बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी अब सचमुच राज्य से बाहर हो गए हैं। रामविलास पासवान के निधन के कारण खाली हुई राज्य सभा सीट पर उनके नामांकन से यही लगता है कि प्रधानमंत्री ने उनके लिए कुछ और सोच रखा है। मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलें हैं और कहा जा रहा है कि उन्हें केंद्र सरकार में शामिल किया जा सकता है। उनके लिए यह अटपटा नहीं होगा। उनके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वह वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बारे में राज्यों के साथ 2011-13 के दौरान चली चर्चा के समय जीएसटी कार्यबल के प्रमुख थे। वर्ष 2012 में उन्होंने केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ सार्थक कामकाजी रिश्ता बनाकर जीएसटी पर चर्चा में नई जान फूंकने में भी अहम भूमिका निभाई थी। उसके बाद जीएसटी वार्ता आगे बढऩे लगी। बाद में वह जीएसटी को लागू करने से जुड़ी तैयारी के समय राज्यों को राजी करने में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के दाहिने हाथ भी बने।
लेकिन इस पूरे वक्त में सुशील मोदी को लेकर भाजपा असहज होती रही। लेकिन इसके लिए एक हद तक नीतीश कुमार भी जिम्मेदार थे। वर्ष 2010 के विधानसभा चुनावों में नीतीश ने अपने गठबंधन साझेदार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को साफ-साफ कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार के लिए बुलाने की कोई जरूरत नहीं है। उस समय नीतीश ने कहा था, ‘हमारे पास एक मोदी (सुशील मोदी) है ही तो दूसरे मोदी (नरेंद्र्र मोदी) की क्या जरूरत है?’ इसका परिणाम यह हुआ कि नरेंद्र्र मोदी बिहार चुनाव से दूर ही रहे। लेकिन मोदी के भरोसेमंद सिपहसालार अमित शाह समेत सभी ने नीतीश की इस टिप्पणी को जेहन में रखा। बाद में यह बयान इस नजरिये की वजह बना कि नीतीश एवं सुशील मोदी की जोड़ी को तोडऩे की जरूरत है। सुशील मोदी ने भी नीतीश की तारीफ कर इस धारणा को पुष्ट कर दिया था। उन्होंने द टेलीग्राफ को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘नीतीश तो प्रधानमंत्री बनने की काबिलियत रखते हैं।’
सुशील मोदी और बिहार भाजपा के बीच गंभीर मतभेद का पहला संकेत हाल ही में तब दिखा, जब उनके पसंदीदा लोगों को विधानसभा चुनावों की भाजपा प्रचार समिति से बाहर रखा गया। उन्होंने यह कहकर चिराग पासवान पर हमला बोला कि नीतीश को निशाना बनाने से गठबंधन की चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ेगा। इसके उलट भाजपा के दूसरे नेता चुपचाप रहते हुए नीतीश पर चिराग के हमलों का लुत्फ उठा रहे थे। पिछले हफ्ते नीतीश ने एक तरह से सुशील को सत्ता में बनाए रखने की कोशिश भी की। उन्होंने मोदी को विधान परिषद की आचार समिति का चेयरमैन नियुक्त किया है। जब जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तो इस समिति के प्रमुख नीतीश कुमार थे। लेकिन अब इसका कोई मतलब नहीं रहेगा।
सुशील मोदी के शुरुआती जीवन में झांकें तो पाएंगे कि तकनीक से उन्हें हमेशा ही लगाव रहा है। उन्होंने 1987 में ‘मोदी कंप्यूटर इंस्टीट्यूट’ के रूप में कारोबार में भी अपना हाथ आजमाया था जिसके लिए उन्होंने बैंक से 70,000 रुपये का कर्ज भी लिया था। उन्होंने रोमन कैथलिक जेसी जॉर्ज से शादी की थी जिनसे उनकी मुलाकात बंबई की ट्रेन यात्रा के दौरान हुई थी। जेसी पंछी देखने बंबई जा रही थीं। सुशील ट्रेन में ऊपर वाली सीट पर बैठे थे और जेसी निचली सीट पर बैठी थीं। दोनों ही पूरी रात बात करते रहे थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी को जब इस शादी का निमंत्रण मिला तो वह पटना पहुंचे और सुशील मोदी से सक्रिय राजनीति में आने के लिए कहा। उस समय तक सुशील को अहसास हो चुका था कि वह कारोबार के लिए नहीं बने हैं। वाजपेयी की सलाह मानकर सक्रिय राजनीति की दुनिया में कदम रखते ही उनका कारोबार बंद हो गया।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के तौर पर सुशील मोदी ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए कांग्रेस-विरोधी आंदोलन में बढ़-चढ़कर शिरकत की थी। उस समय नीतीश और लालू प्रसाद भी उनके साथ इस आंदोलन में शामिल थे। उन्हें आपातकाल के दौरान मीसा कानून के तहत पांच बार गिरफ्तार किया गया और कुल 24 महीनों तक वह जेल में रहे थे। उन्हें बचपन में ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित दो स्कूलों में पढऩे के लिए भेजा गया था। वह पटना यूनिवर्सिटी के वनस्पति-शास्त्र विभाग में 1973 में दूसरे स्थान पर रहे थे। हालांकि उनके परीक्षा में फेल होने के आसार थे लेकिन परीक्षा से ठीक पहले उन्होंने पूरी जान लगा दी थी। उसके बाद उन्होंने एमएससी में प्रवेश लिया लेकिन आंदोलन में शामिल होने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। वह इस विश्वास पर अडिग रहे कि समाज में हर किसी को अपनी इच्छा से धर्म का पालन करने का अधिकार है और ओडिशा में ग्राहम स्टेंस को जिंदा जलाने की घटना से आहत होकर उन्होंने खुलेआम नाराजगी भी जताई।
भले ही उनका कारोबार नाकाम हो गया था लेकिन तकनीकी उपकरणों के साथ उनका लगाव बना रहा। वह अपने स्मार्टफोन पर ही अखबार पढ़ते हैं। उन्होंने बहुत समय पहले ही अपने ब्लैकबेरी फोन की जगह आईफोन का इस्तेमाल शुरू कर दिया था और उनके पास आईपैड का नवीनतम संस्करण भी है।
दिल्ली की सत्ता में बैठे मोदी ही यह तय करेंगे कि पटना वाले मोदी के साथ क्या करना है। नई दिल्ली आने से वर्षों तक इनकार करते रहे सुशील मोदी अपने साथ बिहार की मिट्टी की खुशबू भी लाएंगे, जिसका स्वागत होगा।
