इन चुनावों को अगले साल होने वाले लोक सभा चुनावों के ‘महा मुकाबले’ का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
ऐसे में केंद्र में सत्तारूढ़ कांगेस और ‘सत्ता में आने को आतुर’ भाजपा चुनावों के इस किले को फतह करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहतीं। वजह साफ है, जो भी इस सेमीफाइनल में जीतेगा, फाइनल यानी लोकसभा चुनावों के लिए उसका दावा उतना ही मजबूत होगा।
इन पार्टियों के बीच एक और जंग लड़ी जा रही है। यह जंग है प्रचार अभियान की। दरअसल, चुनावों में नारे बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में ये राजनीतिक दल कैसे इनकी अहमियत को नजरअंदाज कर सकते हैं? सभी जानते हैं कि पिछले आम चुनाव में भाजपा के ‘भारत उदय’ अभियान की हवा कांग्रेस के ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ’ नारे ने निकाल दी थी।
खैर, भाजपा पिछले हश्र से सबक लेकर इस बार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और उसने हर राज्य के लिए अलग-अलग नारा गढ़ा है। मतलब साफ है कि भाजपा इन चुनावों में स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय समस्याओं के साथ मिलाकर पेश कर रही है।
मिसाल के तौर पर दिल्ली की बात करें तो यहां पर पार्टी का नारा है ‘महंगी पड़ी कांग्रेस’। इस नारे के बाबत पार्टी के प्रचार अभियान से जुड़े वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘पूरा देश महंगाई से त्रस्त है और सरकार कुछ भी करने में नाकाम रही है।
ऐसे में सरकार की नाकामी को बताने के लिए इससे बढ़िया नारा नहीं हो सकता।’ भाजपा, दिल्ली में इस नारे को बड़े जोर शोर से उछाल भी रही है। पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि इस नारे को पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक अरुण जेटली ने गढ़ा है।
नकवी कहते हैं कि मौजूदा दौर के लिए यह नारा एकदम मुफीद है और चुनाव परिणाम भी इस नारे की सार्थकता सिद्ध कर देंगे। यह तो हुई दिल्ली की बात। दूसरे राज्यों में हालात कुछ जुदा हैं। दरअसल, दिल्ली में तो भाजपा विपक्ष में है लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वह पिछले पांच साल से सत्ता सुख भोग रही है।
जाहिर है, पार्टी को सत्ता विरोधी रुझान का सामना तो करना पड़ेगा। इसको देखते हुए नारे भी नए ईजाद किए गए हैं। मसलन राजस्थान में जहां वसुंधरा राजे ‘जय-जय राजस्थान’ करती नजर आ रही हैं तो मध्य प्रदेश में पार्टी ‘फिर इस बार शिवराज’ नारे के सहारे चुनावी वैतरणी को पार करने की आस लगाए बैठी है।
छत्तीसगढ़ में पार्टी को रमन सिंह पर पूरा भरोसा है। भाजपा के प्रचार अभियान से जुड़े सुशील पंडित ने जयपुर से बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमारा अभियान बहुत तेजी पकड़ रहा है और इसको जनता का बढ़िया रिस्पॉन्स भी मिल रहा है। ‘
प्रचार अभियान के जोर पकड़ने के साथ ही विज्ञापन एजेंसियों की भी निकल पड़ी है। विज्ञापन जगत से जुड़े एक विश्लेषक का कहना है, ‘मंदी के इस माहौल में चुनाव, विज्ञापन एजेंसियों के लिए किसी बड़ी सौगात से कम नहीं हैं। चुनावों की वजह से इन एजेंसियों के पास सौ डेढ़ सौ करोड़ रुपये का कारोबार आ रहा है। ‘
प्रचार अभियान के लिए भाजपा ने इस बार अपनी एजेंसी भी बदली है। पिछले आम चुनाव में भाजपा के प्रचार अभियान का जिम्मा क्रेयॉन्स के पास था। जबकि इस बार के चुनावों में दिल्ली और राजस्थान में भाजपा के प्रचार अभियान की कमान ‘द हाइव’ नाम की एजेंसी को सौंपी गई है।
एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी कहते हैं, ‘ हम दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार की नाकामियों को प्रचार अभियान में तवाो दे रहे हैं तो राजस्थान में राज्य सरकार की उपलब्धियों को जनता के बीच पहुंचा रहे हैं। ‘ वहीं दो अहम राज्यों में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी के लिए पार्टी ने स्थानीय एजेंसी और सलाहकारों पर भरोसा जताया है।
मध्य प्रदेश में निशीथ शरण प्रचार की बागडोर संभाले हुए हैं तो छत्तीसगढ़ के गढ़ को साधने के लिए भी भाजपा ने एक ‘स्थानीय सान’ पर ही दांव लगाया है। अब देखना यह होगा कि सर्द मौसम में धुंआधार प्रचार के सहारे इन सूबों में कमल मुरझाएगा या फिर ये चुनाव भाजपा के ‘प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग’ को मंजिल के और करीब पहुंचा देंगे।
चुनावी मौसम में सभी राजनीतिक दल अपने अपने तरीके से जमाने की रफ्तार की नब्ज को पकड़ते हुए नए मीडिया के जरिए प्रचार में जुटे हुए हैं। कांग्रेस के लिए क्रेयॉन्स राजस्थान और दिल्ली में होने वाले चुनावों के लिए काम कर रही है।
