ऐसे वक्त में जब लोगों की नौकरियों पर तलवार लटकी हुई है अब नौकरी के अवसर मुहैया कराने वाली कंपनियां भी इसकी गिरफ्त में आ चुकी हैं।
देसी कंपनियों ने जहां एक ओर नई भर्तियों पर अघोषित पाबंदी सी लगा दी है। इस मंदी की तपिश अब स्टाफिंग कंपनियों में भी महसूस की जाने लगी है।
फिलहाल तो ये कंपनियां किसी भी तरह की छंटनी से इनकार कर रही हैं। साथ ही इनका यह भी कहना है कि अगर अगले साल भी इसी तरह के हालात कायम रहे तो फिर इनको भी छंटनी का रास्ता अख्तियार करना ही होगा।
दूसरी ओर, कुछ कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा चुकी है और कंपनियों के मानव संसाधन विभाग लागत में कटौती करने के लिए नई-नई तरकीब निकाल रहे हैं।
एक्सपर्ट्स एच आर (अमेरिकी एक्सपर्ट्स इंक. की सहयोगी कंपनी) में सेल्स और मार्केटिंग के उपाध्यक्ष ए. सुदर्शन कहते हैं, ‘पिछले छह महीनों में भर्तियों में 40 से 50 फीसदी की कमी आई है। लेकिन हमनें अपने स्टाफ में कमी नहीं की है। लेकिन अगले साल भी इसी तरह का बदतर दौर जारी रहा तो फिर हमें भी छंटनी तो करनी ही पड़ेगी।’
टीमलीज सर्विसेज के उपाध्यक्ष संपत शेट्टी कहते हैं, ‘हमारे राजस्व में 25 फीसदी तक की कमी आई है। यह मुश्किल वक्त है और इसमें हमें फैसले भी लेने होंगे। इसके हल तलाशे जा रहे हैं।’
कुछ लोगों का कहना है कि कई दूसरी चीजों ने भी नुकसान पहुंचाया है। दरअसल, अमेरिका में बड़े निवेश बैंकों के ढहने से प्रवासी भारतीय फिर से देश में रोजगार की संभावनाएं तलाश रहे हैं। इस वजह से भी घरेलू मांग पर मंदी का कुछ असर पड़ा है।
वहीं, ऐसे वक्त में अस्थाई कर्मचारियों की मांग बढ़ रही है। मा फोई मैनेजमेंट कंसल्टेंट के सीईओ और निदेशक ई. बालाजी कहते हैं, ‘हमने अभी तक किसी की छुट्टी नहीं की है।
अगर बैंकिंग, फाइनैंस, बीमा, ऑटो, विनिर्माण, रियल एस्टेट और रिटेल जैसे सेक्टरों में नौकरियां कम हो रही हैं तो फार्मा, स्वास्थ्य, लाइफ साइंसेज, ऊर्जा के गैर परंपरागत जैसे क्षेत्रों में नौकरियों के अवसर बढ़ भी रहे हैं।’
इन सेक्टरों में पहले अच्छे लोगों की कमी थी क्योंकि ज्यादातर इंजीनियर सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार के क्षेत्र में काम करने को तरजीह दे रहे थे।
मौजूदा वक्त में सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं के मंदी की जद में चले जाने से अब लोग दूसरे सेक्टरों का रुख करना ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं।
कंपनियां कर्मचारियों के अलावा दूसरे खर्चों में कटौती कर रही हैं। आइकोनियम कंसल्टिंग ग्रुप इंडिया के प्रबंध निदेशक पॉल टांगीराला कहते हैं, ‘लोगों को नौकरी से निकालने की बजाय हम अपने संसाधनों के अधिकतम उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं।
बिजली, टेलीफोन और इस तरह के दूसरे खर्चों में हमने 45 से 40 फीसदी की कटौती की है। बैक ऑफिस और परिचालन टीम को आपस में जोड़ दिया गया है। कुछ लोगों की तनख्वाह में कुछ कटौती कर दी गई है।’
भर्तियों में कमी के बाद कंपनियां अपने मौजूदा स्टाफ का अधिकतम उपयोग कर रही हैं और उसी से बेहतर नतीजों की उम्मीद कर रही हैं।
सुदर्शन कहते हैं, ‘पहले हर महीने हम 150 से 200 लोगों को नौकरी दिलाते थे। फिलहाल इस आंकड़े में काफी कमी आ गई है। इस वक्त हम हर एक भर्ती पर ज्यादा वक्त खर्च कर रहे हैं ताकि भर्ती का हमारा स्ट्राइक रेट बेहतर हो सके।’
टांगीराला कहते हैं, ‘हम औसत काम करने वाले को भी बेहतर ढंग से प्रशिक्षित कर रहे हैं ताकि काम करने वालों की बेहतर टीम तैयार की जा सके।’
शेट्टी भी कुछ इसी तरह कहते हैं, ‘हम नई गतिविधियों की शुरुआत कर रहे हैं। इसमें प्रशिक्षण, नये कारोबार, कौशल विकास जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। हम अपनी टीम को मजबूत बनाने पर ध्यान लगा रहे हैं ताकि जब बाजार में सुधार हो तब फिर से तेजी से काम किया जा सके।’
फिलहाल तो हालात में सुधार के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। 2009 की पहली तिमाही में हुए एक मैनपावर एंप्लॉयमेंट आउटलुक सर्वे के मुताबिक देश में इस दौरान पिछले साल की अवधि की तुलना में भर्तियों में कमी आई है।
इस नये साल की पहली तिमाही में सातों सेक्टरों और चारों क्षेत्रों में भर्तियों में कमी आई है। इसमें तिमाही दर तिमाही के लिहाज से 24 फीसदी और साल दर साल के लिहाज से 27 फीसदी की कमी आई है।