प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में चेतावनी दी कि भारत पर कोविड-19 महामारी की एक और लहर का खतरा मंडरा रहा है लिहाजा सतर्कता बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने राज्यों के स्तर पर संचालन समितियां बनाने और स्थानीय स्तर पर बढ़ते मामलों की पड़ताल के लिए अधिक स्थानीय कार्यबलों के गठन का आह्वान भी किया। उन्होंने राज्यों से बड़े पैमाने पर मामले बढऩे से रोकने की कोशिश के लिए कहा और यह भी दोहराया कि राज्य सरकारों को रैपिड ऐंटीजन जांच के बजाय संक्रमण की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर जांच पर अधिक ध्यान देना चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि कोविड टीके के विकास का तीसरा चरण शुरू होने की हालिया खबरों के बाद भी किसी तरह की ढिलाई नहीं बरती जाए। दो सफल टीका उम्मीदवारों फाइजर एवं मॉडर्ना के टीके भारत के मामले में उतने प्रासंगिक नहीं रहेंगे। रूसी टीके स्पूतनिक-5 ने भी हाल में कुछ अच्छे अंतरिम नतीजों की घोषणा की और इस समय भारत में इसका परीक्षण जारी है। लेकिन एस्ट्राजेनेका या ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के एजेडडी1222 टीके के तीसरे चरण के एक समूह के परिणाम भारत के लिहाज से बड़ी खबर है। इस टीके को पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कंपनी बना रही है। ब्रिटेन एवं ब्राजील में इस टीके के परीक्षणों ने कोविड-19 संक्रमण को 70 फीसदी तक रोकने में सफलता दर्शाई और एक छोटे परीक्षण समूह में 90 फीसदी तक सफलता दर दर्ज की गई।
इसकी पूरी गुंजाइश है कि वास्तव में एजेडडी1222 टीका 90 फीसदी से कम असरदार रहेगा। फिर भी यह सफलता की काफी अच्छी दर है क्योंकि टीकों को अमूमन 50 फीसदी असरदार होने पर भी मंजूरी दे दी जाती है। लेकिन कोविड महामारी तो एकदम अलग ही मामला है। यहां पर सवाल यह है कि महामारी के प्रसार पर काबू पाने में यह टीका कितना असरदार हो सकता है और उसे कितनी जल्दी बिक्री की मंजूरी मिलती है? टीके की प्रभावशीलता जितनी कम होगी, सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के लिए उतने ही अधिक लोगों को यह टीका लगवाना पड़ेगा। अकादमिक जगत ने अमेरिका की जनसंख्या के आधार पर अनुमान लगाया है कि महामारी के प्रसार पर काबू पाने के लिए 80 फीसदी से अधिक लोगों को 70 फीसदी प्रभावशीलता वाला टीका लगाने की जरूरत है।
फिलहाल एजेडडी1222 टीके को वर्ष 2021 के शुरुआती महीनों में जारी किया जा सकता है। टीका निर्माताओं का आकलन है कि भारत की मौजूदा तैयारियों को देखते हुए समूची आबादी को टीका लगाने में 2 साल से भी अधिक वक्त लग जाएगा। यह भी सच है कि यह अवधि महामारी से जुड़ी अड़चनों के कारण अर्थव्यवस्था पर काफी भारी पड़ सकती है। अर्थव्यवस्था की ऐसी हालत केवल सरकारी बंदिशों के कारण नहीं हुई है, जनसंख्या में बड़े पैमाने पर रोग-प्रतिरोधक क्षमता नहीं होने से कोविड की चपेट में आने की आशंकाओं की भी इसमें भूमिका रही है।
दूसरे शब्दों में, भारत में जब टीकाकरण को लेकर काफी हद तक स्पष्टता आती दिख रही है तो टीकाकरण को अमली जामा पहनाने के लिए पारदर्शी योजना बनाने का वक्त आ गया है। इस योजना में सार्वजनिक टिप्पणियों को जगह दी जाए, राज्य सरकारों के प्रयासों और एक त्वरित समय-सारणी का खाका खींचा जाए। प्रधानमंत्री द्वारा मुख्यमंत्रियों के सामने आज की गई टिप्पणियां खास तौर पर प्रासंगिक एवं स्वागत-योग्य हैं। मोदी ने जोर दिया है कि टीकाकरण की एक समय-सारणी जल्दी बना ली जाएगी और राज्य सरकारों को इसे अमल में लाने की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। सरकारी मशीनरी को प्रधानमंत्री के इन शब्दों पर खरा उतरना होगा। साल का अंत होने के पहले टीका लगाने से जुड़ी वृहद योजना यानी मास्टर प्लान तैयार हो जानी चाहिए।
