सूचीबद्ध कंपनियों ने सितंबर 2020 की तिमाही में भारी मुनाफा कमाया है। उन्होंने भारतीय इतिहास के सबसे मंदी वाले दौर में अपना सर्वोच्च समेकित लाभ दर्ज किया है। अर्थव्यवस्था इस साल सिकुड़ रही है और कंपनियों को लगातार पांच तिमाहियों से वार्षिक आधार पर अपनी बिक्री में गिरावट देखनी पड़ रही है। लेकिन सूचीबद्ध कंपनियों ने सितंबर 2020 तिमाही जैसा मुनाफा कभी नहीं कमाया था। समझा जा सकता है कि शेयरधारकों को अंतरिम लाभांश या पुनर्खरीद के रूप में पुरस्कृत किया जा रहा है। लेकिन नई क्षमताओं के विकास में निवेश को लेकर बहुत कम दिलचस्पी दिख रही है। पूंजी के मालिकों को इस बेहद मुश्किल वक्त में भी बढिय़ा फायदा हुआ है। लेकिन कामगार इतने खुशकिस्मत नहीं रहे हैं। कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में शुद्ध लाभ एक साल पहले की तुलना में 23.8 फीसदी बढ़ा है। हालांकि मुनाफे में बढ़ोतरी का रास्ता उठापटक से भरा रहा है। पिछली 60 तिमाहियों में औसत वृद्धि 11.8 फीसदी थी और इसका माध्य 9.1 फीसदी था। सितंबर 2020 तिमाही में लाभ वृद्धि पिछली 60 तिमाहियों की तुलना में लाभ वितरण के शीर्ष चतुर्थक से अधिक 21.9 फीसदी थी। सितंबर तिमाही में मजदूरी 3.8 फीसदी की दर से बढ़ी जो इसके वितरण में सबसे निचले चतुर्थक 7.8 फीसदी से भी कम थी। पिछली 60 तिमाहियों में मजदूरी में औसत वृद्धि 13 फीसदी रही है। इस तरह पिछली दो तिमाहियों में मजदूरी में एक अंक वाली निम्न वृद्धि ऐतिहासिक मानदंडों के हिसाब से काफी कम है और कंपनियों को हुए भारी मुनाफे के एकदम उलट है।
लाभ में वृद्धि की तुलना मजदूरी में वृद्धि से करना काफी रोचक है। यह तुलनात्मक अध्ययन पूंजी के स्वामियों एवं श्रम के मालिकों के बीच के परंपरागत संघर्ष की ओर ले जाता है। लेकिन कारोबारी दिग्गजों के लिए लाभ में वृद्धि और पारिश्रमिक में वृद्धि के बीच कोई नाता नहीं है। ये दोनों पूरी तरह स्वतंत्र ढंग से बरताव करती हैं। कंपनी प्रबंधक अपना लाभ बढ़ाने के लिए अपने मजदूरी बिल को कम करते जाएंगे।
विनिर्माण कंपनियों के वेतन में जून तिमाही में 9.1 फीसदी गिरावट दर्ज की गई थी। निश्चित रूप से अप्रैल-जून 2020 का समय सबसे मुश्किल था। बिक्री 42 फीसदी तक लुढ़क गई थी और शुद्ध लाभ में 62 फीसदी की भारी गिरावट आई थी। ऐसी स्थिति में वेतन बिल पर गाज गिरना लाजिमी ही था। सितंबर तिमाही में बिक्री तो 9.7 फीसदी गिरी लेकिन मुनाफा आश्चर्यजनक ढंग से 17.8 फीसदी उछल गया। इसके बावजूद वेतन में 1 फीसदी की गिरावट देखी गई। साफ है कि कंपनियां अपने मुनाफे के अनुपात में श्रम संसाधनों को समायोजित नहीं करती हैं। श्रम का अन्य लागत से संरचनात्मक संबंध होता है। सूचीबद्ध विनिर्माण कंपनियों में वर्ष 2014 तक पारिश्रमिक उनकी कुल बिक्री का 4-5 फीसदी हिस्सा हुआ करता था लेकिन उसके बाद से यह 5-6 फीसदी हो चुका है। जून 2020 तिमाही में वेतन बिल में 9.1 फीसदी की गिरावट आने के बावजूद शुद्ध बिक्री में इसकी हिस्सेदारी बढ़कर 8.6 फीसदी हो गई। सितंबर तिमाही में यह अनुपात 6.2 फीसदी रहा जो इसके पुराने स्तर के करीब है। वैसे यह हिस्सा अब भी ऐतिहासिक स्तरों से ऊंचा है और यह आगे की एक और कटौती का आधार हो सकता है। कारोबार सुधरने से दूसरी लागत बढऩे या फिर वेतन बिल में नए सिरे से कटौती कर हिस्सेदारी को और कम किया जा सकता है।
