आर्थिक मंदी के इस दौर में विज्ञापन दाता भी इस फिराक में रहने लगे हैं कि कम पैसे में ही उपभोक्ताओं के साथ किस तरह से संवाद कायम किया जाए और कम खर्च वाले विज्ञापनों के जरिए उत्पादों का प्रचार-प्रसार भी हो सके।
प्रदीप गुहाजी ग्रुप को अलविदा कहने के बाद आउट ऑफ होम (ओओएच)एडवर्टाइजिंग के क्षेत्र में वह भी शामिल हो गए हैं। उनका मानना है कि ओओएच एडवर्टाइजिंग बहुत ही प्रभावशाली माध्यम है विज्ञापनों के लिए और इसके जरिए ब्रांड काफी फायदा भी उठाते हैं। गुहा की कंपनी स्ट्रीट कल्चर का खासा जोर डिजाइनिंग के अलावा ब्रांड के प्रचार प्रसार के लिए जमीनी स्तर की तैयारियां करने पर भी है।
गुहा का कहना है, ‘हम डिजाइनिंग और विज्ञापनों के लिए विज्ञापन के बड़े-बड़े बोर्ड और बस स्टॉप आदि का इंतजाम करने का काम नहीं संभालते हैं। हम एक तरह से एजेंसी की भूमिका में हैं जो सभी मीडिया के लिए तटस्थ होगा।’ आउटडोर एडवर्टाइजिंग का उद्योग लगभग 12.5 अरब रुपये का है। इस क्षेत्र में पहले से ही टाइम्स ओओएच, परसेप्ट ओओएच, फ्यूचर मीडिया, रिलायंस अनिल धीरुभाई अंबानी ग्रुप की बिग स्ट्रीट जो 2007 में बनी और सैम बलसारा का प्लेटिनम आउटडोर जैसी बड़ी खिलाड़ी मौजूद हैं और गुहा तो अभी हाल में ही इसमें शामिल हुए हैं।
ओओएच एडवर्टाइजिंग का कारोबार पहले केवल विज्ञापन बोर्ड तक ही सीमित थी लेकिन अब इस इंडस्ट्री के काम-काज में कई तरह के बदलाव देखने को मिले हैं। अब ओओएच एजेंसियां केवल शॉपिंग मॉल और इनस्टोर स्पेस तक ही अपनी पहुंच नहीं बना रही हैं बल्कि और भी कई जगहों पर अपनी मौजूदगी को दर्ज करा रही हैं। मोबाइल वैन के अलावा सड़कों पर बने बस स्टॉप तक यह आउटडोर मीडिया मशहूर हो रही है। मिसाल के तौर पर कहा जा रहा है कि दिल्ली एयरपोर्ट के स्पेस को टाइम्स ओओएच को तीन साल के लिए 150 करोड़ रुपये में बेचा गया है।
इसी तरह बिग स्ट्रीट को दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के स्टेशन पर विज्ञापनों को दिखाने का अधिकार दिया गया है। टाइम्स ओओएच के प्रबंध निदेशक सुंदर हेमराजानी का कहना है, ‘बुनियादी ढांचे में विकास की वजह से ही आउट ऑफ होम विज्ञापनों का कारोबार उभरा है। शहरों में माहौल थोड़ा बेहतर है, इसी वजह से ब्रांड को ऐसी जगहों में पेश करना बेहतर है।’ टाइम्स ओओएच अकेले ही मुंबई में लगभग 100 करोड़ रुपये के निवेश से 1400 बस स्टॉप बना रही है। इसके अलावा वह बेंगलुरु में 300 और हैदराबाद में 200 बस स्टॉप बनाएगी।
फ्यूचर मीडिया के सीईओ पार्थो दासगुप्ता का कहना है, ‘ किसी भी ब्रांड के लिए यह जरूरी होता है कि वह वैसी जगह पर मौजूद हो जहां उसका उपभोग होता है और जहां उसके उपभोक्ता हों। ओओएच कंपनी के तौर हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम कुछ नए तरह के प्रयोग करें।’ फ्यूचर फ्यूल बनाने के लिए फ्यूचर मीडिया ने भारत पेट्रोलियम के साथ गठजोड़ किया है। यह एक तरह का टेलीविजन नेटवर्क है जो दिल्ली में स्थित भारत पेट्रोलियम के 20 पेट्रोल पंपों पर मौजूद होगा।
यह टेलीविजन नेटवर्क ऑडियो-विजुअल मीडिया के जरिए ब्रांड को अपने उपभोक्ताओं के साथ संवाद कायम करने का मौका देती है। इस तरह के स्क्रीन की संख्या 100 तक बढ़ने की उम्मीद है। फ्यूचर फ्यूल के अलावा कंपनी अपनी कुछ और भी नए पहल को विस्तार दे रही है। मसलन फ्यूचर थियेटर, फ्यूचर विजुअल स्पेस जिसे पूरी तरह से आधुनिक बनाया जाएगा। फ्यूचर मीडिया 150 से 200 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बना रही है और अगले डेढ़ सालों में नई अधिकारों को पाने की कोशिश करेगी।
बिग स्ट्रीट के सीईओ तरुण कटियाल का कहना है, ‘भारत में आउटडोर विज्ञापनों का उद्योग काफी बंटा और बिखरा हुआ है। लेकिन अब इस क्षेत्र के नए खिलाड़ियों की कोशिश है कि इस उद्योग को एकीकृत कर दिया जाए।’ मिसाल के तौर पर बिग स्ट्रीट ने दिल्ली मेट्रो, मोबाइल वैन, एलसीडी के अलावा बस स्टॉप पर भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब भी किसी ओओएच एजेंसी के साथ ब्रांड समझौता करती है तो वह एजेंसी उसे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा दिलाने का जरिया बन जाती है। अगले 2 सालों में बिग स्ट्रीट 200 से 500 करोड़ रुपये निवेश का इरादा कर रही है।
ओओएच विज्ञापन कंपनियां टेंडर की प्रक्रिया के जरिए सरकार से बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन, हाईवे आदि के लिए विज्ञापन अधिकार लेती है। जबकि इनस्टोर और मॉल के लिए यह डील सीधे तौर पर कर लिया जाता है। सरकार आमतौर पर 5 से 15 साल तक के लिए यह अधिकार देती है जबकि निर्माण पूर्व की तैयारी के लिए 5 से 7 साल दिया जाता है। हालांकि मॉल के संदर्भ में ओओएच कंपनी मॉल के मालिक के साथ 20 से 40 फीसदी की शेयरिंग के आधार पर मुनाफा कमाती है।
लेकिन मुनाफे की इस हिस्सेदारी में भी जगहों के मुताबिक फर्क आ जाता है। ओओएच की लगभग 60 से 70 प्रतिशत की संपत्ति सरकार के अंर्तगत ही आता है। परसेप्ट ओओएच के प्रेसीडेंट संजय पारिक का कहना है, ‘फिलहाल ओओएच इंडस्ट्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि इसकी सफलता का कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।’
कुछ दिलचस्प आंकड़े
प्राइस वाटरहाउस कूपर के मुताबिक आउटडोर विज्ञापन के उद्योग में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। साल 2007 में यह उद्योग 12.5 अरब रुपये तक पहुंच गया जो 2006 में 10 अरब रुपये का था। पिछले चार साल में यानी 2004-07 तक इसमें 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। उम्मीद है कि यह अगले 5 सालों में यह 24 अरब रुपये तक पहुंच जाएगी।