एक बार फिर मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी उत्साहित करने वाली है क्योंकि इसमें कहा गया है कि चार महीने के मानसून के दौरान बारिश की मात्रा सामान्य के आसपास रहेगी, पर व्यवहार में यह कम उपयोगी है।
चाहे खेती की योजना बनानी हो या सिंचाई के लिए प्रमुख बांधों से पानी छोडना हो या पनबिजली का उत्पादन करना हो, यह सूचना पर्याप्त नहीं है। देश को यह भी जानने की दरकार है कि इस बारिश का समय क्या होगा और जगह कौन सी होगी, जिसके बारे में मौसम विभाग जून में यानी मानसून आने से ठीक पहले बात करता है।
अब तक लंबी अवधि की भविष्यवाणी रुझान पर ही असर डाल पाई है, जैसी कि शेयर बाजार में प्रतिक्रिया देखने को मिली। 17 अप्रैल को सेंसेक्स 3 फीसदी उछल गया था, लेकिन अंत में इसमें सिर्फ 0.7 फीसदी की बढ़त कायम रह पाई थी।
मानसून के सामान्य रहने की जानकारी का खैरमकदम ग्रामीण बाजार में दिलचस्पी रखने वाली कंपनियों ने भी किया है, जो कि आर्थिक गिरावट के इस दौर से कुल मिलाकर अप्रभावी रही हैं। जीडीपी में कृषि की भागीदारी घटकर 18 फीसदी पर आ गई है।
जीडीपी का बड़ा हिस्सा गैर-फसल क्षेत्र से आ रहा है, लेकिन अच्छी फसल वाला साल ग्रामीण इलाकों में आय और रोजगार के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है। इससे वहां खाने-पीने की चीजों की कीमतों पर असर पड़ेगा और अंतत: इसका असर गरीबी के स्तर पर भी देखा जाएगा।
मौसम विभाग का आकलन है कि मानसून के दौरान कुल बारिश करीब 96 फीसदी रहेगी और औसत बारिश 89 सेंटीमीटर होगी, जो कि 2007 से इस्तेमाल किए जा रहे सांख्यिकी मॉडल पर आधारित है। मानसून की भरोसेमंद भविष्यवाणी के उपकरण के तौर पर इस मॉडल की प्रामाणिकता स्थापित होनी अभी बाकी है क्योंकि अब तक का इसका रिकॉर्ड मिलाजुला रहा है।
पिछले साल पूरे मानसून सीजन के लिए इसने बारिश की मात्रा का आकलन सही-सही कर दिया था (99 फीसदी की भविष्यवाणी के मुकाबले यह 98 फीसदी रही थी)। लेकिन अलग-अलग महीनों में विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली बारिश के बारे में इसका आकलन सही नहीं था। इसने उत्तर-पश्चिम स्थित कृषि क्षेत्र के लिए जहां बारिश की मात्रा को कम करके आंका, वहीं जुलाई महीने के लिए आकलन जरूरत से ज्यादा कर दिया।
इस महीने में बारिश की मात्रा सामान्य से 17 फीसदी कम रही और इस वजह से समय पर बुआई के काम में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। साथ ही शुरुआती दौर में बोई गई फसल को नुकसान पहुंचा।
किसानों को जिस चीज की जानकारी की दरकार है, वह है मानसून के दौरान संभावित विपथगमन के बारे में जानने की – मानसून में देरी के बारे में, उस दौरान बारिश में रुकावट के बारे में और जल्दी या देरी से मानसून के लौटने के बारे में। दुर्भाग्य से इन मुद्दों के बारे में जानकारी देने के लिए मौसम विभाग या तो थोड़ा समर्थ है या बिल्कुल भी नहीं है।
इसमें परिवर्तन होने की एक और वजह है। वर्तमान ला नीना घटना (प्रशांत महासागर के ठंडा होने की घटना, जो मानसून पर सकारात्मक प्रभाव डालती है) के मई में समाप्त होने के आसार हैं। डर यह भी है कि कहीं यह अल नीनो (प्रशांत महासागर केपानी के गर्म होने की घटना) में परिवर्तित न हो जाए, जो कि मानसून के लिए प्रतिकूल हो सकता है।