सेवा क्षेत्रों के लागत ढांचे में श्रम की भूमिका कहीं अधिक होती है। गैर-वित्तीय सेवाओं में वेतन बिल वर्ष 2014 तक शुद्ध बिक्री का 15 फीसदी हुआ करता था लेकिन अब यह बढ़कर 20-21 फीसदी तक हो चुका है। जून तिमाही में यह अनुपात 27.6 फीसदी तक हो गया था। फिर सितंबर तिमाही में यह 24 फीसदी के स्तर पर आ गया। इसके बावजूद यह लागत ढांचे के पिछले रिकॉर्ड से मेल नहीं खाता है और इसीलिए कारोबार सुधरने की स्थिति में शुद्ध बिक्री के अनुपात के तौर में इसमें गिरावट आने की संभावना है।
गैर-वित्तीय सेवा क्षेत्र को मार्च एवं जून की तिमाहियों में समेकित आधार पर घाटा उठाना पड़ा था। उसे सितंबर तिमाही में जाकर लाभ हुआ है। फिर भी संचार, विमानन, व्यापार और होटल एवं पर्यटन उद्योगों में बड़े घाटे का सिलसिला अभी कुछ और तिमाहियों तक जारी रह सकता है। इससे निकट भविष्य में फिर से रोजगार दे पाने की इन श्रम-बहुल उद्योगों की क्षमता पर संदेह पैदा होता है।
कारोबार के फिर से तेजी पकडऩे की सूरत में कॉर्पोरेट क्षेत्र में रोजगार की स्थिति सुधर सकती है और रोजगार की हालत भी तभी सुधरेगी जब कंपनियां नई इकाइयों में निवेश करना शुरू करेंगी। नई रिपोर्टों से पता चलता है कि बैंकिंग एवं आईटी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वेतन वृद्धि एवं बोनस देना शुरू कर दिया है। लेकिन ये दोनों ही क्षेत्र पिछली दोनों तिमाहियों में बिक्री एवं मजदूरी में आई गिरावट से बचे हुए थे। इस अवधि में बैंकिंग उद्योग में वेतन 23-24 फीसदी तक बढ़ा जबकि आईटी क्षेत्र में यह वृद्धि 5-6 फीसदी की रही। बाकी क्षेत्रों ने सामूहिक तौर पर वेतन में जून तिमाही में 9 फीसदी और सितंबर तिमाही में 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की।
सितंबर तिमाही में कंपनियों के लाभ में आई जबरदस्त तेजी का संबंध कुछ समय के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र की मजदूरी दर में गिरावट से हो सकता है लेकिन रोजगार वृद्धि मांग में लगातार सुधार पर ही निर्भर करेगी। पिछली तिमाही में मॉनसून अच्छा रहने से खरीफ की फसल भी बंपर हुई और मनरेगा के तहत काम बढऩे से दबी हुई मांग भी सामने आई।
विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों की कंपनियों के कुल लागत ढांचे में वेतन बिल का हिस्सा बढऩे से प्रबंधक मांग न बढऩे की स्थिति में उस पर अपनी तलवार भी चला सकते हैं। लॉकडाउन ने कंपनियों को कम श्रम के साथ कारोबार चलाने के बारे में कुछ सबक जरूर सिखाए हैं। और इसकी संभावना कम ही है कि कंपनियां इस सबक को जल्दी भूलेंगी।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
