विश्व ने पहली बार 1987 में वन्नियार जाति का नाम सुना। सन 1980 में गठित वन्नियार संघम ने उस साल चेन्नई में बड़ी रैली का आयोजन किया, लेकिन ऐसी नौबत आ गई कि रैली पर फायरिंग करनी पड़ी।
लेकिन फायरिंग का आदेश किसने दिया और ऐसा करना क्यों जरूरी था, कोई नहीं जानता। अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री एम. जी. रामचंद्रन पहले से ही बीमार थे, गुर्दा प्रत्यावर्तन के बाद संभवत: कोमा में थे, लेकिन यह तमिलनाडु का सबसे खराब गोपनीय मामला था।
आरक्षण की मांग को लेकर रैली का आयोजन किया गया था। यह जाति राज्य की कुल आबादी का 15 फीसदी है और तमिलनाडु के उत्तरी इलाकों में इसे अत्यंत पिछड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी इस जाति के लोग रहते हैं।
1980 के मध्य में आयोजित यह रैली ऐसी जाति के एकीकरण का चरमोत्कर्ष था, जो राज्य के छोटे से हिस्से में संख्या व लड़ाकू दोनों के लिहाज से काफी मजबूत थी। वन्नियार मिशन के साथ एक व्यक्ति था टिंडीवणम का एमबीबीएस एस. रामदास। रामदास की कोशिशों की वजह से ही पट्टाली मक्कल काट्ची (पीएमके), जाति आधारित राजनीतिक दल में परिवर्तित हो गया।
इसे तमिलनाडु में फिलहाल लोकसभा की सात सीटें और राज्यसभा की एक सीट मिली है। पीएमके इस समय जयललिता की पार्टी एडीएमके के गठबंधन का एक घटक है। इतनी छोटी पार्टी को कभी भी इतना ज्यादा नहीं मिला है। पीएमके की बुलंदियों से पता चलता है कि राजनीतिक ध्रुवीकरण में जाति एक हिस्सा होता है, जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।
वन्नियार के आत्मसम्मान के लिए चला आंदोलन 1989 में राजनीतिक पार्टी में तब्दील हो गया। इसके लिए स्पष्ट रूप से सामाजिक-आर्थिक कारण हैं। दक्षिणी तमिलनाडु में वन्नियार आज भी खेतिहर मजदूर हैं, हालांकि पिछले दशक में वे भूमि के मालिक बन गए हैं क्योंकि अगड़ी जाति मसलन रेड्डियार, नायडू और मुदालियार ने खेती को अलाभदायक मानकर इसे छोड़ दिया है और वे शहरी इलाकों में बस गए हैं।
तमिलनाडु में अगड़ी जातियों की गलियों में वन्नियार के अपने घर हैं – जहां जाति आज भी गांव व छोटे शहरों केविकास के लिए आधारभूत धुरी बनी हुई है। उत्तरी तमिलनाडु में वन्नियार ने अगड़ी जातियों की 30 से 50 फीसदी जमीन अपने नाम कर ली है, या तो खरीदकर या उस पर कब्जा करके। भूमि सुधार के मामले में तमिलनाडु का अच्छा रिकॉर्ड है।
छोटी जोत के औसत के मामले में केरल और पश्चिम बंगाल के बाद तीसरे नंबर पर उसका स्थान आता है। रामदास ने वहां वन्नियार और दलित के बीच रणनीतिक गठजोड़ की कोशिश की है। पहले इस तरह के गठजोड़ को दरकिनार कर दिया गया था, लिहाजा इस बार के चुनाव में इसे देखा जाना बाकी है।
पीएमके ने 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन वह हार गई थी। 1991 में जब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ हुए तब राजीव गांधी की हत्या के चलते चुनावी प्रक्रिया पर असर पड़ा था और पीएमके को विधानसभा की एक सीट मिली थी। 1996 में इसे विधानसभा की चार सीटें मिलीं, लेकिन लोकसभा की एक भी नहीं।
1998 में पीएमके पहली बार लोकसभा में प्रवेश करने में सफल हुई। यह पहला ऐसा चुनाव था जिसे जयललिता ने भाजपा, पीएमके और एमडीएमकेके साथ लड़ा था। चुनाव के दौरान ही कोयंबटूर में एक के बाद एक कई बम विस्फोट हुए थे। तमिलनाडु की 39 सीटों में से 30 एडीएमकेके खाते में गईं जबकि पीएमके को चार सीटें मिलीं।
जब जयललिता ने भाजपा गठबंधन से संबंध तोड़ दिया तब भी पीएमके वहां टिकी रही। पीएमकेको लोकसभा की पांच सीटें मिलीं। साल 2001 में तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव हुए तो एआईएडीएमके के गठजोड़ केसहारे पीएमके को 20 सीटें मिली। इसे कुल वोट का 5.5 फीसदी हासिल हुआ। साल 2004 में इसने डीएमके साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा और इसके पांचों उम्मीदवार विजयी रहे।
1980 के बाद यह पहला ऐसा साल था जब कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठजोड़ किया था। 2006 के विधानसभा चुनाव में भी यह डीएमके के साथ रही और 31 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 18 पर विजयी रही। बाद में डीएमके के साथ संबंध खराब होने पर रामदास एडीएमकेके साथ चले गए, पहली बार इसने घोषणा की है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी।
चुनाव की घोषणा होने से पहले तक वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा रही। स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास और पीएमके के एक एमपी आर. वेलु अब सरकार को छोड़ चुके हैं। अब ये संप्रग का हिस्सा नहीं रह गए हैं। 2009 के आमचुनाव में पीएमके एडीएमके गठबंधन के साथ चली गई है और पांडिचेरी सीट से भी चुनाव लड़ रही है।
पीएमकेकी राजनीति का एक हिस्सा यह रहा है कि जब भी चुनाव आते हैं वह श्रीलंका के तमिलों से सहानुभूति दिखाने लगते हैं। इस बार भी वे इसे चुनावी मुद्दा बना चुके हैं। पीएमके का वीसीके नेता टी. तिरुमावालवन से समझौता है, लेकिन पहले भी इससे कोई लाभ नहीं मिला है। मुद्दा यह है कि रामदास की चालें ही उनकी राजनीतिक रणनीति है।
वह तेजी से पाला बदलने वालों में रहे हैं और लगता है कि इस बार भी अपनी पार्टी के लिए उन्होंने काफी सोचसमझ कर सबकुछ तय किया है। ऐसे में इस बार का आकलन क्या है? जब 16 मई को परिणाम सामने आएंगे तो हो सकता है कि केंद्र में कांग्रेस और भाजपा की अगुवाई वाले राजग की सीटें बराबर रहें।
पीएमके के साथ होने से जयललिता तमिलनाडु-पांडिचेरी में 40 में से 25 या 30 सीटें तक हासिल कर सकती हैं। ऐसे में इसकी केंद्र में सरकार के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। और रामदास एक बार फिर अपनी पीएमके के साथ वहां विराजमान होंगे।