दिल्ली में कैंपेन का जिम्मा के्रयॉन्स के साथ जेडब्ल्यूटी भी देख रही है। हाईटेक कैंपेन के साथ ही आम आदमी और छोटे शहरों व गांवों के लिए भी चुनावी विज्ञापन अभियान तैयार किए जा रहे हैं।
इन एजेंसियों का फोकस इसी बात पर होगा कि ‘काम दिखता है’। कांग्रेस के अभियान की कमान संभाल रहे पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह कहते हैं, ‘हम अभियान के लिए विभिन्न माध्यमों को जरिया बना रहे हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के साथ ही हमारा फोकस आउटडोर मीडिया पर भी होगा।
रेडियो विज्ञापन भी बनाए जा रहे हैं। आम आदमी के हक में हमने जो काम किए हैं, जितनी सफलताएं हासिल की हैं, उन्हें हम लोकसभा चुनाव में केंद्र बनाना चाहेंगे। राज्यवार मुद्दों के लिहाज से हमने चुनाव अभियान की रणनीति बनाई है।’
गौरतलब है कि कांग्रेस ने कैंपेन डिजाइन करने के लिए जेडब्ल्यूटी, के्रयॉन्स, परसेप्ट, रेडिफफ्यूजन और मैडिसन जैसी विज्ञापन एजेंसियों को प्रेजेंटेशन देने के लिए कहा गया था। पर बाजी के्रयॉन्स के हाथ लगी।
कांग्रेस के चुनावी अभियान की संचालक के्रयॉन्स के मालिक कुणाल ललानी का कहना है, ‘राज्यों के कैंपेन में मल्टी मीडिया पैकेज का इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले स्थान पर तो प्रिंट मीडिया और उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है। टेलीविजन पर 20 सेकंड, 40 सेकंड और एक मिनट के विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं।
दिल्ली में हमारी थीम विकास की है और जहां कांग्रेस विपक्ष में है, वहां खुशहाली और परिवर्तन पर जोर दिया जा रहा है। आउटडोर मीडिया का सहारा भी लिया जा रहा है।’ लोकसभा चुनावों की विज्ञापन अभियान की रणनीति के सवाल पर ललानी कहते हैं कि उसकी रणनीति तो राज्यों के चुनावी अभियान खत्म होने के बाद ही बनेगी।
के्रयॉन्स ने वर्ष 2004 में भाजपा और 2006 में अकाली दल के चुनावी अभियान की रणनीति तैयार की थी। उसने 2007 में समाजवादी पार्टी के लिए भी चुनाव अभियान की योजना बनाई थी। दिल्ली सरकार का बहुचर्चित मीडिया अभियान, ‘बदलती तस्वीर दिल्ली की आपके लिए’ भी के्रयॉन्स ने तैयार किया था।
कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी कहते हैं, ‘हर राज्य के अभियान को अलग-अलग लोग देख रहे हैं। मसलन दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश में अलग-अलग प्रचार समितियां हैं। हम लोगों ने कैंपेन को अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से बांटा है।’ विज्ञापन जगत में भी चुनाव अभियान पर काफी सरगर्मी है।
मुद्रामैक्स के चंद्रदीप मित्रा का कहना है, ‘देश में जितनी पार्टियां हैं, वे उतनी ही एजेंसियों को अपने साथ अभियान में जोड़ेंगी। अभियान में पार्टियां कितना खर्च करेंगी यह तो उन पर ही निर्भर करेगा। लेकिन मुझे लगता है कि एक पार्टी दो महीने के अभियान पर 40 से 50 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा खर्च कर सकती हैं।’
गौरतलब है कि एफएमसीजी कंपनियां पूरे साल भर के अभियान के लिए 200 से 300 करोड़ रुपये खर्च करती हैं। किसी खास ब्रांड के विज्ञापन के लिए सालाना 50 से 100 करोड़ रुपये तक खर्च किया जाता है। मित्रा का कहना है कि लोकसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक और आउटडोर मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकता है।
आउटडोर मीडिया में खर्च ज्यादा नहीं होता। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिये प्रति व्यक्ति संपर्क करने में कम खर्च आता है और प्रचार का यह सबसे सशक्त माध्यम है। प्रिंट मीडिया में लागत ज्यादा आती है।
कांग्रेस के अभियान से जुड़े मोहन प्रकाश कहते हैं, ‘आगामी लोकसभा चुनाव के लिए काफी होमवर्क हो चुका है। लेकिन अभी कुछ चीजें तय करना बाकी है। अभी क्रेयॉन्स राजस्थान का अभियान देख रही है लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए कौन सी एजेंसी काम करेगी, यह अभी तय नहीं है।’
उनका कहना था कि हम अभियान में बताएंगे कि हमारी सफलताओं से आम आदमी को कितना फायदा मिला है। इस बार युवा वर्ग, रोजगार और दुनिया में जो भारत की साख बनी है, उस पर भी फोकस किया जा रहा है।
के्रयॉन्स के ललानी कहते हैं कि उनका इंटरनेट कैंपेन भी आक्रामक है। राज्यों के अभियान में भी खासतौर पर इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा रहा है जो उस राज्य में ही दिखेंगे।