दुनिया में आकर्षण का बड़ा केंद्र माना जाने वाला रियो कार्निवाल वर्ष 2020 में महामारी की चपेट में आने से बाल-बाल बचा था। लेकिन इस साल रियो डि जनेरियो शहर में कार्निवाल का आयोजन नहीं हो सका है। इसकी वजह से करीब 25,000 रोजगार अवसर पैदा नहीं हो पाए और अगर वित्तीय प्रभाव की बात करें तो ब्राजील के व्यापार परिसंघ के मुताबिक रियो कार्निवाल रद्द होने से करीब 1.5 अरब डॉलर की वित्तीय क्षति होने का अनुमान है। निश्चित रूप से हमारे जीवनकाल में पहली बार आई इस महामारी ने समारोहों के आयोजन एवं विभिन्न सामाजिक-धार्मिक समारोहों के आर्थिक योगदान पर बहुत बुरा असर डाला है। म्यूनिख के अक्टूबरफेस्ट समारोह में अमूमन करीब 60 लाख लोग शिरकत करते रहे हैं लेकिन एक बार इसे रद्द किया जा चुका है जिससे म्यूनिख शहर एवं इसके खस्ताहाल आतिथ्य उद्योग को करीब 1.2 अरब डॉलर की राजस्व क्षति होने का अनुमान है।
दुर्गा पूजा के बारे में क्या आकलन है? शरद ऋतु में हर साल धूमधाम से मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा समारोह बंगाल का मुख्य सांस्कृतिक आयोजन है और कई लोगों के लिए तो यह आजीविका का एक जरिया भी है। बंगाल के गली-मोहल्लों में हजारों की संख्या में अस्थायी पंडाल बनाए जाते हैं जहां पर लगी दुर्गा प्रतिमाओं को देखने के लिए लोग हजारों की संख्या में पहुंचते हैं। जगमगाती रोशनी से सराबोर सड़कें, स्ट्रीट फूड के स्टॉल से उठने वाली लजीज महक और लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ मिलकर दुर्गा पूजा को दुनिया का सबसे बड़ा स्ट्रीट फेस्टिवल बना देते हैं।
दुर्गा पूजा से जुड़ी अर्थव्यवस्था के बारे में कोई ठोस आकलन अभी सामने नहीं आया है। वर्ष 2013 में उद्योग मंडल एसोचैम की रिपोर्ट में बंगाल की दुर्गा पूजा अर्थव्यवस्था का आकार करीब 25,000 करोड़ रुपये बताते हुए कहा गया था कि यह सालाना 35 फीसदी की चक्रवृद्धि दर से बढ़ रहा है। इतनी उच्च वृद्धि दर लंबे समय तक कायम नहीं रह सकती है लेकिन अगर ऐसा होता तो वर्ष 2021 में दुर्गा पूजा अर्थव्यवस्था का आकार करीब 2.75 लाख करोड़ रुपये हो चुका रहता, बशर्ते कि महामारी ने दखल नहीं दिया होता। दुर्गा पूजा की अर्थव्यवस्था का सटीक आकलन कर पाना काफी मुश्किल है लेकिन इतना तय है कि पश्चिम बंगाल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में दुर्गा पूजा का आनुपातिक हिस्सा अच्छा-खासा है। अन्य समारोहों का उनकी अर्थव्यवस्थाओं में आनुपातिक अंशदान आम तौर पर 2 फीसदी या उससे भी कम होता है।
महामारी के ठीक पहले ब्रिटिश काउंसिल के लिए क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी एवं आईआईटी खडग़पुर द्वारा किए गए एक शोध में यह सामने आया था कि पश्चिम बंगाल में 2019 की पूजा के दौरान 32,377 करोड़ रुपये की एक विशाल ‘रचनात्मक अर्थव्यवस्था’ पैदा हुई थी जो कि राज्य के जीडीपी का 2.58 फीसदी था। इस अध्ययन में दुर्गा पूजा से जुड़े दस रचनात्मक उद्योगों से जुड़े आंकड़ों को शामिल किया गया था। पूजा के दौरान खुदरा बिक्री में हुई वृद्धि का अंदाजा उससे पहले के महीने के बिक्री आंकड़े को घटाकर निकाला जाता है। हालांकि पूजा अर्थव्यवस्था इन आंकड़ों से कहीं आगे की चीज हो सकती है। पूजा की खरीदारियां व्यावहारिक तौर पर पूरे साल होती रहती हैं और पिछले कुछ वर्षों में तो ऑनलाइन खरीदारियों में तीव्र उछाल भी देखी गई है। इसके अलावा पूजा के महीने में बड़े पैमाने पर बंगाल निवासियों के आने एवं जाने से जुड़े यात्रा खर्च भी होते हैं।
