जानकारी के मुताबिक निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा है जिसके तहत कुछ ऐसी भूमि बेची जानी है जो अभी सरकारी उपक्रमों के नियंत्रण में है। जिन सरकारी उपक्रमों की चर्चा हो रही है उनमें दो सरकारी दूरसंचार कंपनियां, शिपिंग कॉर्पोरेशन और अन्य कंपनियां शामिल हैं। बिक्री को स्टील मिनीरत्न एमएसटीसी (पूर्व में मेटल स्क्रैप ट्रेड कार्पोरेशन) के लिए विकसित वेबसाइट के माध्यम से अंजाम दिया जाएगा।
इस योजना के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। ऐसा शायद इसलिए है कि अभी इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी नहीं मिली है। अधिकारियों ने बिक्री की जाने वाली जमीन के मूल्य के अलग-अलग आंकड़े दिए हैं जो 600 करोड़ रुपये से 1,000 करोड़ रुपये के बीच हैं। स्वाभाविक तौर पर वास्तविक कीमत का पता नीलामी होने पर ही लग सकेगा।
लंबे समय से उचित ही यह दलील दी जा रही है कि सरकार को अपने नियंत्रण वाली कुछ जमीन बेचने की आवश्यकता है। ऐसी जमीन का काफी हिस्सा सरकारी कंपनियों के पास है जबकि अन्य जमीन रेलवे, शहरी विकास मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के पास है। सरकारी उपक्रमों के नियंत्रण वाली जमीन को चिह्नित कर उसे बेचना जमीन की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में पहला कदम होगा। परंतु इस बात में दो राय नहीं है कि अकेले सरकारी उपक्रमों को कीमत नहीं चुकानी चाहिए। उदाहरण के लिए देखें तो सेना के पास कहीं अधिक कीमती शहरी जमीन है। यह जमीन इतनी ज्यादा है कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है। सरकार को सरकारी उपक्रमों के साथ ऐसी जमीन को बेचने की दिशा में भी आगे बढऩा चाहिए।
हाल ही में घोषित राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन की तरह यहां भी सवाल यही है कि इस जमीन को कैसे चिह्नित किया जाएगा और क्या इसे बेचने की राह में बाधाएं नहीं आएंगी? यह बात याद रखना उचित होगा कि सरकारी दूरसंचार कंपनियों के स्वामित्व वाली जमीन को दो दशक पहले बिक्री के लिए चिह्नित किया गया था लेकिन वह बिक्री नहीं हो सकी क्योंकि इस मामले में कुछ कानूनी कार्यवाही और कुछ विवाद उभर आए थे।
इन नीलामियों के लिए जो जमीन चिह्नित की गई है उसके बारे में कहा जा रहा है कि उससे फिलहाल कोई कानूनी वाद नहीं जुड़ा हुआ है। लेकिन तथ्य यह है कि यदि वह जमीन किसी मौजूदा सरकारी उपक्रम से संबद्ध है या उनसे जुड़ी है जो निजीकरण की प्रक्रिया में हैं, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जमीन के बिकने के पहले कानूनी विवाद सर नहीं उठा लेंगे। ऐसे में बिक्री को अंजाम देने के लिए स्पष्टता और प्रतिबद्धता की जरूरत होगी।
यह भी जरूरी है कि सरकार इस अवसर को पूरी तरह राजस्व जुटाने का माध्यम न माने। इसमें से कुछ जमीन ऐसे इलाकों में होगी जो भविष्य के शहरी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। जमीन का अंतिम इस्तेमाल ऐसा होना चाहिए जो इन शहरी इलाकों की व्यापक जरूरतों के अनुरूप हो। इसके अलावा अर्जित राजस्व को पूरी तरह मौजूदा व्यय की पूर्ति में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
पूंजी की बिक्री, यानी इस मामले में जमीन की बिक्री की मदद से पूंजी का अधिग्रहण होना चाहिए। विनिवेश का बुनियादी सिद्धांत यही है कि सरकार कहीं राजस्व की मौजूदा तलाश को भूल न जाए। इस प्रस्ताव का केंद्रीय मंत्रिमंडल को सावधानीपूर्वक परीक्षण करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इससे दीर्घावधि के हित साधे जा सकेंगे। बुनियादी सिद्धांत मजबूत है और उसे सैन्य तथा अन्य प्रकार की भूमि तक बढ़ाया जाना चाहिए।