जलवायु में हो रहे परिवर्तन ने फसलों की उत्पादकता पर नकारात्मक असर डालना शुरू कर दिया है और इस वजह से खेती-बाड़ी के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीके और दूसरे उपायों में सही समायोजन की दरकार बढ़ गई है।
फसलों के विकास के विभिन्न चरणों के दौरान तापमान में अचानक होने वाले उतार-चढ़ाव, मौसम की दूसरी खामियां और मौसम बदलाव के विशिष्ट लक्षण अंतत: उपज में कमी ला देते हैं।
पिछले कुछ सालों में हुए मौसम बदलाव का मुख्य शिकार गेहूं हुआ है, हालांकि दूसरी फसलें भी कमोबेश इससे प्रभावित हुई हैं। खास तौर से फरवरी-मार्च में तापमान सामान्य से ज्यादा होने से गेहूं का उत्पादन घटा है, साथ ही रबी की दूसरी फसलों का उत्पादन भी कम हुआ है।
पंजाब के उत्तरी-पश्चिमी इलाके, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चलने वाली शीतलहर पिछले छह साल से लगातार जारी है। शीतलहर की वजह से खाद्यान्न, दालें, सब्जियां, फल और यहां तक कि फूलों को भारी नुकसान हो रहा है। इन फसलों में टमाटर, आलू, जाड़े में पैदा होने वाला मक्का, बैंगन, मटर, सरसों, चना, पपीता, आंवला, गेंदा और गुलदाउदी आदि शामिल हैं।
गेहूं के मामले में इस पर पड़ने वाले मौसम परिवर्तन के असर का अध्ययन विभिन्न वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए किया गया है। करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता शोध संस्थान (सीएसएसआरआई) ने हाल ही में गेहूं की विभिन्न किस्मों की उत्पादकता और विकास को न्यूनतम व अधिकतम तापमान से सहसंबंध की खातिर विस्तृत प्रयोग किया है।
इसने पाया कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि गेहूं की कोई खास किस्म हर साल अपनी क्षमता का प्रदर्शन करेगी ही। स्वाभाविक उत्पादकता से अलग तापमान और मौसम की अन्य परिस्थितियों केहिसाब से इसकी उपज हर सीजन में अलग-अलग होगी।
गेहूं पर पड़ने वाले मौसम के प्रभाव के बारे में विस्तार से बताते हुए सीएसएसआरआई के निदेशक गुरबचन सिंह ने कहा – उच्च तापमान से पौधों में निर्जलीकरण हो जाता है और यह प्रकाश संश्लेषण व सांस लेने की प्रक्रिया के संतुलन को बिगाड़ देता है।
एक ओर जहां उच्च तापमान की वजह से पत्तियों का हरित भाग का नुकसान होता है और प्रोटीन आदि अक्रियाशील हो जाती है, लिहाजा पौधों में प्रकाश संश्लेषण की गतिविधि कम हो जाती है। वहीं दूसरी ओर सांस लेने की गति बढ़ जाती है, लिहाजा बीज में मौजूद आरक्षित खाद्यान्न का तेजी से क्षरण होने लगता है।
सीएसएसआरआई द्वारा रिकार्ड किए गए रोजाना के न्यूनतम और अधिकतम तापमान से पता चला है कि तापमान और गेहूं उत्पादन के बीच सहसंबंध है। गेहूं की फसल के दौरान (नवंबर से अप्रैल) औसत के मुकाबले अधिकतम और न्यूनतम तापमान में दो से लेकर चार डिग्री सेल्सियस ज्यादा की बढ़ोतरी पाई गई।
अधिकतम असामान्यता 15 जनवरी से 18 जनवरी के दौरान और 14 फरवरी व 23 फरवरी 2006 के बीच देखी गई। गेहूं के लिए यह अच्छा साबित नहीं हुआ और नतीजे के तौर पर उत्पादन में गिरावट देखी गई।
दूसरी ओर गेहूं के अगले सीजन (2006-07) के दौरान तापमान में अलग तरह का ट्रेंड देखा गया। यह कमोबेश सामान्य के आसपास रहा, जो कि ज्यादातर समय सामान्य औसत से एक या दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा था। इसके नतीजे के तौर पर गेहूं की बंपर फसल हुई।
साल 2007-08 में भी तापमान गेहूं की फसल के लिए अच्छा रहा। वास्तव में रोजाना का तापमान 20 जनवरी से 20 फरवरी के बीच औसत के मुकाबले 0 से 3 डिग्री सेल्सियस नीचे रहा। इसी वजह से गेहूं की रिकॉर्ड (7.84 करोड़ टन) पैदावार हुई।
गेहूं के वर्तमान सीजन में सीएसएसआरआई के पर्यवेक्षकों ने तापमान रिकॉर्ड किए हैं, जो चिंताजनक तस्वीर पेश कर रहे हैं। न्यूनतम और अधिकतम दोनों तापमान जनवरी-फरवरी 2009 के ज्यादातर दिनों में सामान्य स्तर से ऊपर रही।
गेहूं की विभिन्न किस्मों की फसल पर तापमान के पडने वाले असर पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान में इस तरह का अंतर इस साल गेहूं की पैदावार पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। सिंह के मुताबिक, हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि अलग-अलग तिथियों पर लगाई गई अलग-अलग किस्म के गेहूं की फसल पर इसका क्या असर पड़ता है। गेहूं की कटाई होनी अभी बाकी है।
तापमान की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण होती है, खास तौर पर फसल के विकास के अंतिम चरण में, (फूल लगने से लेकर दाने के विकास तक – टर्मिनल तापमान के तौर पर जाना जाता है) और यह फसल के उत्पादन पर अच्छा खासा असर डालता है।
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) ने इस अद्भुत घटना के अध्ययन के लिए अंतर-संस्थान प्रोजेक्ट लॉन्च करने का फैसला किया है। इसमें आईसीएआर के संस्थान और पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में स्थित राज्य कृषि विश्वविद्यालय शरीक होंगे। मौसम में हो रहे परिवर्तन के ध्यान में रखते हुए यह प्रोजेक्ट विभिन्न फसलों (खास तौर पर गेहूं) के ताप सहने की शक्ति पर फोकस करेगा।
इसके अलावा यह गेहूं की उन किस्मों की पहचान की कोशिश करेगा जिसकी उत्पादकता पर टर्मिनल ताप में असर न पड़े। गेहूं और रबी की अन्य फसलों पर मौसम के पड़ने वाले प्रभाव को कम करने की खातिर इसकी सफलता काफी मायने रखेगी।
