भारत आजादी के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है और इस अवसर पर प्रसन्न होने की तमाम वजह मौजूद हैं। अब जबकि देश बढ़े हुए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है तो मील का यह अहम पत्थर यह अवसर भी देता है कि हम इस सफर का निष्पक्ष आकलन करें। इससे भारत अपनी मजबूतियों में इजाफा कर पाएगा और कमजोरियों से निजात पाकर अपने नागरिकों के जीवन को अधिक गुणवत्तापूर्ण बना सकेगा।
यह संभव है कि आज लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन लक्ष्यों के बारे में बात करेंगे जो भारत को आजादी की सौवीं वर्षगांठ का उत्सव मनाने के समय तक हासिल करने चाहिए। भारत अगले 25 वर्षों में जो कुछ हासिल करेगा उसमें काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कैसा रहता है। भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ वैश्विक परिदृश्य में एक अहम अवसर पर मना रहा है। वैश्विक भूराजनीतिक व्यवस्था आंदोलित हो रही है और आने वाले वर्षों में वह भारत के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों पेश करेगी।
बीते 75 वर्षों में आर्थिक मोर्चे पर भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा है। हालांकि इस अवधि का शुरुआती आधा हिस्सा धीमी वृद्धि का रहा जबकि उत्तरार्द्ध में उत्पादन में तेज वृद्धि देखने को मिली। यह बेहतरी सन 1990 के दशक में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की बदौलत आई। सुधारों के कारण अर्थव्यवस्था में खुलापन आया, शुल्क गतिरोध कम हुए, अधोसंरचना विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया, सरकार ने कारोबार से दूरी बनानी शुरू की और ऐसे संस्थान स्थापित किए गए जो कारोबार का नियमन करने में सक्षम थे। सरकार ने इंसपेक्टर राज के सहारे हर चीज पर नियंत्रण रखना कम किया। बहरहाल, भारत एक वैश्विक महामारी तथा आजाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक झटके से उबर रहा है और इस बीच ऐसी चिंताएं सर उठा रही हैं कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और बाजार अर्थव्यवस्था को संचालित करने के लिए बने संस्थान हाल के वर्षों में कमजोर हुए हैं। भारत इन चिंताओं के साथ वह हासिल नहीं कर सकता है जो वास्तव में उसे करना चाहिए और जिसकी उसके पास क्षमता है। आने वाले वर्षों में सबसे बड़े लक्ष्यों में एक यह होना चाहिए कि देश के संस्थागत ढांचे को मजबूत बनाया जाए जो नागरिकों को आगे बढ़ने में मदद करेगा।
आर्थिक भविष्य को आकार देने के मामले में भारत का अपना अतीत रास्ता दिखाता है। अब यह बात सभी जानते हैं कि दशकों तक किस बात ने भारतीय अर्थव्यवस्था की राह रोक रखी थी और किस बात ने तेज आर्थिक वृद्धि हासिल करने में मदद की। उच्च वृद्धि वाले वर्षों ने बड़ी तादाद में परिवारों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला। ऐसे में यह अहम है कि भारत आर्थिक सुधारों और वृद्धि के बीच के संबंध को लेकर सचेत रहे। विकास के इस मोड़ पर सतत उच्च विकास भारत की आवश्यकता है। ऐसे में केंद्र और राज्यों की सरकारों को सुधारों को गति देने में प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करना चाहिए। अर्थव्यवस्था पर नीतिगत ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि वृद्धि का समान होना आवश्यक है। नीति निर्माताओं को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि वृद्धि हासिल करने के क्रम में पर्यावरण को नुकसान न हो।
सन 1990 के पहले अगर भारतीय अर्थव्यवस्था तमाम नेक इरादों के बावजूद अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी तो इसकी एक वजह यह भी थी कि वह बदलते वैश्विक माहौल से तालमेल नहीं कर पाई। भारत अब एक अहम मोड़ पर है और इसलिए आशंकाएं हैं कि यह दोबारा शुल्क आधारित संरक्षण और मनमाने नियंत्रण की पुरानी व्यवस्था में फिसल सकता है। इसका असर आर्थिक परिणामों तथा भारत की अपने नागरिकों को वांछित जीवन गुणवत्ता प्रदान करने की क्षमता पर पड़ेगा। वैश्विक व्यवस्था में आ रहे बदलाव को देखते हुए अब वक्त है कि भारत अपने लोकतंत्र को मजबूत करे और लोकतांत्रिक मूल्यों की बदौलत आकर्षक निवेश जुटाकर अगले 25 वर्षों के दौरान तेज विकास हासिल करे।