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  लेख  दिलों को भा रही हैं पाकिस्तानी फिल्में, जेब को नहीं
लेख

दिलों को भा रही हैं पाकिस्तानी फिल्में, जेब को नहीं

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —July 22, 2008 10:25 PM IST
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भारत में पाकिस्तानी फिल्मों का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है। खास तौर पर तो मल्टीप्लेक्सों में तो इनके लिए लंबी कतारें देखी जा सकती हैं, लेकिन भारतीय डिस्ट्रीब्यूटर को पाकिस्तानी फिल्मों से ज्यादा मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं।


वजह यह है कि पाकिस्तानी फिल्में उत्तर भारत में तो खासी पसंद की जा रही है, लेकिन दक्षिण के सिनेमा हॉलों में सन्नाटा ही पसरा है। दरअसल, पंजाब, राजस्थान और गुजरात पाकिस्तान से सटे हुए हैं और इस वजह से वहां लोग पाकिस्तानी जुबान और तहजीब को भी बखूबी समझते हैं।

दूसरी तरफ, दक्षिण भारत में इन फिल्मों से लोग खुद को जोड़ नहीं पा रहे हैं। इसी वजह से तो हिंदुस्तानी डिस्ट्रीब्यूटरों की कोशिश यही है कि वे ऐसी फिल्मों को चुने जो ज्यादा से ज्यादा उत्तर भारतीयों के दिलों को जीत सकें। वैसे, पाकिस्तानी फिल्में मल्टीप्लेक्सों में तो अच्छा खासा कारोबार कर रहीं हैं, लेकिन छोटे सेंटरों में ये फिल्में अब तक अपना खाता नहीं खोल पाई हैं।

अगले महीने भारत और पाकिस्तान के थियेटरों में ‘रामचंद पाकिस्तानी’ रिलीज हो रही है। पाकिस्तान में यह फिल्म एक अगस्त को  और भारत में 22 अगस्त को रिलीज हो रही है। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड की अनुमति पहले से ही मिल चुकी है। इस साल भारत में रिलीज होने वाली तीसरी पाकिस्तानी फिल्म है। इसके पहले इस साल ‘खुदा के लिए’ और ‘सलाखें’ हिंदुस्तानी सिनेमाघरों में अपनी तकदीर आजमा चुकी हैं। ‘खुदा के लिए’ को लोगों ने खूब पसंद किया, जबकि ‘सलाखें’ का कोई नामलेवा भी नहीं रहा।

‘रामचंद पाकिस्तानी’ के डिस्ट्रीब्यूशन की कमान भी ‘खुदा के लिए’ का वितरण करने वाली कंपनी परसेप्ट पिक्चर ने ही संभाली है। इस फिल्म में मशहूर भारतीय अभिनेत्री नंदिता दास ने भी काम किया है। यह महरीन जब्बार द्वारा निर्देशित पहली फिल्म है। इस फिल्म के निर्माता जावेद जब्बार हैं। इससे पहले ‘खुदा के लिए’ 43 साल के बाद भारत में रिलीज हुई पहली पाकिस्तानी फिल्म थी। सन 1965 में बॉलीवुड की फिल्मों पर पाकिस्तान में प्रतिबंध लगा दिया गया था।

लेकिन इस साल ‘खुदा के लिए’ जब रिलीज हुई तो पाकिस्तानी फिल्म निर्माताओं की उम्मीदें भी बढ़ी हैं। ‘खुदा के लिए’ में मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने भी काम किया था और इसको लोगों ने खूब सराहा। लेकिन यह फिल्म कुल मिलाकर सिर्फ पांच करोड़ रुपये का कारोबार कर पाई। परसेप्ट पिक्चर कंपनी के डिस्ट्रीब्यूशन हेड अशोक आहूजा का कहना है, ‘पाकिस्तानी फिल्मों को भारत में अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। इससे पहले ‘खुदा के लिए’ ने भी अच्छा व्यापार किया था। इस फिल्म की 64 प्रिंट रिलीज की गई थी।

हमारी कोशिश थी कि हम ‘रामचंद पाकिस्तानी’ को एक साथ भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में रिलीज हो लेकिन सेंसर बोर्ड से अनुमति थोड़ी देर से मिलने के कारण ऐसा हो नहीं पाएगा। हम ऐसी फिल्मों को प्रमोट करना चाहते हैं जो कोई संदेश देती हों।’ आहूजा के मुताबिक ‘रामचंद पाकिस्तानी’ की 60 से 70 प्रिंट रिलीज होगी। यह फिल्म 70 से 75 मल्टीप्लेक्स में रिलीज होगी। परसेप्ट पिक्चर कंपनी को ही इस फिल्म के लिए इंटरनेट, विडियो, सैटेलाइट और म्यूजिक राइट्स भी मिले हैं।

गौरतलब है कि ओसियान फिल्म फे स्टीवल में इस फिल्म को बेस्ट क्रिटिक फिल्म अवॉर्ड भी मिला है। कहा यह जा रहा है कि ऐसी फिल्मों के जरिए पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री और पाकिस्तानी फिल्मों का बाजार तरक्की कर रहा है। फिल्म समीक्षक बी.बी. नागपाल ऐसा मानते हैं कि पाकिस्तानी फिल्मों के भारत में रिलीज होने से भारत के मुकाबले पाकिस्तान को ज्यादा फायदा होगा। इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान के लोग पाइरेटेड डीवीडी और वीसीडी के जरिये तो भारतीय फिल्में देख ही लेते थे, लेकिन भारत में पाकिस्तानी फिल्में नहीं आ पा रही थीं।

