देश की दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनावी दावे सत्ता में मौजूदा कांग्रेस पार्टी के दावों को भी पार कर चुकी है।
भाजपा ने मतदाताओं को लुभाने के लिए लोकप्रिय दावे तो कर दिए हैं, लेकिन राजकोष को ताक पर रख कर। पार्टी के घोषणा पत्र में तीन प्रमुख क्षेत्रों- सस्ता भोजन, किसानों के कर्ज को माफ करना और आयकर में छूट की सीमा को बढ़ाना- पर अनुमान लगाए गए हैं।
भाजपा के वादों को पूरा करने की कीमत लगभग 89,000 करोड़ रुपये है, जो कांग्रेस के अनुमान से लगभग तीन गुना अधिक है (तालिका देखें)। हालांकि भाजपा के वादों के एक बड़े हिस्से में शहरी मध्यम वर्ग को ध्यान में रखा गया है, जैसे आय कर में छूट की सीमा को बढ़ाकर दोगुना करना, फ्रिंज बेनिफिट टैक्स (एफबीटी) को हटाना और सावधि जमा खातों पर मिलने वाले ब्याज पर कोई कर नहीं।
सच बात तो यह है कि भाजपा के चुनावी वादों में से सिर्फ दो- आयकर छूट सीमा को दोगुना करना और गरीब परिवारों को 35 किलोग्राम चावल या गेहूं मुहैया कराने भर से ही सरकार को हर साल 65,000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। अगर किसानों को किया हुआ वादा, कृषि के लिए लिये गए कर्जों की ब्याज दर को 4 प्रतिशत तक सीमित करना, भी पूरा किया जाता है तो राजकोष पर बोझ और बढ़ जाएगा।
जहां दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने निजी कर देनदारियों में कटौती का कोई वादा नहीं किया, वहीं उनके वादों का क्षेत्र भी वही है, जो भाजपा का है। राजकोष पर सबसे अधिक बोझ आयकर की छूट सीमा को दोगुना कर 3 लाख रुपये कर देने पर पड़ेगा। आयकर विभाग के नवीन आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में तकरीबन 3.25 करोड़ करदाता हैं और इसमें से 3 करोड़ गैर-कॉर्पोरेट करदाता हैं, जिनके लिए मूल छूट सीमा लागू होती है।
आय के स्तर और मान्य कर दर (10 से 30 प्रतिशत के बीच में) के आधार पर कर देनदारी में कटौती सालाना 15,000 रुपये से 45,000 रुपये के बीच में होती है। अगर सभी करदाताओं को कम से कम 15,000 रुपये की छूट मिलती है तो प्रत्यक्ष कर राजस्व 45,000 करोड़ रुपये से प्रभावित होगा।
कर दरों में कटौती के स्वरूप और भी अधिक लाभ होंगे, जिससे लोगों के पास व्यय योग्य आय बढ़ जाएगी। ऐसे में जब विकास दर लगातार कम हो रही है, तब लोगों के हाथ में अधिक पैसा होने से आर्थिक मांग में इजाफा भी हो सकता है। भाजपा के चुनावी वादों में से एक और है फ्रिंज बेनिफिट टैक्स को हटाना, जिससे सरकार पर लगभग 10,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
खाद्य सुरक्षा
दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां गरीबों को सस्ती दरों पर चावल या गेहूं का वायदा कर रही हैं। लेकिन पहले ही सरकार ने ‘अंत्योदय अन्न योजना’ चलाई हुई है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गरीब परिवार को हर महीने 35 किलोग्राम चावल या गेहूं क्रमश: 3 और 2 रुपये की दर से मुहैया कराना है।
अप्रैल 2008 तक इस योजना में शामिल परिवरों की संख्या 2.43 करोड़ थी। हालांकि गरीबी रेखा के नीचे आने वाले परिवारों की संख्या इससे काफी अधिक है। सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक कुल जनसंख्या में से 27.5 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करते हैं।
दिल्ली की एक आर्थिक शोध संस्था सेंटर फॉर बजट ऐंड गवर्नेंस अकाउंटैबिलिटी के अनुमानों के मुताबिक अंत्योदय अन्न योजना के तहत जो गरीब परिवार शामिल नहीं हुए हैं, उनकी संख्या लगभग 40 लाख है। संस्था ने अनुमान लगाया कि खाद्यान्न (चावल और गेहूं) के प्रति टन की औसत आर्थिक लागत 14,719.5 आती है। यह न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ दूसरे खर्चों जैसे वितरण पर आधारित है।
इस आधार पर अगर कांग्रेस का 25 किलोग्राम चावल या गेहूं का वादा पूरा होता है तो सरकार को सालाना 14,239 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। और भाजपा के 35 किलोग्राम के वादे के लिए सरकार को सालाना 25,037 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।
खर्च के बावजूद सेंटर फॉर बजट ऐंड गवर्नेंस अकाउंटैबिलिटी के अनुसंधानकर्ता नीलाचल आचार्य का कहना है, ‘भोजन का अधिकार कानून को लागू करने का प्रस्ताव निश्चित रूप से सराहनीय है, अगर यह देखा जाए कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा व्यय के रूप में प्रतिदिन 20 रुपये से भी कम खर्च पाता है।’
वर्ष 2004-05 की सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 77 प्रतिशत जनसंख्या भोजन पर प्रतिदिन 20 रुपये से भी कम खर्च करती है।
किसानों को कर्ज
पिछले आम बजट में ने छोटे और सीमांत किसानों के कर्ज माफ करने वाली कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में हर कृषि के लिए गए कर्ज पर ब्याज माफ करने का वादा किया है, वह भी कर्जदाताओं की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखे बिना। वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने कहा है कि वह किसानों के कर्जों पर ब्याज दर को 4 प्रतिशत पर से अधिक नहीं होने देगी।
हालांकि कृषि के लिए कितने प्रतिशत ब्याज दर पर कर्ज लिए गए हैं, इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं है। लेकिन सहकारी बैंकों की ओर पहले ही दी गई राशि के रूप में डूबे हुए कर्जों के 10 फीसदी होने का अनुमान है। इसलिए ऐसा माना जा सकता है कि सरकारी बैंकों की ओर से दिए गए कृषि के 90 प्रतिशत कर्ज सही स्थिति में हैं।
कांग्रेस के चुनावी वादों को पूरा करने पर लगभग 18,000 करोड़ रुपये का खर्च होगा, जबकि भाजपा के मामले में यह 8,685 करोड़ रुपये है। यह गणना बैंकों की ओर से दिसंबर, 2008 तक कृषि क्षेत्र को दिए गए कुल 2,89,500 करोड़ रुपये के कर्ज पर आधारित है और इसमें औसत ब्याज दर 9 फीसदी है। पहले ही इसमें 2 प्रतिशत की राहत दी जा रही है।
