प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से जो भाषण दिया उसमें उन्होंने अगले 25 वर्षों के लिए पांच प्रण करने का आह्वान किया क्योंकि 25 वर्ष बाद ही देश अपनी आजादी की 100वीं वर्षगांठ का जश्न मना रहा होगा। इन पांच प्रणों में पहला है एक विकसित भारत का प्रण। मोदी ने कहा कि हमें इससे कम कुछ भी मंजूर नहीं होना चाहिए। यह उपयुक्त लक्ष्य है और भारत को उच्च वृद्धि हासिल करने की आकांक्षा रखनी ही चाहिए ताकि विकसित दुनिया के साथ दूरी को जल्दी से जल्दी पाटा जा सके। इस संदर्भ में सबसे बड़ा लाभ यह है कि पिछले कुछ समय से भारत की श्रम शक्ति लगातार बढ़ रही है। माना जा रहा था कि जनांकीय लाभांश भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि का प्रमुख कारक होगा। हालांकि हाल के वर्षों में हमारा प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। चूंकि जनांकीय लाभ हमेशा बरकरार नहीं रहेगा इसलिए भारत को तेजी से इसका फायदा उठाना होगा।
ताजा अनुमानों के अनुसार अगले वर्ष तक भारत दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। जनांकीय घटक की बात करें तो श्रम योग्य आयु वाली आबादी का बढ़ना 2045 तक जारी रहेगा और इस राह में वह चीन को पीछे छोड़ देगा। बहरहाल, अगर मौजूदा हालात बरकरार रहे तो भारत अपनी श्रम शक्ति में तेजी से होने वाले इजाफे का पूरा फायदा नहीं उठा पाएगा। श्रम बाजार की मौजूदा हालत को देखें तो कोई अच्छी तस्वीर नहीं सामने आती। विश्व बैंक द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में रोजगार और आबादी का अनुपात 43 फीसदी पर है जबकि वैश्विक औसत 55 फीसदी है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्रम शक्ति का एक हिस्सा न तो काम कर रहा है और न ही वह काम की तलाश में है क्योंकि उसे काम मिलने की उम्मीद ही नहीं है। यह बात शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती श्रम योग्य आयु वाली आबादी में भी नजर आती है। जैसा कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के महेश व्यास ने एक आलेख में कहा है कि श्रमयोग्य आबादी में छात्रों की तादाद 2016-17 के 15 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 23 प्रतिशत हो गई। यह कहा जा सकता है कि लोग शैक्षणिक संस्थानों में अधिक समय बिता रहे हैं ताकि वे ऐसा कौशल हासिल कर सकें जिससे उत्पादकता बढ़े।
बहरहाल, यह भी होता नहीं नजर आता। सीएमआईई के अनुसार हाल के वर्षों में श्रम शक्ति में स्नातकों और परास्नातकों की तादाद में कमी आई है। सरकार के आंकड़े भी यही संकेत देते हैं कि युवाओं के लिए रोजगार पाना मुश्किल हुआ है। एक और समस्या है महिला श्रमिकों की भागीदारी जो दुनिया में न्यूनतम भागीदारियों में शामिल है और बीते दो दशक में भी इसमें भारी गिरावट आई है। प्रधानमंत्री ने नारी शक्ति के योगदान के बारे में भी बात की और यह बात उत्साहित करने वाली है। बहरहाल, महिलाएं केवल तभी वांछित स्तर का योगदान करने की स्थिति में होंगी जब देश एक सक्षम माहौल में उनके लिए पर्याप्त अवसर तैयार कर सकेगा। ऐसे में भारत अगले 25 वर्ष में तथा उसके बाद कितनी तेजी से विकसित होता है यह इस बात पर भी निर्भर करेगा वह अपनी श्रम शक्ति का कितनी अच्छी तरह इस्तेमाल कर पाता है। इस बारे में हमें जो कदम उठाने हैं वे भी एकदम स्पष्ट हैं।
भारत कम कुशल विनिर्माण के लिए आधार नहीं तैयार कर पाया है जबकि वह बढ़ती श्रम शक्ति के इस्तेमाल में मददगार हो सकता था। आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए हुआ कि श्रम कानून प्रतिबंधात्मक हैं और व्यापार के क्षेत्र में तमाम गतिरोध हैं। भारत ने बीते वर्षों में मानव विकास के क्षेत्र में भी अपेक्षित काम नहीं किया है। उन गलतियों में सुधार करना अमृत काल की बेहतर शुरुआत होगी।
