पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में हलचलों का दौर कायम है। ऐसे में डियाजियो इंडिया के प्रबंध निदेशक आसिफ अली इन हलचलों से अलग शांत दिखते हैं।
उनका ऐसा मानना है कि दुनिया की सबसे बड़ी शराब कंपनी की भारतीय शाखा पर इस मंदी का असर न के बराबर पड़ेगा। वह इस बात को बताने के लिए बहुत सारे शब्दजाल नहीं बुनते।
आदिल 12 घंटे काम करने के बाद शाम का वक्त बार में गुजारते हैं। उनका कहना है कि बाजार में अगर मंदी आ भी रही है तो भी ग्राहकों के अनिश्चित खर्च के तौर तरीकों के बावजूद डियाजियो के सबसे बेहतरीन ब्रांड जॉनी वॉकर स्कॉच और स्मिरनॉफ वोदका पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
भारत में कंपनी की 40 फीसदी विकास दर बेहद अविश्वसनीय है। अब तक बिक्री के लिहाज से देखें तो शराब के बड़े खिलाड़ी भारत की 5 बेहतरीन शराब कंपनियों की सूची में शामिल नहीं हो सके । वास्तव में ऐसी सूची में मुल्क की तीन कंपनियां, यूनाइटेड स्प्रिट्स लिमिटेड, मोहन मीकिन्स और रैडिको खेतान हैं।
शराब के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मसलन एनह्यूजर बुश, पेरनॉड रिकार्ड और एसएबी मिलर भी अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज नहीं करा सके हैं। इसके लिए सीमा शुल्क को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है।
फिलहाल आयातित शराब पर उसकी कीमत का 150 फीसदी कर लगता है। इसके अलावा राज्य कर, मूल्य वर्ध्दित कर यानी वैट की वजह से उसकी कीमत में 350 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाती है।
भारत में एल्कोहल राज्य का विषय है न कि केन्द्र का। हर एक राज्य कर वसूलते हैं और शराब पर अपने मन मुताबिक उत्पाद कर लगाते हैं। आदिल का कहना है, ‘भारत भी ऐसे ही 28 देशों में शामिल है जहां इस तरह की चीजें होती हैं।’
आदिल को पूरा यकीन है कि वे भारत में अगले तीन सालों में 4,154.9 करोड़ रुपये की आमदनी के लक्ष्य को पूरा कर लेंगे। आदिल ने शॉ वॉलेस के साथ सफलतापूर्वक काम किया। इसके अलावा मैकिंजी ऐंड कंपनी के साथ बखूबी साझेदारी भी निभाई।
उसके बाद आदिल वर्ष 2006 में डियाजियो इंडिया के प्रबंध निदेशक बन गए। आदिल ने अपने दोस्त मैरिको के हर्ष मारीवाला के साथ मिलकर सफल काया स्किन क्लिनिक चेन की स्थापना की है। जब उनको इस कारोबार में ज्यादा पैसे की जरूरत महसूस हुई तब उन्होंने वर्ष 2004 में इस कंपनी के 26 फीसदी की हिस्सेदारी बेच दी।
आदिल ने अपने कारोबारी अनुभव के जरिए ही डियाजियो के लिए एक रणनीति तैयार की जिसे बेहतरीन योजना का नाम दिया जा सकता है। मुल्क में यह कंपनी खुद में एक खास बदलाव ला रही है। कई लोगों को ऐसा लगा था कि रैडिको खेतान के साथ इसका संयुक्त उपक्रम खत्म हो चुका है।
दरअसल इस संयुक्त उपक्रम को इसीलिए बनाया गया था ताकि और भी नए ब्रांड को बनाया जा सके। इस संयुक्त उपक्रम को बनाने का मतलब था कि ज्यादा आयात कर की बाधाओं को दूर किया जाए। भारत में बनी हुई विदेशी शराबों की ब्रांड (आईएमएफएल) भी विदेशी ब्रांड की ही जैसी होती है।
इसे आयात नहीं किया जाता है। इसकी वजह से इस पर कोई सीमा शुल्क भी नहीं लगता, इस मायने में यह सस्ता पड़ता है। ऐसा माना जा रहा है कि डियाजियो की बातचीत यूएसएल में लगभग 15 फीसदी हिस्सेदारी लेने की बात चल रही है।
भारतीय बाजारों में भी डियाजियो इसके वितरण की साझेदारी करेगी। डियाजियो इंटरनेशनल के प्रवक्ता का कहना है, ‘डियाजियो इस बारे में स्पष्ट कर सकती है कि वह यूएसएल से संभावित सहयोग के लिए दोबारा समीक्षा कर सकती है।’
जे. पी. मॉर्गन की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘यूएसएल में हिस्सेदारी खरीदने के लिहाज से डियाजियो तगड़ी दावेदार है।’ ब्रांड कंसल्टेंट हरीश बिजूर कहते हैं, ‘मिड सेगमेंट ब्रांड को उतारना एक अच्छी रणनीति है। भारत में हेजिंग कारगर रणनीति है। किफायती कीमतें हमेशा लोगों को लुभाती हैं। इससे, उनके पास विकल्प बढ़ जाते हैं।’
डियाजियो को नये सिरे से सोचने की जरूरत है। प्रीमियम ब्रांडों की वजह से कंपनी की एक खास पहचान बनी हुई है। हालांकि इन महंगे उत्पादों से मुनाफा भी मोटा ही होता है।
आदिल कहते हैं, ‘मान लीजिए आपके पास दो विकल्प हों। पहला तो यह कि आप सबसे बड़ी कंपनी बन जाएं और दूसरा यह कि आप सबसे बेहतरीन कंपनी हों। हम दूसरा विकल्प चुनना ज्यादा पसंद करेंगे। जॉनी वॉकर की एक बोतल 3,600 रुपये में मिलती है। जबकि बैगपाइपर (यूएसएल की व्हिस्की ब्रांड) की बोतल 400 रुपये में मिल जाती है।
आप अंदाजा लगा लीजिए कि एक जॉनी वॉकर की कीमत में कितनी बैगपाइपर आ सकती हैं।’ भारतीय ग्राहकों में प्रीमियम ब्रांडों की उतनी पैठ नहीं है। हालांकि, विलासित के साथ भारतीयों का पुराना रिश्ता रहा है।
देसी राजा-महाराजाओं ने रॉल्स रॉयस और शेव्रोले की सेडान कारों के लिए बड़ा बाजार तैयार किया। लेकिन समाजवादी दौर में लोग अय्याशी पर कम खर्च करने लगे। डियाजियो फिर से पुराने दौर को दोहराने की सोच रही होगी।