अचल संपत्ति कारोबारियों के मुताबिक बाजार में खरीदार वापस आने लगे हैं और इसका असर अब मकानों की कीमतों पर भी पड़ेगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस वर्ष परिवारों की आय में कमी आने के बावजूद कोलकाता, संपत्ति खरीदने वालों के लिए देश के सात बड़े शहरों में सबसे सस्ता बाजार है। अन्य शहर हैं हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, बेंगलूरु, दिल्ली-एनसीआर और मुंबई। यह आकलन जेएलएल होम पर्चेज अफोर्डबिटिलटी इंडेक्स ने पेश किया है।
इसका काफी श्रेय आवास ऋण की दरों में भारी कमी को दिया जा रहा है। विभिन्न बैंक 7 फीसदी से भी कम दर पर आवास ऋण मुहैया करा रहे हैं जबकि केंद्रीय रिजर्व बैंक का कहना है कि गुंजाइश होने पर वह दरों में एक बार फिर कटौती करेगा। अचल संपत्ति कारोबार में तेजी के लिए कुछ अन्य घटनाएं भी उत्तरदायी हैं। आवास वित्त को नये सिरे से परिभाषित किया जा रहा है और इस कारोबार के नियम बदल रहे हैं।
रेटिंग एजेंसी इक्रा लिमिटेड की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2020 तक आवास वित्त बाजार का आकार 21.2 लाख करोड़ रुपये था। एक अन्य एजेंसी के मुताबिक देश में 1.64 करोड़ सक्रिय आवास ऋण खाते हैं। बैंकों की बाजार हिस्सेदारी करीब 66 फीसदी और आवास वित्त कंपनियों की 34 फीसदी है। इन कंपनियों का ऋण जोखिम करीब 7.1 लाख करोड़ रुपये है। हालांकि उनकी कुल ऋण परिसंपत्ति करीब 11 लाख करोड़ रुपये मूल्य की थी। इसमें वाणिज्यिक अचल संपत्ति, बिल्डर और संपत्ति के विरुद्ध ऋण शामिल था। सितंबर 2018 में बैंकों की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत थी। बीते दो वर्ष में उन्होंने अपनी बाजार हिस्सेदारी मजबूत की। बैंकों ने उन आवास वित्त कंपनियों का ऋण खरीद लिया जिनके लिए कारोबार मुश्किल हो रहा था।
दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड जो परिसंपत्ति के मामले में चौथी सबसे बड़ी आवास वित्त कंपनी है वह नाकाम हो गई। इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड और पीएनबी हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड का कारोबार भी सिमट गया है। हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनैंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड, एलआईसी हाउसिंग लिमिटेड और पीएनबी हाउसिंग के नेतृत्व वाली 20 आवास वित्त कंपनियों के पास आवास ऋण का 70 फीसदी है जबकि भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड, ऐक्सिस बैंक लिमिटेड और बैंक ऑफ बड़ौदा बैंकों में सबसे अव्वल हैं।
रिजर्व बैंक चाहता है कि 31 मार्च, 2024 तक आवास वित्त कंपनियों के पास आवास वित्त परिसंपत्ति का 60 प्रतिशत हिस्सा हो। उस वक्त तक व्यक्तिगत आवास ऋण 50 होना चाहिए। यह कैसे होगा? मार्च 2022 तक आवास वित्त कंपनियों के पास 50 फीसदी आवास वित्त परिसंपत्ति और 40 प्रतिशत व्यक्तिगत ऋण होना चाहिए। दूसरे चरण में मार्च 2023 तक कम से कम 55 फीसदी कुल परिसंपत्ति आवास वित्त में और 45 फीसदी व्यक्तिगत आवास ऋण में होनी चाहिए।
