किसी भी मुल्क की हालत आप उस देश की महिलाओं के जीवन स्तर को देखकर ही बता सकते हैं।’ यह बात कही थी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, वह भी आज से पचास साल पहले।
आज हमें आजाद हुए 61 साल पूरे हो गए हैं। इस दौरान भारतीय नारी का पात्र भी देश के हालात के अनुसार बदला है और उसने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है। 1947 में महिलाओं ने देश की स्वतंत्रता के लिए घर की चारदीवारी से बाहर आई थी तो आज महिलाएं देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए बोर्डरूम में फैसले लेती हैं।
दुनिया की चौथी सबसे बड़ी खाद्य एवं बेवरेज कंपनी पेप्सी की चेयरमैन और मुख्य कार्यकारी इंदिरा नूई हैं। इंदिरा को इसी साल मार्च में अमेरिका-भारत व्यापार परिषद् का चेयरमैन भी बनाया गया है। मात्र 10,000 रुपये से 2,100 करोड़ रुपये कीमत की कंपनी बायोकॉन इंडिया स्थापित करने वाली किरण मजूमदार शॉ हो।
किरण को न्यू यॉर्क टाइम्स ने ‘इंडियाज मदर ऑफ इन्वेंशन’ कहा है। हावर्ड बिजनेस स्कूल से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाली पहली महिला नैना लाल किदवई देश में किसी विदेशी बैंक की प्रमुख बनने वाली पहली महिला भी हैं। किदवई एचएसबीसी इंडिया की प्रमुख हैं।
कॉर्पोरेट जगत से अलग अब महिलाएं उन सभी क्षेत्रों में नाम कमा रही हैं जिन पर पुरुषों का वर्चस्व रहा है। खेलों की बात करे तो सानिया मिर्जा ने टेनिस में भारतीय महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। आज भारतीय युवतियां कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स बनना चाहती हैं, उनकी तरह अंतरिक्ष तक जाना चाहती हैं। इससे कहीं न कहीं उनकी पंख फैलाकर सपनों के आसमान में उड़ने की इच्छा जाहिर होती है। अगर हम ऐसा कर पाएं तो हम सही मायनों में उन्हें आजाद हो पाएंगे।