क्या आपने कभी सोचा है कि रियल एस्टेट ब्रोकरेज फर्म असहाय बच्चों की मदद के लिए आगे आएगी।
जी हां ऐसा मुमकिन है और यह काम कर दिखाया है आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों से स्नातक किए हुए छात्रों ने। इन छात्रों ने काफी बेहतर सैलरी पैकेज की परवाह न करते हुए वही किया जो उनका मन चाहता था।
इन दोनों छात्रों, नीरत भटनागर और गुनीत सहाय ने मिलकर ‘चाहिए’ नाम के रियल एस्टेट ब्रोकरेज फर्म की स्थापना की है। इस कदम के जरिए उनकी कोशिश यह है कि गैर प्रोफेशनल बर्ताव के लिए पहचाने जाने वाली रियल एस्टेट इंडस्ट्री में कुछ अच्छे कदमों के जरिए बदलाव लाया जाए। नीरत भटनागर और गुनीत सहाय अगले 6 महीने में एनसीआर के लोगों को किराए पर लगभग 25,000 फ्लैट मुहैया कराएंगे और ब्रोकेरेज फीस की कमाई का 20 प्रतिशत 1000 गरीब और बेसहारा बच्चों की मदद के लिए खर्च करेंगे।
भटनागर का कहना है कि उनकी संस्था ‘चाहिए’ ने बाल मजदूरों की जिंदगी को सुधारने के लिए बालसुधार गृह ‘प्रयास’ के साथ गठजोड़ भी किया है। बाल मजदूर अक्सर कई तरह के शोषण के शिकार होते हैं और उनसे कम पैसे में बहुत काम कराया जाता है। किसी एक अर्पाटमेंट के किराए के जरिए ‘प्रयास’ के एक घर में 4 से 5 महीने के लिए एक बच्चे के स्वास्थ्य, मनोरंजन और उनकी पढ़ाई का भी इंतजाम हो सकता है।
नीरत ने आईआईटी खड़गपुर और आईआईएम बेंगलुरु से पढ़ाई की है और उन्हें आईबीएम बिजनेस कंसल्टिंग में स्टै्रटजी कंसल्टिंग का लगभग 5 सालों का अनुभव भी है। वह वेंचर कैंपिटल फंड इसांगो की शुरुआत करने वालों में से हैं। लेकिन अब वह अपने ब्रोकरेज फर्म की मार्केटिंग और संचालन का काम कर रहे हैं। गुनीत ने आईआईटी रुड़की से अपनी पढ़ाई की है और उन्हें जीआईएसआईएल, फियोरानो और इसांगो में लगभग 9 सालों का तकनीकी विभाग का अनुभव है। फिलहाल वे टेक्नोलॉजी और वेबसाइट फीचर को देख रहे हैं।
नीरत के मुताबिक इससे पहले उन दोनों ने इसांगो डॉट कॉम में लगभग 5 महीने एक साथ काम किया था। हम लोगों ने यह महसूस किया कि हमारे पास एक दूसरे का पूरक बनने की क्षमता है और अपने मूल्यों को भी महत्व देते हैं। भटनागर का कहना है कि आईआईटी और आईआईएम के बहुत कम छात्र रियल एस्टेट कंपनी या खासतौर पर कोई ब्रोकरेज फर्म शुरू करने की बात सोचते हैं। वे दोनों यही चाहते थे कि वे साधारण चीजों को ही बेहतर और अनोखा विकल्प के तौर पर पेश करने की मिसाल बन जाएं।
भटनागर का कहना है, ‘इस तरह की कोई चीज करना अपने आप में बेहद खास हो जाता है। इसकी वजह यह है कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्था, उद्योगों के बलबूते चल रही है। अगर सामाजिक न्याय की बात करें तो ऐसा बदलाव या तो बहुत कुछ अलग करके या फिर बहुत ही संत बनकर किया जा सकता है। ‘चाहिए’ संस्था यह दिखाना चाहती है कि बेहतर बदलाव हमारे रोजमर्रा के कारोबारों के जरिए भी हो सकता है।