिताना पड़ता है क्योंकि उसका एक अमेरिकी अतिथि था जिसे ब्वॉय फ्रेंड माना गया। नए कानून के लागू होने के बाद अगर फेनफेंग केरल में होती तो उसे तीसरा बच्चा होने के चलते हो सकता है कि जेल की हवा खानी पड़ती।
ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन चीन के प्रतिबंध के दिनों से ज्यादा प्रेरित हैं। लेकिन चीन ने अपने सपनों को पूरा करने के बाद पाया है कि एक बच्चा वाले राज्य का अनुभव बुरा रहा है। वह नियमों में ढील देने के बारे में सोच रहा है। उन्हें माओ के उस वक्तव्य से सीख मिली है, जिसमें कहा गया है कि हमें परिवर्तन के मुताबिक सीख लेनी चाहिए।
चीन, यूरोप के उन देशों से सीख ले रहा है जहां लोगों को बसाने के लिए जमीन दी जा रही है और लोगों से कहा जा रहा है कि आबादी की कमी वाले इलाकों में वे बसें। शायद यह बिल्कुल सही समय है कि ऐसी राज्य सरकार को दंडित किया जाए, जिसने लोगों की समानता और स्वतंत्रता के अधिकार पर धावा बोल दिया हो।