अब ऐसे माहौल बनने से पाकिस्तानी फिल्म निर्माताओं को फायदा होगा। नागपाल के मुताबिक पाकिस्तानी फिल्म निर्माता ऐसी कोशिश जरूर करेंगे कि वे यहां को-प्रोडक्शन के काम को अंजाम दें और अपने फिल्मों की पोस्ट प्रोडक्शन भी यहां करें क्योंकि यहां की तकनीक विकसित है। राही कम्युनिकेशन के सीईओ नीरज गुप्ता का कहना है, ‘पाकिस्तान से आने वाली फिल्मों के लिए मुनाफा से ज्यादा सांस्कृतिक आदान-प्रदान का पहलू महत्वपूर्ण हो जाता है।

वैसे भी हमारे देश की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के मुकाबले ज्यादा मजबूत है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि हम पाकिस्तान की कोई ऐसी फिल्में रिलीज कराना चाहते हैं जिससे हमें ही घाटा हो। हम ऐसी फिल्मों के लिए तरजीह दे रहे हैं जिसमें कोई खास संदेश दिया गया है। भारत-पाकिस्तान के संबंधों के लिए भी यह फिल्म काफी खास है। यह फिल्म 3 से 4 करोड़ बजट की फिल्म हैं जो पाकिस्तान के लिए बड़ी बजट की फिल्म मानी जा सकती है।’ इससे पहले शोएब मंसूर की फिल्म ‘खुदा के लिए’ को भी परसेप्ट पिक्चर ने ही रिलीज किया था। इस फिल्म की 63 प्रिंट रिलीज की गई थी।

लगभग छह करोड़ रुपये की बजट वाली इस फिल्म ने छह करोड़ रुपये का मुनाफा पाकिस्तान में कमाया। पाकिस्तानी फिल्म उद्योग यानी लॉलीवुड के लिए यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर इतनी मोटी कमाई देने वाली पहली फिल्म है। ‘खुदा के लिए’ की ओपनिंग भारत में बहुत अच्छी रही थी और दर्शकों ने इसे काफी सराहा। मुक्ता आर्ट्स के अनिल ध्यानी का कहना है कि पाकिस्तानी फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर उम्मीदों के मुताबिक बेहतर रिस्पांस नहीं मिला लेकिन फिर भी इसने ठीक कारोबार किया।

उनका मानना है कि पाकिस्तानी फिल्में छोटे शहरों में उतनी चर्चित नहीं हो पा रही हैं इसकी वजह यह है कि काफी कम बजट की होने के कारण इनकी पब्लिसिटी उतनी नहीं हो पाती। इसकी एक खास वजह यह भी है कि इन फिल्मों में काम करने वाले कलाकार उतने मशहूर भी नहीं होते और न ही यहां उनका कोई शो होता है। इसके अलावा उन्हें थियेटर भी नहीं मिल पाता इसकी वजह से ये फिल्में केवल मेट्रो शहरों तक ही सीमित हो जा रही हैं।

ध्यानी के मुताबिक पाकिस्तानी फिल्म सलाखें छोटे शहरों में काफी पसंद की गई थी क्योंकि यह एक्शन मूवी थी।नीरज गुप्ता का कहना है कि पाकिस्तान में केवल 18 थियेटर हैं और वहां औसतन साल में एक फिल्म बनती है ऐसे में 3 से 4 करोड़  के बजट की फिल्म बड़ी ही मानी जाती है। ‘रामचंद पाकिस्तानी’ हाल ही में दिल्ली के ओसियान सिनेफैन फेस्टीवल में भी दिखाया गया। यह फिल्म वास्तविक जीवन की एक घटना पर आधारित है जिसमें एक पाकिस्तानी हिंदू लड़का और उसके पिता भटक कर भारतीय सीमा में चले आते हैं और बीएसएफ उन्हें पकड़ लेती।

इन दोनों को पाकिस्तानी जासूस के संदेह में भारतीय जेल में डाल दिया जाता है। नंदिता दास ने इसमें उस बच्चे की मां की भूमिका निभाई है, जो सीमा पार उनका इंतजार करती है। महरीन जब्बार ने कुछ बेहद प्रशंसनीय टीवी फिल्में भी बनाई हैं। गौरतलब है कि ‘खुदा के लिए’ फिल्म का डिस्ट्रीब्यूशन करने वाले परसेप्ट पिक्चर कंपनी ने इस फिल्म के निर्देशक शोएब मंसूर के साथ मिलकर एक ज्वाएंट फिल्म वेंचर लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।

ओसियान फिल्म फेस्टीवल के दौरान पाकिस्तान की पांच फिल्मों को दिखाया गया। इसमें से दो फिल्में ऐसी थीं जो शार्ट फिक्शन पर आधारित थीं जो भारत-पाक विभाजन पर आधारित थीं। इस तरह फिल्मों की एक सीरिज वहां बनाई जा रही है जिसमें 13 फिल्में शामिल है। इन्हीं फिल्मों में से दो फिल्में मसलन ‘दी विल ऑफ गुरुमुख सिंह’ और ‘दिस इज हिंदुस्तान, दैट इज पाकिस्तान’ यहां ओसियान फिल्म फेस्टीवल के दौरान दिखाई गईं। ये फिल्में हिंदुस्तानी लेखकों की कहानियों पर आधारित हैं। नागपाल का कहना है, ‘फिल्मों, कला और संस्कृति की ऐसी साझेदारी के जरिए ही भारत-पाक के संबंधों में गर्माहट आएगी।’

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