उत्तर प्रदेश विधि आयोग द्वारा तैयार किए गए नए मसौदा विधेयक में प्रस्ताव रखा गया है कि दो से अधिक संतान वाले लोगों को स्थानीय निकायों के चुनाव लडऩे, सब्सिडी का लाभ लेने और प्रदेश में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने से रोका जाए। विधेयक में उन लोगों को प्रोत्साहन देने की बात भी कही गई है जो दो संतान वाली नीति का पालन करेंगे। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि प्रदेश की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) को मौजूदा 2.7 फीसदी से घटाकर 2026 तक 2.1 फीसदी किया जाए। उत्तर प्रदेश इकलौता ऐसा राज्य नहीं है जो ऐसा करके जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना चाहता हो। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने भी दो संतानों वाली नीति की बात की है। जबकि कुछ अन्य राज्यों में पहले ही यह व्यवस्था की जा चुकी है कि दो से अधिक संतान वाले लोग स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
यह सही है कि आबादी में तेज वृद्धि से असंतुलन पैदा हो सकता है जो राज्य के कामकाज को कठिन बनाएगा लेकिन इस मामले को जिस तरह हल करने का प्रयास किया जा रहा है वह दिक्कतदेह है और इसके अनचाहे परिणाम होंगे। मसलन, यह तरीका गरीब विरोधी है क्योंकि गरीब तबके में मध्य वर्ग की तुलना में अधिक बच्चे पैदा होते हैं। दूसरी बात, लोगों के अधिक बच्चे होने का संबंध शिशु और बाल मृत्यु दर के अधिक होने से भी है। लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे बुढ़ापे में उनकी देखभाल करें। ऐसे में एक तरह से उन्हें बुढ़ापे के बीमा के रूप में देखा जाता है। उच्च मृत्यु दर के कारण लोग ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं। यदि राज्य चाहते हैं कि उनकी प्रजनन दर कम और स्थिर हो तो पहले उन्हें चिकित्सा बुनियादी ढांचा मजबूत करना होगा। भारत के कुछ हिस्सों समेत विभिन्न देशों का अनुभव बताता है कि बाल मृत्यु दर कम होने पर जन्म दर में भी कमी आती है।
तीसरी बात, यह प्रस्ताव ऐसे समय आया है जब देश की प्रजनन दर, 2.1-2.2 की विशुद्ध प्रतिस्थापन दर के करीब पहुंचने को है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में उच्च प्रजनन दर ज्यादा है लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि स्वास्थ्य के मामले में प्रदेश का प्रदर्शन अच्छा नहीं है। ऐसे में सही हल है स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार, न कि हतोत्साहित करना।
अंत में, ऐसी नीति कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ाने वाली साबित हो सकती है क्योंकि माता पिता बालक चाहते हैं। दो बच्चों की सीमा तय करने का अर्थ यह है कि यदि पहली दो संतान कन्या हुई तो उनमें से एक के जीवन को जन्म के तुरंत बाद खतरा उत्पन्न हो जाएगा। चीन की जनसंख्या नियंत्रण नीति के कारण वहां लैंगिक असंतुलन पैदा हुआ क्योंकि लोग संतान के रूप में बालक को प्राथमिकता देते थे। उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों की नीति से भी ऐसा ही परिणाम हो सकता है और लैंगिक अनुपात और बिगड़ सकता है। बल्कि उत्तर प्रदेश के लिए यह बहुत जोखिम भरा हो सकता है। सन 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में प्रति 1,000 पुरुषों पर 908 महिलाएं हैं जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति 1,000 पुरुषों पर 940 महिलाओं का है। दो बच्चों की नीति से असंतुलन और बढ़ेगा।
व्यापक स्तर पर उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्य अतीत की ऐसी समस्या को हल करने का प्रयास कर रहे हैं जो भविष्य के लिए कठिनाई पैदा करेगी। कुल प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन दर के करीब है और कुछ राज्य मसलन उत्तर प्रदेश और बिहार इसलिए पीछे हैं क्योंकि वहां स्वास्थ्य और शिक्षा में सार्वजनिक निवेश अपर्याप्त है। इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने और महिलाओं को सशक्त बनाने से बेहतर नतीजे हासिल होंगे। जनसंख्या के मुद्दे को ऐसी दंडात्मक और अलग-थलग करने वाली नीतियों की मदद से हल करने का प्रयास उचित नहीं है।
