किसी ने कहा कि 2021 के साथ सबसे अच्छी बात है कि यह समाप्त हो गया है। इस भावना को समझा जा सकता है क्योंकि बीते वर्ष के वायरस का खतरा नए वर्ष में भी साथ आया है। बहरहाल, नए वर्ष की ओर नजर डालते हुए हाल की सकारात्मक बातों की अनदेखी करना भूल होगी। खेलों से शुरुआत करें तो क्रिकेट के सभी प्रारूपों में यह वर्ष अच्छा रहा ही, ओलिंपिक खेलों में भी हमने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। पदक सूची में हम बहुत प्रभावशाली नहीं रहे लेकिन हॉकी में लंबे अरसे बाद हमने शानदार प्रदर्शन किया, ट्रैक ऐंड फील्ड स्पर्धाओं में हमारा प्रदर्शन अच्छा रहा, बैडमिंटन में हम निरंतर मजबूत बने हुए हैं और कुश्ती, भारोत्तोलन, निशानेबाजी, तीरंदाजी, मध्यम दूरी की दौड़ और गोल्फ जैसी स्पर्धाओं में खासतौर पर महिलाओं का प्रदर्शन बहुत आशाएं जगाने वाला रहा। अभी लंबा सफर तय करना है, खासकर फुटबॉल जैसे खेलों में जहां ताकत और गति के साथ क्षमता और कौशल बहुत जरूरी हैं। शेयर बाजार की बात करें तो द फाइनैंशियल टाइम्स एमएससीआई सूचकांक के हवाले से कहता है कि हाल के वर्षों में उभरते बाजारों के शेयर बाजारों का प्रदर्शन कमजोर रहा लेकिन भारत के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। निश्चित तौर पर लगातार तीन वर्ष में सेंसेक्स का मूल्य दो अंकों में बढ़ा है। 2008 के वित्तीय संकट के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है। तीसरी सकारात्मक बात है देश में उद्यमी प्रतिभाओं की संपदा। यह नई बात नहीं है। बीते तीन दशक में भारत ने सुनील मित्तल और उदय कोटक जैसे पहली पीढ़ी के उद्यमी तैयार किए हैं। सॉफ्टवेयर सेवाओं और फार्मा क्षेत्र में कई प्रतिभाएं दूसरों को रास्ता दिखा रही हैं और वाहन क्षेत्र में मुंजाल जैसी स्वदेशी प्रतिभाएं उभरी हैं। इन्होंने तथा इन जैसे अन्य लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों का नेतृत्व किया जिससे व्यापक अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में मदद मिली। देखना है कि आज के उभरते क्षेत्रों मसलन इलेक्ट्रिक वाहन, हरित ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक वस्तु निर्माण तथा खुदरा आदि एवं तकनीकी क्षेत्र की यूनिकॉर्न कंपनियां (जिनका मूल्यांकन एक अरब डॉलर से अधिक हो) आगे चलकर काबिल उत्तराधिकारी साबित होते हैं या नहीं। यह इस पर निर्भर करता है कि उनके उपक्रम ठोस कारोबारी दलीलों और मूल्यों पर केंद्रित रहते हैं या नहीं। हमने देखा है कि ऐसा नहीं करने वाले अचल संपत्ति, अधोसंरचना और विमानन उपक्रम किस तरह विफल रहे। चौथी बात के रूप में सरकार की उस क्षमता का उल्लेख किया जाना चाहिए जिसके जरिये उसने तकनीक की मदद लेते हुए व्यापक पैमाने पर लक्षित कल्याण योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाया। इसका श्रेय प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिलना चाहिए लेकिन साथ ही अफसरशाहों और तकनीकी क्षेत्र के उद्यमियों को भी श्रेय दिया जाना चाहिए जिन्होंने क्रियान्वयन का नेतृत्व किया। काश ऐसा गुणवत्तापूर्ण बुनियादी शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी हो पाता क्योंकि इनके अभाव में देश पिछड़ा हुआ है।
पांचवां, एक ऐसे देश में जहां सुरक्षा की चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं, व्यवहार्य रक्षा उत्पादन सुनिश्चित करने में दशकों की हताशा के बाद अब हम अधिक सफल चरण की ओर बढ़ चले हैं। हल्के लड़ाकू विमानों और हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों का उत्पादन शुरू हो चुका है। भारत ने अपना पहला स्वदेशी निर्मित विमान वाहक पोत बना लिया है और वह अपनी दूसरी परमाणु क्षमता संपन्न पनडुब्बी का इस्तेमाल शुरू करने वाला है। हमने मिसाइलों की एक पूरी खेप तैयार कर ली है। सफलता की इन कहानियों की बुनियाद व्यापक आपूर्तिकर्ता कंपनियों में निहित है। उनमें से अनेक मझोली और छोटी कंपनियां हैं। इनमें से अधिकांश का उत्पादन चक्र अभी भी बहुत लंबा है और उसे कम करने की आवश्यकता है। परंतु एक समय दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा उपकरण आयातक रह चुका हमारा देश अब उत्पादक बनने की दिशा में अहम प्रगति कर चुका है।
अंत में, बहुत संभव है कि अगले कुछ वर्षों में हमें उस निवेश का परिणाम देखने को मिलने लगे जो हम देश के अधोसंरचना के ढांचे में कर रहे हैं। पश्चिमी उच्च गति वाला रेलवे फ्रेट कॉरिडोर पूरा होने वाला है और नए एक्सप्रेसवे तथा राजमार्गों के निर्माण से भी आवागमन की गति तेज होने वाली है। बिजली की कमी का दौर भी बीत चुका है हालांकि यह क्षेत्र अभी भी कम शुल्क दर की समस्या से जूझ रहा है। दूरसंचार क्रांति हो चुकी है, इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग तथा अन्य फिनटेक सेवाओं ने लाखों लोगों का जीवन सहज बनाया है। विमान यात्रा करना बेहद सस्ता है और जल्दी ही हमें नई तेज और आरामदेह ट्रेनों का दौर देखने को मिलेगा। यानी जीवन जीने की आसानी की बात धीरे-धीरे सही हो रही है। एक ऐसे देश में जहां अक्सर ऐसे तरीकों पर ध्यान दिया जाता है जहां हम पीछे रह जाते हैं, वहां ऐसी सकारात्मक बातों की याद के साथ नए साल की शुरुआत करना बेहतर है।
