मुख्य कार्य अधिकारियों (सीईओ)के लिए यह वक्त असमंजस भरा है क्योंकि अर्थव्यवस्था की विकास दर पर मंदी हावी है, भविष्य तनावपूर्ण दिख रहा है और ऐसे में अच्छी प्रतिभाओं को संभालकर रखने के लिए ज्यादा भुगतान की जरूरत होगी।
इन दिनों ज्यादातर कंपनियां कर्मचारियों को आकर्षित करने, उसे बनाए रखने और प्रोत्साहित करने के लिए परिवर्तनीय वेतन (वेरियेबल पे) का सहारा ले रही हैं, कम से कम उन कर्मचारियों की खातिर जिसे वे कंपनी में बने रहना देखना चाहती हैं।
हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन अंतर यह है कि अब कंपनियां परिवर्तनीय वेतन के संबंध में कठोर हो गई हैं क्योंकि अच्छा प्रदर्शन करने वालों की संख्या काफी कम है और निराशाजनक प्रदर्शन करने वाले भी कम ही हैं।
अगर आपके सुपरवाइजर एकसमान प्रदर्शन पर भी पिछले साल मिले ग्रेड-ए की बजाय इस साल ग्रेड-बी दे रहे हों तो फिर चौंकने की आवश्यकता नहीं है। इन्फोसिस जैसी कंपनियां ऐसा ही कर रही हैं। प्रदर्शन को आधार मानते हुए होने वाला अप्रैजल यानी आकलन काफी कठिन कर दिया गया है क्योंकि वहां देने के लिए खास रकम नहीं है। इसलिए कुछ ही लोगों को मलाई देना बेहतर होगा, बजाय इसके कि मूंगफली बांटकर सभी लोगों को नाराज कर दिया जाए।
हेविट की स्टडी के मुताबिक, सर्वे में शामिल 30 फीसदी संगठनों ने तय वेतन में बढ़ोतरी की बजाय इसे प्रदर्शन से जोड़ दिया है। भारतीय कंपनियों को हालांकि वेतन में परिवर्तनीय हिस्से की बाबत अमेरिकी कंपनियों के औसतन 75 फीसदी हिस्से के मुकाबले अभी लंबी दूरी तय करनी है।
हालांकि कई मामलों में यह 50 फीसदी तक पहुंच चुका है। पांच साल पहले यह पांच फीसदी हुआ करता था। उपभोक्ता सामान बनाने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर का उदाहरण लिया जा सकता है। इस कंपनी ने परिवर्तनीय वेतन में भारी इजाफा किया है और इसका मुख्य मानदंड यह है कि कोई कर्मचारी कितना ज्यादा बाह्य रूप से सक्षम है, यानी उसकी रफ्तार कैसी है।
हाल में हुई मर्सर के अध्ययन में कहा गया है कि कंपनियां प्रदर्शन के आधार पर कर्मचारियों की रैंकिंग कर रही है कि क्या वह कर्मचारी टॉप परफॉर्मर के रूप में क्वालिफाई कर रहा है, दूसरी तरफ निराशाजनक प्रदर्शन करने वालों की रैंकिंग भी हो रही है ताकि कारोबार के प्रदर्शन पर प्रतिभा के असर को साफ तौर पर देखा जा सके।
हालांकि परिवर्तनीय वेतन का मामला यहां टिका रहेगा, लेकिन इसका क्रियान्वयन काफी जटिल हो सकता है। उदाहरण के तौर पर शुध्द रूप से प्रोत्साहन के रूप में दिए जाने वाले वेतन के जरिए कर्मचारी के मनमुताबिक कंपनी के विकास का खतरा बढ़ जाता है, न कि वैसा जो कंपनी के लिए सबसे अच्छा है। इस रणनीति के अपनाए जाने में दूसरा सवाल यह है कि कंपनी द्वारा किस चीज की माप की जानी चाहिए, प्रयास या प्रदर्शन, व्यक्तिगत या फिर टीम।
