बॉलिवुड फिल्मों में ऐसे नाटकीय दृश्य अक्सर देखने को मिलते हैं। इसमें मरीज के हाथ-पांव में पट्टियां बंधी होती हैं।
डॉक्टर इस मरीज का ऑपरेशन कर बाहर निकलता है और चिंतित मुद्रा में खड़े परिवार के सदस्यों से कहता है कि उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश है, लेकिन अब सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में है।
बहरहाल वरिष्ठ सरकारी नुमाइंदे भले ही ऊंची महंगाई दर को रोकने संबंधी अपनी सीमाओं की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करें, लेकिन वह इस कड़वी हकीकत को मानने से इनकार नहीं कर सकते कि उनकी सीमाएं खत्म हो चुकी हैं। चाहे वे इस बात पर भरोसा करें या नहीं कि कोई बड़ी ताकत इस संकट से उबारने में उनकी मदद करेगी, लेकिन इतना तय है कि सरकार महंगाई को मारने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर चुकी है।
इतना ही नहीं महंगाई पर लगाम कसने के लिए कुछ वैसे कदम भी उठाए गए, जो उचित नहीं थे। अब सरकार को धैर्य धारण कर पिछले कुछ हफ्तों के दौरान उठाए गए कदमों का सही तरीके से पालन सुनिश्चित कराने में जुटना चाहिए। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पिछले शुक्रवार को जारी 26 अप्रैल के महंगाई दर के आंकड़ों में इन कदमों का प्रभाव देखने को मिल रहा है।
इस दौरान महंगाई की दर 7.61 फीसदी दर्ज की गई, जो इससे पिछले हफ्ते के 7.58 फीसदी के आसपास है। साथ ही विभिन्न कमॉडिटीज की कीमतों में भी बदलाव का रुख देखने को मिल रहा है। मसलन ज्यादातर खाद्य पदार्थों की कीमतें स्थिर हो गई हैं या इसमें हफ्ते-दर-हफ्ते गिरावट देखने को मिल रही है। खासकर तिलहन की कीमतों में उल्लेखनीय कमी हुई है।
आयात शुल्क में कमी की वजह से ऐसा मुमकिन हुआ है और यह घरेलू बाजार के लिए खतरनाक है। इस मामले में चाय को अपवाद की श्रेणी में रखा जा सकता है, जिसकी कीमतों में पिछले हफ्ते 11 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। महंगाई दर को बढ़ाने वाले अन्य कारक लोहा और स्टील की कीमतों में भी कमी हो रही है।
अगर ये संकेत इस बात का प्रमाण हैं कि महंगाई दर का दबाव कम हो रहा है, तो सरकार को इस समस्या के हल के लिए और ‘प्रशासनिक’ कदम उठाने से बचना चाहिए। मसलन प्रमुख सेक्टरों को कीमतें स्थिर रखने या घटाने के लिए मजबूर करने और वायदा बाजारों से छेड़छेड़ जैसी कवायदों पर विराम लगाए जाने की जरूरत है।
दरअसल इन ‘प्रशासनिक’ कदमों से बाजार की कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है और लंबी अवधि में समस्या और विकराल हो जाएगी, क्योंकि उत्पादक बाजार ट्रेंड नहीं भांप पाएंगे। महंगाई में कमी के संकेत मिलते ही सरकार के लिए पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में इजाफा करना उचित होगा।
डेढ़ साल के अंदर कच्चे तेल की कीमत दोगुने से ज्यादा बढ़ चुकी है और इस बाबत सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। आशंका है कि मुश्किल के इस दौर से उबरने के बाद सरकार इसमें पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं करेगी और यह कदम महज कार्रवाई का स्वांग भरने जैसा होगा न कि समाधान।