लगता है वह दिन दूर नहीं है जब देश की सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों के पास कच्चे तेल का आयात करने के लिए पैसे की कमी पड़ जाए।
देश के उत्तरी इलाकों में डीजल की कमी की खबरें आने लगी हैं और इन इलाकों में कई पेट्रोल पंप सूखे पड़े हैं। एक सरकारी तेल कंपनी तो बड़ी साफगोई से यह कह भी चुकी है कि वह और डीजल की खरीद नहीं कर सकती, क्योंकि उसके पास पैसे नहीं हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो जिन चीजों को अब तक सरकार और तेल मार्केटिंग कंपनियों की मूल्य और वित्तीय समस्या के तौर पर देखा जाता रहा है, उसका नतीजा अब तेल सप्लाई संकट के रूप मे देखने को मिल सकता है। बावजूद इसके सरकार नींद में सोई हुई है और उसकी स्थिति एक खरगोश की-सी है, जिसे लगता है कि वह अपनी तेज चाल की वजह से रेस जीत जाएगी।
जैसा कि पेट्रोलियम सचिव कह चुके हैं, देश में तेल की कीमतें आज से करीब डेढ़ साल पहले बढ़ाई गई थीं। उस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 67 डॉलर प्रति डॉलर थी, जो आज बढ़कर 125 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ चुकी है। इस मामले में तेजी से बढ़ रहे नुकसान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले महीने ‘अंडर-रिकवरी’ (नुकसान के लिए थोड़ा सौम्य शब्द) 17.5 रुपये प्रति लीटर थी, जो अब बढ़कर 21 रुपये हो चुकी है।
यदि हालात ऐसे ही रहें तो तेल क्षेत्र की अंडर रिकवरी पिछले वित्त वर्ष के 77 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर मौजूदा वित्त वर्ष में 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच जाएगी, जिसके बड़े हिस्से की फंडिंग सरकारी तेल कंपनियों द्वारा की जाएगी। इन नुकसानों का नतीजा यह है कि इन कंपनियों में निवेशकों का भरोसा कम होता जा रहा है। बावजूद इसके ये कंपनियां बाजार के नियमों के बजाय सरकारी नीतियों पर चलने को मजबूर हैं।
सरकारी तेल कंपनियों का प्राइस टु अर्निंग रेश्यो (पीई रेश्यो) रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के पीई रेश्यो का महज एक छोटा हिस्सा भर हैं। गौरतलब है कि सरकार ने आरआईएल को सरकारी कंपनियों की तरह तेल सब्सिडी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद प्राइवेट सेक्टर की इस कंपनी ने देश भर में अपने 11,432 पेट्रोल-डीजल आउटलेट बंद कर दिए और अब सिर्फ ग्लोबल मार्केट में तेल की बिक्री करने पर जोर दे रही है।
यह बात भी ध्यान देने लायक है कि सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों के मार्केट कैपिटल में जबर्दस्त गिरावट दर्ज की जा रही है और यह नुकसान भी सरकार का ही है। ऐसे वक्त में दो कदम उठाए जाने की सख्त दरकार है। पहला यह कि सरकार तेल सब्सिडी के मसले पर पारदर्शिता बरतते हुए सरकारी तेल कंपनियों को हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें कैश मुहैया कराए।
दूसरा यह कि सरकार तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ ग्राहकों पर भी लादे। इस बात का ख्याल जरूर रखा जाए कि यह बोझ एकबारगी न लादकर धीरे-धीरे लादा जाए। यानी एक खास अवधि पर कीमतों में एक खास प्रतिशत की बढ़ोतरी की जाए।