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  लेख  चिंता का सबब नहीं है ओबामा की अर्थनीति
लेख

चिंता का सबब नहीं है ओबामा की अर्थनीति

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 5, 2008 9:55 PM IST
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बराक ओबामा के राष्ट्रपति चुनाव जीतने पर भारत में श्रम और पर्यावरणवादियों को कुछ चिंता हो सकती है, लेकिन जानकारों के मुताबिक ओबामा की अर्थनीति से भारत और अमेरिका के बीच कारोबार पर फिलहाल कोई फर्क नहीं पड़ेगा।


दरअसल श्रम और पर्यावरण के हलकों में हड़कंप इसीलिए मचा है क्योंकि ओबामा व्यापार समझौतों को श्रम और पर्यावरण के बेहतर मानकों के लिए इस्तेमाल करने की मंशा जता चुके हैं। इसके लिए अलावा वह विश्व व्यापार संगठन को भी ऐसे कारोबारी समझौते थोपने पर मजबूर कर सकते हैं, जिनसे हरेक देश को अपना बाजार अमेरिकी उत्पादों के लिए खोलना पड़ सकता है।

भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (आईसीआरआईआर) में व्यापार, प्रौद्योगिकी और प्रतिस्पद्र्धात्मकता विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अमित शोभन रॉय का कहना है, ‘इन दोनों मसलों का ही भारत पर गलत असर पड़ेगा। भारत को पहले से ही तैयार होना पड़ेगा और तय करना होगा कि उसे क्या नीति अपनानी है।’

उनके मुताबिक श्रम और पर्यावरण के मसले बस एक या दो साल के भीतर ही एक बार फिर अमेरिका की कार्यसूची में लौट आएंगे। फिलहाल अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। पिछले वर्ष भारत के कुल आयात में इसकी 8.36 फीसद और निर्यात में 17 फीसद हिस्सेदारी थी।

जानकार मानते हैं कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान अमेरिका को भारतीय निर्यात में 14 फीसद और भारत को अमेरिकी आयात में 80 फीसद का इजाफा हुआ था। हालांकि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ओबामा की जीत पर किसी तरह की चिंता में नहीं दिख रहे। उन्होंने उम्मीद जताई कि ओबामा के नेतृत्व में अमेरिका पहले की तरह भारत के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध बनाए रखेगा।

उन्होंने कहा, ‘आउटसोर्सिंग के बारे में ओबामा के मुंह से एक दो बातें निकलने का मतलब हमारे लिए चिंता की बात नहीं है। जब वह बतौर राष्ट्रपति काम शुरू कर देंगे, तब उन्हें अहसास होगा कि यह दुनिया जुड़ी हुई है और देशों को एक साथ काम करना होता है। अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत खुले बाजार वाली दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और दोनों को एक साथ काम करना है।’

बिजनेस स्टैंडर्ड ने जिन जानकारों से बात की, उनके मुताबिक ओबामा का आर्थिक एजेंडा नया नहीं है और हमेशा से अमेरिका की नीति ऐसी ही रही है। इसमें परिवर्तन की बात नहीं है। भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में डब्ल्यूटीओ अध्ययन केंद्र के प्रमुख विश्वजित धर ने कहा, ‘ओबामा की नीति का फौरी असर तो हमें दोहा विश्व व्यापार वार्ता के दौरान ही दिख सकता है।  अमेरिका इसमें सख्त रुख अपना सकता है और रसायन, इलेक्ट्रिकल और नॉन इलेक्ट्रिकल मशीनरी जैसे क्षेत्रों में आयात शुल्क खत्म करने की जिद कर सकता है।’

ओबामा की अर्थनीति

अमेरिकियों को रोजगार देने के लिए खुले विदेशी बाजार
दुनिया भर में श्रम और पर्यावरण के बेहतर मानक
अमेरिका को डब्ल्यूटीओ के जरिये मिले बड़ा बाजार
अमेरिकी श्रमिकों को ही नियुक्त करने वाली कंपनियों को सार्वजनिक ठेके

दुनिया बदलेंगे ‘सौभाग्यशाली’ बराक!
गांधी के मुरीद ओबामा

अमेरिका की कमान संभालने वाले पहले अश्वेत ओबामा हमेशा से अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के मुरीद रहे हैं। अश्वेतों को उनके हक दिलाने के लिए तकरीबन 95 साल पहले दक्षिण अफ्रीका में जंग छेड़ने वाले गांधी की तस्वीर सीनेटर ओबामा के दफ्तर में भी दिखती है।

ओबामा मानते हैं कि गांधी की प्रेरणा से ही दुनिया भर में उपनिवेशवाद की मुखालफत हुई और उस क्रांति ने ही तमाम देशों को आजादी दिलाई। ओबामा के मुताबिक गांधी साधारण से असाधारण बने।

मंदी, अफगानिस्तान और इराक, किस किस से जूझेंगे बराक

जॉर्ज डब्ल्यू बुश की सरकार से तोहफे  में बराक ओबामा को तीन बड़ी मुसीबतें मिली हैं। इराक, अफगानिस्तान और मंदी। चुनाव के दौरान भी कहा जा रहा था और अब भी माना जा रहा है कि इनसे निपटना उनके लिए आसान नहीं होगा।

इराक में अमेरिका के फौजियों की मौजूदगी ने खजाने पर केवल बोझ ही बढ़ाया है और पिछले काफी समय से आरोप लग रहा है कि अमेरिका ने इराकी तेल पर कब्जे के लिए जंग छेड़ी। ओबामा को सम्मान के साथ इराक से निकलने का रास्ता ढूंढना होगा।

बुश सरकार की निंदा इसी वजह से हो रही थी और मैकेन की पराजय के पीछे भी इसे अहम वजह माना जा रहा है। इसलिए ओबामा को इस मुसीबत से जल्द से जल्द निपटना होगा। अफगानिस्तान में भी पिछले सात साल से अमेरिका को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है और न ही वहां लोकतंत्र की ठीक तरीके से स्थापना हो सकी है। इसके अलावा तालिबान ने अब भी वहां अमेरिका और अन्य देशों की फौज की नाक में दम कर रखा है। ओबामा के लिए यह भी परेशानी का सबब है।

नए अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने सबसे बड़ी परेशानी वैश्विक मंदी है। बेरोजगारों की फौज, दिवालिया होते बैंक, नकदी के टोटे जैसी दिक्कतों के बोझ तले घुटने टेक चुकी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाना ओबामा के लिए असल चुनौती है।

दरकते शेयर बाजार और ऋण संकट के बीच दिवालिया होते आम आदमी और कुहासे से भरे भविष्य को उजला बनाना उनके सामने फौरी चुनौती है, जिससे उन्हें व्हाइट हाउस में कदम रखते ही निपटना होगा।

ओबामा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘सौभाग्यशाली’। उन्हें अमेरिका को इन मुसीबतों से निजात दिलाकर साबित करना होगा कि वाकई वह बराक हुसैन ओबामा हैं, जो किस्मत वाले भी हैं।

economic policy of obama is not subject of tension
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