बीते सप्ताह सोमवार की रात व्हाट्सऐप और फेसबुक के ठप होने से इसके सबसे बड़े बाजार भारत में आपसी संवाद एवं कारोबार कई घंटों तक बंद हो गया। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर पैदा हुए व्यवधान से परेशान मोबाइल फोन धारक संदेशों के आदान-प्रदान के लिए एसएमएस का सहारा लेने के लिए बाध्य हुए। व्हाट्सऐप का इस्तेमाल दुनियाभर में 200 करोड़ लोग करते हैं जिनमें से अकेले भारत में ही करीब 40 करोड़ लोग हैं। इस तरह भारत में व्हाट्सऐप आपसी बातचीत का एक भरोसेमंद प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि एसएमएस के लिए परिदृश्य किस तरह के हैं? आज के समय में एसएमएस मुख्यत: ऑनलाइन लेनदेन और बैंक विवरणों के समय जारी ओटीपी हासिल करने का जरिया भर बनकर रह गया है। हालांकि मौजूदा दौर में एसएमएस भले ही एक निष्क्रिय सेवा है लेकिन अब भी फोन स्क्रीन पर इसकी मौजूदगी अपरिहार्य होती है। जब भी किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा होती है तो उसके लिए लोग व्हाट्सऐप, टेलीग्राम और सिग्नल जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं क्योंकि यहां पर हैकिंग एवं डेटा सेंधमारी का खतरा कम होता है। मोबाइल फोन के शुरुआती दिनों में एसएमएस संवाद का बेहद लोकप्रिय माध्यम हुआ करता था क्योंकि इसकी लागत वॉयस कॉल से कम होती थी। आज के समय में तो कोई भी दूरसंचार ऑपरेटर अपने पैकेज में एसएमएस को नि:शुल्क मुहैया कराते हैं, बशर्ते कि विदेश न भेजा जा रहा हो। इसके बावजूद एसएमएस की लोकप्रियता में लगातार गिरावट आती गई है। यहां तक कि सिनेमाघर चेन एवं एयरलाइंस जैसे कारोबारी प्रतिष्ठानों ने भी व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
अपने शिखर दौर में एसएमएस सेवा से किसी ऑपरेटर को कुल राजस्व का करीब 10 फीसदी मिलता था लेकिन आज यह हिस्सा नगण्य हो चला है। भारतीय दूरसंचार नियामक ट्राई के वर्ष 2020 के आंकड़े बताते हैं कि एसएमएस सेवा की कुल राजस्व में हिस्सेदारी सिर्फ 0.55 फीसदी ही है। एक साल पहले यह आंकड़ा 0.97 फीसदी था। वर्ष 2020 में प्रति ग्राहक औसत मासिक राजस्व (एआरपीयू) में एसएमएस का अंशदान सिर्फ 59 पैसे का रहा जो 2019 में 85 पैसे का था। वहीं कॉल से प्राप्त एआरपीयू 2020 में बढ़कर 17.72 रुपया हो गया जबकि 2019 में यह 8.12 रुपया रहा था।
हालांकि डेटा उपयोग आंकड़ों में आया बड़ा अंतर यह बता देता है कि आज मेसेजिंग सेवा में एसएमएस की जगह पर व्हाट्सऐप क्यों शीर्ष पर है? दूरसंचार उद्योग में 94.87 रुपये के औसत मासिक राजस्व में से डेटा का 2020 में अंशदान 81.81 रुपये का था। इसकी तुलना राजस्व संयोजन के नवीनतम आंकड़े से करें तो डेटा का अंशदान 76.69 फीसदी, कॉल का अंशदान 16.61 फीसदी और एसएमएस की हिस्सेदारी सिर्फ 0.55 फीसदी है।
वर्ष 2020 में वायरलेस ग्राहकों ने एक महीने में औसतन 16 एसएमएस भेजे थे जो 2019 की तुलना में 7.24 फीसदी कम था। वर्ष 2018 में यह आंकड़ा 18 संदेशों का था और कुल राजस्व में हिस्सेदारी 1.63 फीसदी थी। इसकी तुलना में डेटा उपभोग का राजस्व में हिस्सा 47.92 फीसदी का था जबकि कॉल का योगदान 15.82 फीसदी था। अगर हम वर्ष 2014 की दिसंबर तिमाही के आंकड़ों पर गौर करें तो एयरटेल एवं वोडाफोन जैसी जीएसएम सेवा प्रदाताओं के राजस्व में एसएमएस का अंशदान 2.9 फीसदी पर था। उससे भी पहले वर्ष 2007 में एसएमएस से दूरसंचार कंपनियों को 5 फीसदी राजस्व मिल रहा था।
एसएमएस से हासिल राजस्व में आई गिरावट के उलट डेटा के एआरपीयू आंकड़े लगातार मजबूत हो रहे हैं। वर्ष 2014 में वायरलेस डेटा का मासिक उपयोग प्रति ग्राहक 71.25 रुपये का था। उसके अगले साल यह बढ़कर 90.03 रुपये हो गया और फिर वर्ष 2018 तक इसी आंकड़े के इर्दगिर्द सिमटा रहा। वर्ष 2019 में यह आंकड़ा गिरकर 76.56 रुपये हो गया जिसके लिए दूरसंचार कंपनियों द्वारा दी जाने वाली बड़ी छूट को जिम्मेदार माना गया। फिर 2020 में यह बढ़कर 128.61 रुपये हो गया। डेटा से प्राप्त कुल वायरलेस उद्योग राजस्व हमें भावी परिदृश्य की भी झलक दिखाता है। वर्ष 2014 में 22,265 करोड़ रुपये रहा डेटा राजस्व बढऱ 1.1 लाख करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है। वर्ष 2020 में इसमें 90.71 फीसदी का जबरदस्त उछाल देखी गई। वायरलेस डेटा उपयोग से भी वही प्रवृत्ति उजागर होती है। वर्ष 2016 में सालाना 464.2 करोड़ जीबी डेटा की खपत हुई थी और वर्ष 2020 में यह बढ़कर 10352.2 करोड़ जीबी तक जा पहुंचा। इसमें से 4जी डेटा का अंशदान 96 फीसदी था और 3जी डेटा तीन फीसदी एवं 2जी डेटा सिर्फ 1 फीसदी था।
जिस समय भारत का टेली-घनत्व 88 फीसदी से अधिक हो चुका है, शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 141 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 60 फीसदी से अधिक पहुंच गया है, एसएमएस का इस्तेमाल करने वालों की संख्या गिनी-चुनी ही रह गई है। इसकी आशंका भी कम है कि व्हाट्सऐप बार-बार ठप होगा।
