उच्च स्तरीय और सावधानी से चुने गए आंकड़े यह संकेत देतेे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी महामारी के कारण उपजी उथलपुथल से निपट रही हैै। आर्थिक स्थिति में मौजूदा सुधार से उत्साहित मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने भारत की सॉवरिन रेटिंग को लेकर अपना नजरिया ऋणात्मक से बदलकर स्थिर कर दिया। उसने चालू वित्त वर्ष के वृद्धि दृष्टिकोण को संशोधित करके 9.3 फीसदी और अगले वर्ष के दृष्टिकोण को 7.9 फीसदी कर दिया है। मूडीज का विचार है कि सुधार की प्रक्रिया लंबी चल रही है और बैंकों तथा गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से उपजे जोखिम पहले जताए गए अनुमानों की तुलना में काफी कम हैं। इसके अलावा देश की बाह्य स्थिति भी मजबूत है और विदेशी मुद्रा भंडार भी पर्याप्त है।
हालांकि मूडीज ने अपनी रेटिंग को न्यूनतम निवेश श्रेणी में रखा है। नजरिये में सुधार यकीनन भारत के लिए राहत की बात है क्योंकि यदि इसे निवेश श्रेणी से नीचे किया जाता तो नीतिगत जटिलताएं बढ़ जातीं। ज्यादातर वैश्विक मुद्रा प्रबंधक केवल उन्हीं देशों में निवेश करते हैं जिनकी रेटिंग एक खास सीमा से अधिक होती है। फिलहाल मूडीज और स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स भारत को लेकर स्थिर दृष्टिकोण जता रही हैं। फिच अभी भी इसे ऋणात्मक बता रही है। लेकिन सॉवरिन रेटिंग दृष्टिकोण में सुधार को लेकर भारत के नीतिगत प्रतिष्ठान को आश्वस्त होने की जरूरत नहीं है। हालांकि कोविड की दूसरी लहर से अपेक्षाकृत सहज वापसी हुई है। हालांकि भारत को अभी भी लंबा सफर तय करना है और चालू वित्त वर्ष के अंत में होने वाला वास्तविक उत्पादन वर्ष 2019-20 के स्तर से मामूली ज्यादा ही रह सकता है। आर्थिक गतिविधियों में मंदी से उबरते हुए भारत इस वर्ष उच्च वृद्धि दर हासिल करेगा और अनुमान है कि यह गतिशीलता अगले वर्ष की पहली छमाही में बरकरार रहेगी। परंतु आर्थिक वृद्धि मध्यम अवधि में कैसी होगी यह कई कारकों पर निर्भर होगा। यह बात याद रखनी होगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी के आगमन के पहले ही धीमी पडऩे लगी थी। आने वाले वर्षों में वृद्धि के लिए एक बड़ी बाधा भारत की राजकोषीय स्थिति भी होगी। हमारा ऋण-सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात 90 फीसदी पहुंचने का अनुमान है। हालांकि चालू वर्ष में कर संग्रह में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और इससे राजकोषीय घाटे को सीमित रखने में मदद मिलेगी लेकिन उच्च ऋण मध्यम अवधि में सरकारी व्यय में बाधा बना रहेगा। निजी खपत के भी कमजोर रहने का अनुमान है। महामारी के पहले के वर्षों में वृद्धि को निजी खपत ने गति दी थी। इसमें आंशिक रूप से ऋण और उच्च सरकारी व्यय का भी योगदान था। आम परिवारों की आय को महामारी ने काफी क्षति पहुंचाई और अनुमान है कि खपत बढ़ाने के पहले वे अपनी स्थिति को दुरुस्त करना चाहेंगे। निजी निवेश के भी धीमा रहने का अनुमान है क्योंकि उपभोक्ता मांग कमजोर है और औद्योगिक क्षमता भी बगैर इस्तेमाल के पड़ी है। ऐसे में उच्च वृद्धि दर बरकरार रखने के लिए सतर्क नीतिगत प्रबंधन की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए निर्यात का प्रदर्शन बेहतर है और इसमें उच्च वृद्धि बरकरार रखने के लिए भारत को व्यापार नीति की समीक्षा करनी होगी। उच्च शुल्क और आयात प्रतिबंध निर्यात के लिए बड़े गतिरोध हैं।
भारत काफी समय से कई देशों के साथ व्यापार समझौतों पर बात कर रहा है उसे उनको अंजाम तक पहुंचाना चाहिए। सरकार को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी के बारे में अपने निर्णय पर भी पुनर्विचार करना चाहिए। बिना उच्च निर्यात के उच्च आर्थिक वृद्धि हासिल करना मुश्किल है। इसके अलावा भारत को अपने कम कर-जीडीपी अनुपात को भी ठीक करने की जरूरत है। इसके लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में बदलाव करना होगा। उच्च और स्थिर कर-जीडीपी अनुपात न केवल सरकार को क्षमता निर्माण पर व्यय में सक्षम बनाएगा बल्कि देश की राजकोषीय स्थिति भी सुधारेगा।