इसमें शायद ही किसी को संदेह होगा कि कोविड काल में बंगाल की पूजा की चमक-धमक फीकी पड़ी है। पंडालों में की जाने वाली सजावटें कम हो गई हैं, देवी प्रतिमाओं का आकार भी काफी हद तक छोटा हो गया है और कोरोना संक्रमण से बचने के लिए भौतिक दूरी रखने की बाध्यता ने सड़कों पर भीड़ को भी कम कर दिया। ऐसी स्थिति में पूजा से संबंधित कई तरह के रोजगारों में कटौती होना अपरिहार्य था। उत्तर बंगाल के कुमारटोली में रहने वाले मूर्ति कलाकारों के लिए वर्ष 2020 का साल बेहद निराशाजनक रहा था। कोलकाता एवं अन्य स्थानों के पूजा पंडालों की सजावट का काम पारंपरिक तौर पर चंदननगर कस्बे के रोशनी उद्योग से जुड़े लोग ही करते रहे हैं। कोलकाता से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित चंदननगर के इन कारीगरों के पास पिछले साल की पूजा में शायद ही कोई काम था। दुर्भाग्य की बात है कि इस साल भी हालात के ज्यादा अलग होने की संभावना कम ही है। अन्य लोक कलाकारों की तरह पूजा के दौरान ढोल बजाने वाले ढाकियों की आजीविका पर भी कोविड-19 की मार पड़ी है। कारोबारों पर महामारी की तगड़ी चोट पडऩे से पूजा के लिए की जाने वाली फंडिग पर भी काफी असर पडऩे की आशंका है। कॉर्पोरेट फंडिंग एवं आउटडोर विज्ञापनों से प्राप्त राजस्व पूजा के लिए जुटाई गई कुल रकम का करीब 90 फीसदी तक होता है। पूजा पंडालों के इर्दगिर्द दुकानें लगाने वाले हॉकरों की आजीविका भी कम लोगों के आने से प्रभावित होती है।
फिर भी पर्यटकों पर निर्भर कई दूसरे बड़े समारोहों के विपरीत दुर्गा पूजा की अर्थव्यवस्था काफी हद तक आत्मनिर्भर है। मैं पूजा अर्थव्यवस्था को मोटे तौर पर चार प्रमुख श्रेणियों में बांटना पसंद करूंगा। सामुदायिक पूजा, पंडालों का भ्रमण, पर्यटन एवं पूजा मार्केटिंग का पूजा अर्थव्यवस्था में अनुमानित अंशदान क्रमश: 15 फीसदी, 10 फीसदी, 25 फीसदी और 50 फीसदी तक होता है।
पिछले डेढ़ साल का समय महामारी के चंगुल में रहते हुए बीता है, ऐसे में मेरा अनुमान है कि इस साल इन श्रेणियों पर होने वाला व्यय वर्ष 2019 की तुलना में क्रमश: करीब 40 फीसदी, 50 फीसदी, 20 फीसदी और 70 फीसदी ही रहेगा। इस तरह इस साल की कुल पूजा अर्थव्यवस्था के 2019 की तुलना में करीब आधा ही रहने के आसार हैं। यह हकीकत की एक अशुद्ध तस्वीर हो सकती है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि अन्य पहलुओं की तरह पूजा अर्थव्यवस्था भी महामारी से ध्वस्त हो गई है।
फिर भी आज एक नई दुनिया बन रही है और पूजा का भी आभासी हकीकत की दुनिया से तालमेल बिठाना लाजिमी है। पिछले साल सैकड़ों पूजा पंडालों की ऑनलाइन स्ट्रीमिंग हुई थी। साफ है कि इस साल इन पंडालों की संख्या, स्ट्रीमिंग गुणवत्ता एवं कवरेज बढऩे वाली है। यह निश्चित रूप से समय के साथ जश्न एवं अर्थव्यवस्था का एक वैकल्पिक खाका तैयार करेगा।
(लेखक भारतीय सांख्यिकीय संस्थान कोलकाता में प्रोफेसर हैं)
