गुजरात में कम ही लोगों ने भूपेंद्र पटेल का नाम पहले सुना था। वास्तव में यह बात पटेल की सबसे बड़ी ताकत साबित हुई। प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले एक अनुभवी प्रेक्षक ने कहा, ‘पटेल को लोग कम जानते हैं और यही बात मजबूती से उनके पक्ष में खड़ी हुई है।’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गुजरात इकाई के दिग्गज सूरमा हाथ मलते रह गए और राज्य के मुख्यमंत्री पद का ताज एक ऐसे व्यक्ति को मिल गया जो राजनीति के माहिर खिलाड़ी नहीं माने जाते हैं। पटेल 2017 में पहली बार विधायक बने और उन्हें सरकारी विभाग चलाने का अनुभव भी नहीं है। भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद आ रही खबरों के अनुसार जब पटेल को जानकारी दी गई कि उन्हें देश के सबसे धनी राज्यों में से एक गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है तो वह भाव विह्वïल हो गए। जब उन्हें विधायक दल की बैठक को संबोधित करने के लिए कहा गया तो वह बोल भी नहीं पाए।
भूपेंद्र पटेल के हक में दो बातें जाती हैं। वह राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल केविश्वासभाजक समझे जाते हैं। उन्होंने आनंदीबेन के चुनाव प्रचार प्रबंधक के रूप में काम किया था और बाद में उन्होंने आनंदीबेन के राज्यपाल बनने के बाद उनकी सीट से चुनाव लड़ा। भूपेंद्र पटेल को गृह मंत्री अमित शाह का भी समर्थन हासिल है। उनका विधानसभा क्षेत्र घाटलोडिया गांधीनगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। शाह संसद में गांधीनगर का प्रतिनिधित्व करते हैं। पटेल ने राज्य विधानसभा के चुनाव में इस सीट से 115,000 मतों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी।
पटेल और नरेंद्र मोदी दोनों में एक बात समान है। मोदी जब 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तब उन्हें भी प्रशासन चलाने का अनुभव नहीं था। पटेल के पक्ष में एक और बात जाती है। जब केशुभाई पटेल की जगह नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बनाए गए थे तब राज्य में ताकतवर पाटीदार समूह उनके खिलाफ खुलकर सामने आ गया था। पाटीदार समुदाय यह बात पचा नहीं पा रहा था कि गुजरात में पिछड़ी जाति तेली का एक सदस्य मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गया। भूपेंद्र पटेल पाटीदार समुदाय से आते हैं, इसलिए सब शांत लग रहे हैं मगर इसमें फिलहाल संदेह है कि अहमदाबाद के बाहर उनका समुदाय उन्हें अपना प्रतिनिधि स्वीकार कर पाएगा।
यह स्पष्टï है कि पटेल का चयन करते वक्त भाजपा जातिगत दबाव के आगे नतमस्तक हो गई। पाटीदार गुजरात की राजनीति में उसी तरह प्रभावी हैं जैसे महाराष्टï्र की राजनीति में मराठा समुदाय। सरदार पटेल के नेतृत्व में पहले पाटीदार समुदाय कांग्रेस का समर्थन करता था। गुजरात में पहले चार मुख्यमंत्री ब्राह्मïण समुदाय से बने थे।
सन 1973 में चिमनभाई पटेल ने बगावत का बिगुल फूंक दिया और वह पाटीदार समुदाय से मुख्यमंत्री बनने वाले पहले व्यक्ति थे। वह कांग्रेस से ताल्लुक रखते थे। मगर वह पाटीदार समुदाय का समर्थन हासिल नहीं कर पाए। काफी समय बाद पाटीदार समुदाय का एक व्यक्ति राज्य का उप-मुख्यमंत्री बना और जल्द ही इस समुदाय का सर्वमान्य नेता बन गया। यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि केशुभाई पटेल थे जिन्होंने पाटीदार समुदाय को भाजपा के साथ जोडऩे में अहम भूमिका निभाई।
जब केशुभाई पाटीदार समुदाय को भाजपा के साथ जोड़ रहे थे उसी दौरान सूरत हीरा कारोबार का एक प्रमुख केंद्र बन गया। इस कारोबार से जुड़े ज्यादातर लोग सौराष्टï्र से आए थे। धन बल और राजनीतिक शक्ति एक साथ आने से राज्य में पाटीदार समुदाय का वर्चस्व बढ़ता गया और भाजपा शक्ति का प्रमुख केंद्र बन गई। इसके बाद मोदी का उदय हुआ। मोदी के विरोध में पनपा शुरुआती गुस्सा धीरे-धीरे गायब हो गया और इसमें आनंदीबेन पटेल की भी भूमिका रही। उन्हें मोदी का सिपहसालार समझा गया और पाटीदार समुदाय को भी लगने लगा कि उनके वर्चस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री निर्वाचित होने के बाद आनंदीबेन राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। जब उनकी जगह जैन समुदाय के विजय रूपाणी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया तो पाटीदार समुदाय फिर भड़क गया और उसने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर अपना गुस्सा निकाला। इस समय गुजरात में भाजपा को कांग्रेस से नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी से चुनौती मिल रही है। एक आंतरिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में अभी चुनाव हुए तो 182 सदस्यीय विधानसभा में आम आदमी पार्टी को 40 सीटें मिल सकती हैं।
राज्य में भाजपा के वरिष्ठïतम नेताओं में एक वित्त एवं स्वास्थ्य मंत्री नितिन (पाटीदार) पटेल ने मुख्यमंत्री बनने की अपनी इच्छा किसी से छुपाई नहीं है। वास्तव में वित्त वर्ष 2020-21 के बजट पर चर्चा के दौरान अमरेली से कांग्रेस विधायक वृज थुम्मर ने कहा, ‘राज्य के उप-मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री अच्छा काम करते हैं और हम उनका समर्थन करते हैं। मगर नितिन पटेल की अपनी पार्टी उनका समर्थन नहीं करती है। मैं उन्हें एक प्रस्ताव देता हूं, आप भाजपा के 15 विधायकों के साथ कांग्रेस आएं और हम आपको मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार हैं।’ यह स्पष्ट तौर पर एक खतरा है। राज्य की 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 112 विधायक हैं और कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 65 है। भाजपा ने तत्काल प्रतिक्रिया में कहा कि कांग्रेस स्वप्न देख रही है। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने चुप्पी साध ली थी। हालांकि पाटीदार समुदाय ने अपना मन बना लिया था।
इस पृष्ठïभूमि में भूपेंद्र पटेल को अपने समुदाय के भीतर विरोधियों को शांत करना होगा। चूंकि उन्हें राजकाज चलाने का भी अनुभव नहीं है इसलिए उन्हें अपनी पार्टी एवं राज्य शासन तंत्र को भी यह बताना होगा कि उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। क्या दिल्ली से निर्देश लेकर वह शासन चलाएंगे या वह स्वयं अपनी तकदीर लिखेंगे? पटेल जल्द समझ जाएंगे कि वह एक ऐसी राह से गुजर रहे हैं जिसमें कदम-कदम पर प्रतिद्वंद्वी मौजूद हैं?