जलशक्ति मंत्रालय ने 5 नवंबर, 2019 को नई राष्ट्रीय जल नीति (एनडब्ल्यूपी) का मसौदा तैयार करने के लिए समिति गठित की थी। इसके पहले वर्ष 1987, 2002 और 2012 की जल नीति पूरी तरह से सरकारी व्यवस्था के भीतर ही बनाई गई थीं। यह पहला अवसर है कि सरकार ने जल नीति बनाने के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति गठित की। मुझे 2019 में गठित समिति की अध्यक्षता करने का बड़ा सम्मान दिया गया। इस समिति के सदस्यों में विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले अग्रणी जल विशेषज्ञ, पहले सरकार के भीतर अहम पदों पर रह चुके लोगों के अलावा अकादमिक पेशेवर एवं नागरिक समाज के लोग भी शामिल हैं।
इस समिति की एक साल से ज्यादा समय में 16 बैठक हुईं। इस दौरान संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों, अकादमिक विद्वानों, कार्यकर्ताओं एवं अन्य हितधारकों ने 124 सुझाव पेश किए। इनमें 21 राज्यों एवं पांच केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों के अलावा केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों की प्रस्तुतियां भी शामिल हैं। हमें केंद्र एवं राज्य सरकारों से लेकर गैर-सरकारी हितधारकों के नजरिये एवं सुझावों में व्यापक सहमति दिखी। ऐसी स्पष्ट स्वीकृति दिखाई देती है कि हमारे समक्ष उत्पन्न जल संकट सही मायने में अभूतपूर्व है और हमें जल प्रबंधन एवं शासन के संदर्भ में जमीनी हकीकत एवं 21वीं सदी में पानी को लेकर बदलती समझ के बारे में एकदम नए प्रतिमान गढऩे की जरूरत है।
एक प्रारूप समिति के तौर पर हम सरकार के शीर्ष स्तर से जल संकट एवं उसके प्रबंधन को लेकर बार-बार दिए जा रहे संदेशों से खासे प्रभावित थे। भारत के राष्ट्रपति ने भी कोविड-19 महामारी के संदर्भ में कहा था, ‘प्रकृति को सम्मान देने का संदेश शायद हमारे लिए निहित है। एक असामान्य संकट की स्थिति में अधिकतर लोग स्वार्थी होना चाहते हैं लेकिन यह ऐसा संकट है जो हमें दूसरों के बारे में भी समान रूप से सोचना सिखाता है। प्रकृति हमें विनम्रता के साथ अपनी उत्कृष्ट समानता एवं परस्पर-निर्भरता को स्वीकार करने की याद दिलाती है।’ इसी तरह से उप-राष्ट्रपति ने भी कहा, ‘प्रकृति के संरक्षण को महत्ता देने, विकास के मॉडलों एवं उपभोक्तावाद से संचालित जीवनशैली को नए सिरे से निर्धारित करना होगा। हम एक अंतर-संबद्ध विश्व में रह रहे हैं और विकास एवं आधुनिकता की चाहत में पुरानी सोच के साथ आगे नहीं बढ़ सकते हैं क्योंकि हमारा हर कदम पर्यावरण को प्रभावित करता है।’
जल नीति के लिहाज से इन वक्तव्यों के तात्कालिक एवं दूरगामी निहितार्थ हैं। आजादी के बाद से ही हमारी जल नीति प्रकृति के बारे में ‘कमान एवं कंट्रोल’ वाले दृष्टिकोण से निर्धारित होती रही है। यह उस व्यापक विकास प्रतिमान में अंतर्निहित है जो इस तथ्य को अपनाने में नाकाम रहा है कि अर्थव्यवस्था वृहत पारिस्थितिकी का ही एक छोटा हिस्सा है। हमें इस दुनिया की अंतर्संबद्धता और अंतर्निर्भरता वाले चरित्र को स्वीकार करने की जरूरत है। इसके अलावा प्राकृतिक व्यवस्थाओं को वाजिब सम्मान देते हुए विनम्र बने रहने की भी जरूरत है। यह भाव ‘प्रकृति रक्षति रक्षिता’ (यानी प्रकृति उन्हीं का संरक्षण करती है जो उसकी सुरक्षा करते हैं) को आत्मसात करता है।
नई राष्ट्रीय जल नीति प्रधानमंत्री द्वारा सुझाए गए पांच प्रमुख जल सुधारों से भी दिशानिर्देश लेती रही है। पहला, भंडारण के लिए इस्तेमाल होने वाले विशाल जलाशयों को तोडऩे की जरूरत है। दूसरा, जल की योजना बनाते समय भारत के गहरी विविधता का सम्मान करना होगा। तीसरा, जल के प्रबंधन एवं वितरण पर ज्यादा ध्यान देना होगा। चौथा, पानी के पुनर्चक्रण एवं दोबारा इस्तेमाल को प्राथमिकता दी जाए। पांचवां, जल प्रबंधन के बारे में जन जागरूकता और जन भागीदारी बढ़ाना।
समिति ने जल शक्ति मंत्री के उस सुझाव से सहमति जताई कि अतीत की जल नीतियों के उलट नई राष्ट्रीय जल नीति सिर्फ पवित्र मंशाओं को दर्शाने वाला महज बयान और कागजी पुलिंदा भर न रह जाए बल्कि इसे जमीन पर भी उतारना होगा। इस तरह नई जल नीति विशिष्ट रणनीतियों का उल्लेख करने के साथ एक तय समयसीमा का भी उल्लेख करती है जिसमें इसके प्रमुख प्रावधानों को लागू किया जाएगा। राष्ट्रीय जल नीति को सार्वजनिक पटल पर रखकर लोगों से राय लेने की परंपरागत रवायत के साथ ही जल शक्ति मंत्री ने इस नीति के विभिन्न पहलुओं के बारे में हितधारकों के साथ खुलकर चर्चा करने के लिए मुक्त कार्यशालाओं के आयोजन की भी बात कही है। यह कदम स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति द्वारा तैयार राष्ट्रीय जल नीति पर भारत सरकार के कोई अंतिम फैसला लेने के पहले उठाया जाएगा। स्थापित प्रक्रिया के तहत जल नीति को अंतिम स्वीकृति देने का अधिकार राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद के पास होता है। प्रधानमंत्री इस परिषद के अध्यक्ष होते हैं और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य होते हैं।
यह प्रक्रिया जारी रहने के बीच मैं आने वाले समय में कई लेखों के जरिये पाठकों के समक्ष नई राष्ट्रीय जल नीति के अहम बिंदुओं और नीति में उन्हें शामिल करने के पीछे की सोच से अवगत कराने की कोशिश करुंगा। मैं अतीत से काफी अलग नजर आने वाली नीति के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित करने की भी कोशिश करुंगा ताकि यह पता चल सके कि नई सोच की जरूरत क्यों थी और इन्हें जमीन पर किस तरह लागू किया जाना है? मुझे उम्मीद है कि जल प्रबंधन से जुड़े तमाम हितधारक इस नीति पर होने वाली चर्चाओं में खुलकर शिरकत करेंगे ताकि नई राष्ट्रीय जल नीति में प्रस्तावित सिद्धांतों, दृष्टिकोण, प्रभाव बिंदुओं एवं दिशा को लेकर गहरी समझ पैदा हो सके।
(लेखक शिव नाडर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। वह नई राष्ट्रीय जल नीति का खाका तैयार करने वाली समिति के प्रमुख हैं)