उत्तर-पूर्व मुंबई लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार किरीट सोमैया ने 30 अप्रैल को अपने मित्रों और समर्थकों को एक संदेश भेजा…’मतदान सरस छे’।
मतलब यह कि भाजपा की विशाल चुनावी मशीनरी मतदाताओं को घर से निकाल कर मतदान केंद्र तक पहुंचाने में कामयाब रही। आम चुनाव में शूरता की परीक्षा का सामना करने वाली यह मशीनरी अधिक से अधिक लोगों से ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का बटन दबा ‘पीं’ की आवाज (मतदाताओं को ईवीएम के बारे में बताते हुए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कुछ इसी तरह की आवाज निकाली थी) निकालने को कह रही थी।
किसी भी चुनाव मतदान के प्रतिशत की राजनीति केंद्र में होती है। लोकसभा की 372 सीटों के लिए अब तक हुए चुनाव में औसतन 57.5 फीसदी का मतदान हुआ है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में 57 फीसदी का औसत मतदान हुआ था। हालांकि ये आंकड़े कुछ और कहानी भी कहते हैं।
ज्यादातर महत्त्वपूर्ण राज्यों में मतदान का प्रतिशत 50 के आसपास रहा है। आंध्र प्रदेश में यह हर चरण में 65 फीसदी को पार कर गया। राज्य में लगातार 2 चरणों में हुए मतदान का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से ज्यादा रहा। पहले चरण में जहां 69.4 फीसदी मतदान हुआ, वहीं दूसरे चरण में 65.50 फीसदी का मतदान हुआ।
मतदान का प्रतिशत कुछ इस कदर विषम था कि मतदान के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि अमेरिका की तरह यहां भी लोकसभा का चुनाव फरवरी के निश्चित दिनों में कराए जाने की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए कि चुनाव के समय ने मतदान प्रतिशत को प्रभावित किया है।
मतदान का प्रतिशत क्या कहता है, इस बारे में मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस के चुनाव प्रबंधकों की अपनी-अपनी समझ है। रायबरेली और अमेठी में अपने भाई और मां के चुनाव प्रचार की कमान संभाले प्रियंका गांधी वडेरा ने मतदाताओं से कहा कि वे यह सुनिश्चित करें कि मतदान जरूर करेंगे। क्योंकि हमें जीत के अंतर में वृद्धि करनी है।
चुनाव से पहले ही विदिशा से लगभग जीत चुकी भाजपा की सुषमा स्वराज ने बार-बार यही बात दोहराई थी। अपने लोकसभा क्षेत्र में पार्टी कार्यकर्ताओं से सुषमा ने कहा- इसे बंद अध्याय की तरह मत मानिए। कृपया लोगों से कहिए कि वे घर से बाहर निकलें और मतदान करें, क्योंकि जीत का अंतर हमेशा महत्त्वपूर्ण होता है।
दरअसल जिस पार्टी के ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान करेंगे, उस पार्टी की स्थिति उतनी ही मजबूत होगी। हुजूम का बेहतर प्रबंधन काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है, विशेषकर उन सीटों के लिए जहां मुकाबला कांटे का होता है। परसों जहां मतदान हुआ, उसमें से गुजरात की वडोदरा सीट को ही लें।
2004 में यहां भाजपा की जयाबेन ठक्कर को जहां 48.4 फीसदी मत मिले, वहीं बड़ौदा राजघराने के सत्यजीत गायकवाड़ को 47.4 फीसदी मत मिले। संख्या के लिहाज से मतों का यह अंतर महज 6,000 वोटों का रहा। इस बार भाजपा ने यहां ठक्कर की जगह शहर के मौजूदा महापौर बालकृष्ण शुक्ला को अपना उम्मीदवार बनाया है।
समर्थकों को मतदान केंद्र तक लाने में कांग्रेस अपने कैडरों को थोड़ा भी उत्साहित करने में कामयाब हो सकी तो भाजपा यह सीट खो सकती है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि कैसे लोगों की गोलबंदी की जाए?
राजनीतिक दल तो प्राय: यह कोशिश भी करते हैं कि उनके प्रतिपक्षी के पक्ष में कम मतदान हो। पिछले साल जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में नैशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं ने श्रीनगर के 8 विधानसभा क्षेत्रों में अपने समर्थकों से अपील की कि वे यदि पार्टी के पक्ष में मतदान करते हैं तो अपना वोट सुबह 11 बजे तक अवश्य डाल दें।
जिस इलाके में भारी बर्फबारी के चलते लोग दोपहर से पहले निकल नहीं पाते, वहां नैशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने समर्थकों से सवेरे ही मतदान करवा लिया। दोपहर के करीब अफवाहें उड़ीं कि आतंकवादियों ने किसी मतदान केंद्र पर हमला बोल दिया है। बाद में साबित हुआ कि यह केवल अफवाह ही थी। इसे इसलिए फैलाया गया ताकि उनके विरोधियों के समर्थक कम तादाद में मतदान कर पाएं।
परिणाम यह हुआ कि नैशनल कांफ्रेस की प्रतिद्वंद्वी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद सईद चुनाव हार गए। वजह साफ रही कि पीडीएफ के कम समर्थक ही अपने घरों से निकल मतदान करने जा सके। इन सीटों पर औसत मतदान महज 21 फीसदी रहा, जबकि मतदान शुरू होने के शुरुआती 2 घंटों में ही 10 से 11 फीसदी वोट ही पड़ चुके थे।
इस लोकसभा चुनाव में अब तक सबसे अधिक मतदान पहले चरण के दौरान लक्षद्वीप में दर्ज किया गया। यहां 16 अप्रैल को वोटिंग हुई और सबसे ज्यादा 86 फीसदी मत पड़े। दूसरी ओर, पहले चरण में बिहार में सबसे कम 46 फीसदी, महाराष्ट्र में 54 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 51-54 फीसदी और झारखंड में 50 फीसदी मतदान हुआ।
50 फीसदी से ज्यादा मतदान होने वाले राज्यों में यही राज्य रहे हैं। दूसरे चरण में, बिहार में 44 तो त्रिपुरा में 80 फीसदी तक मत पड़े। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बस सम्मानजनक मतदान ही हुआ। यह कहना काफी मुश्किल है कि किस पार्टी के वोटर घर पर ही पड़े रहे और किसके मतदान केंद्र तक पहुंचे।
लेकिन एक बात बहुत साफ है कि कम मतदान वाले इन चुनावों में कैडर आधारित पार्टी ही बढ़िया प्रदर्शन करेगी। वैसे इस नियम का परीक्षण तो आगामी 16 मई को ही पाएगा, जब वोटों का पिटारा गिनती के लिए खुलेगा।