कभी-कभी परिवर्तनीय वेतन कर्मचारी को वैसी चीजों की तरफ प्रोत्साहित करता है जो उन्हें इनाम दिलाने में सहायक हो यानी इनाम के लिए जिसकी दरकार हो। कभी-कभी इसे वैसी चीजों के शर्त पर भी अंजाम दिया जाता है जो संगठन के हक में हो सकता है।
उदाहरण के तौर पर अगर कोई कंपनी परिवर्तनीय वेतन लागू करती है, लेकिन इसकी माप और इनाम के लिए परफॉर्मेंस मैनेजमेंट सिस्टम का इंतजाम नहीं कर पाती है तो चीजें अपने आप समाप्त हो जाती है। सबूत के तौर पर निम्न उदाहरण को देखा जा सकता है।
सीईओ ने पाया कि हर विभाग में लोग उत्साहित हैं और इससे कंपनी को आगे बढने में मदद मिल रही है। बिक्री से जुड़ी टीम अपने लक्ष्य में कामयाब रही और बड़ी संख्या में ऑर्डर भी मिले। उत्पादन से जुड़ी टीम ने काम के घंटे बढ़ाकर इसे पूरा किया और साल में कंपनी ने रिकॉर्ड विकास दर हासिल कर ली।
हर किसी के दिमाग में यही आएगा कि यह अच्छा टीम वर्क था। लेकिन जब प्रोत्साहन की घोषणा की गई तो सब कुछ ढक सा गया। बिक्री से जुड़ी टीम को सबसे ज्यादा फायदा मिला क्योंकि उन्होंने ज्यादा ऑर्डर हासिल किए थे। लेकिन उत्पादन से जुड़ी टीम की प्रोत्साहन राशि लागत पर आधारित हो जाएगी यानी कम से कम लागत में वह कितना उत्पादन करने में सफल हुए, ऐसे में काम के घंटे बढ़ाने का भी कोई फायदा नहीं।
इसका मतलब यह हुआ कि संगठन के टीम वर्क में गिरावट आई। ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे कि कैसे परिवर्तनीय वेतन की योजना सही अंजाम तक नहीं पहुंच सकती अगर कर्मचारियों के प्रोत्साहन को सच्चाई के आईने में नहीं देखा जाए।
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के इस उदाहरण से भारतीय कंपनियां काफी अच्छा कर सकती हैं। इसमें कहा गया है कि अच्छी सोच पर आधारित परिवर्तनीय वेतन की योजना भी गलत हो सकती है अगर इस पर पूरी तरह से विचार-विमर्श नहीं किया गया हो।
ह्यूलिट पैकर्ड की किसी यूनिट में मैनेजर ने टीम का लक्ष्य तय करते हुए एक कार्यक्रम पेश किया जिसकेतहत टीम के लिए तीन संभावित इनाम का प्रावधान रखा गया। शुरुआती दौर में सबकुछ ठीक-ठाक था, लेकिन जल्दी ही शिकायतें शुरू हो गईं।
टीम जल्दी ही निराशा से भर गई क्योंकि डिलिवरी के काम ने उनके कार्य पर असर डाला और जल्दी ही यह नियंत्रण से बाहर हो गया। अच्छा प्रदर्शन करने वाली टीम ने उन लोगों को शामिल करने से इनकार कर दिया जिसकेबारे में उनकी राय थी कि विशेषज्ञता के लिहाज से इनका स्तर नीचे है।
टीम के बीच मोबिलिटी सीमित कर दी गई, विभिन्न टीमों के बीच सीखने-सिखाने के काम को रोक दिया गया। अच्छी तनख्वाह पाकर उनकी जीवनशैली भले ही अच्छी हो गई हो, लेकिन जब वे लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएंगे तब उन्हें निराशा होगी।
मैनेजरों ने महसूस किया कि वेतन प्रणाली को दोबारा बनाने में खासा समय जाया हो रहा है। अंतत: उन्हें लगा कि इसके जरिए कर्मचारी मेहनत करने को प्रोत्साहित नहीं होंगे, लिहाजा तीन साल के अंदर योजना को किनारे रख दिया गया। भारतीय कंपनियों को भी इस पर विचार करना चाहिए।