नये मानक कुछ बड़ी आवास वित्त कंपनियों मसलन इंडियाबुल्स, पीरामल कैपिटल ऐंड हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड, रेलिगेयर हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनैंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड और रिलायंस होम फाइनैंस लिमिटेड आदि को इस बात के लिए प्रोत्साहित करेंगे कि वे व्यक्तिगत मकान खरीदने वालों तक पहुंच बढ़ाकर गैर खुदरा जोखिम कम करें। नये मानक से यह भी स्पष्ट हुआ कि जिन आवास वित्त कंपनियों की अचल संपत्ति निर्माण कंपनी हैं वे मकान खरीदने वालों के साथ आंतरिक कंपनी को ऋण नहीं दे सकतीं। इंडियाबुल्स, पीरामल, टाटा कैपिटल्स हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड, गोदरेज हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड, महिंद्रा समूह समेत कई कंपनियों को नयी कारोबारी योजना बनानी होगी। इससे खुदरा ग्राहक लाभान्वित होंगे।
आरबीआई ने आवास वित्त परिसंपत्ति की परिभाषा को व्यापक किया है। इससे भी अहम बात यह कि उसने जोखिम प्रभार के मानक बदल दिए हैं। अभी हाल तक आवास ऋण जोखिम का आकलन ऋण की राशि तथा तथाकथित ऋण मूल्य अनुपात (एलटीवी) से जुड़ा था। यह अनुपात किसी खरीदार द्वारा किया जाने वाले अनिवार्य डाउनपेमेंट और कर्जदाता द्वारा विस्तारित ऋण का अनुपात होता है। मसलन पहले 30 लाख रुपये तक के कर्ज पर अधिकतम एलटीवी 90 प्रतिशत था। यानी 10 लाख रुपये के मकान के लिए अधिकतम 9 लाख रुपये कर्ज दिया जा सकता है। यदि एलटीवी 80 फीसदी या उससे कम होगा तो जोखिम भार 35 फीसदी था लेकिन 80 फीसदी से अधिक पर यह 50 फीसदी था। उच्च जोखिम भार, ज्यादा पूंजी आवंटन चाहता है और कर्जदार के लिए पूंजी की लागत बढ़ा देता है।
रिजर्व बैंक ने इस सीमा को समाप्त कर दिया है। उच्च मूल्य आवास ऋण के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था थी। 80 प्रतिशत तक के एलटीवी वाले आवास ऋण के लिए अब जोखिम प्रभार 35 फीसदी और उससे अधिक तथा 90 प्रतिशत तक के लिए 50 फीसदी है। खुदरा ऋण की परिभाषा में बदलाव के साथ ऊपरी सीमा 5 करोड़ रुपये से बढ़कर 7.5 करोड़ रुपये हो गयी है। आवास ऋण का आकार बढ़ा है। ये मानक 31 मार्च, 2022 तक मंजूर सभी नये आवासीय ऋण पर लागू होंगे।
आवास वित्त कंपनी की पूंजी आवश्यकता को मार्च 2023 तक 10 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपये किया जा रहा है। यह भी कम लग सकता है लेकिन छोटी कंपनियों की पूर्वोत्तर के साथ-साथ बिहार, ओडिशा, झारखंड और कई राज्यों के घर खरीदने वालों के लिए अहम भूमिका है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना से बाहर बाजार का विस्तार आवश्यक है।
आरबीआई ने मकान खरीदने वालों आकर्षित करने और आवास वित्त कंपनियों को प्रोत्साहित करने के की दिशा में सही कदम उठाए हैं। कुछ अन्य कदमों से बात और बन जाएगी।
आवास ऋण बाजार में प्रत्यक्ष बिक्री एजेंटों का दबदबा है। कमीशन कमाने के लिए वे लोगों को एक बैंक से दूसरे बैंक घुमाते हैं। ग्राहकों को भी कम दरों का लाभ मिलता है। लेकिन इस प्रक्रिया में बैंक के लिए अधिग्रहण की लागत बढ़ जाती है। आरबीआई ग्राहकों के लिए दो वर्ष की लॉक इन अवधि पर भी विचार कर सकता है।
कुल 102 आवास वित्त कंपनियों में से करीब 60 वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति ब्याज प्रवर्तन (सरफेसी) अधिनियम, 2002 के दायरे में आती हैं। इससे उन्हें देनदारी चूकने वाले कर्जदारों से वसूली में मदद मिलती है। नवंबर 2017 में पूर्व मॉर्गेज और मौजूदा पर्यवेक्षक नियामक राष्ट्रीय आवास बैंक ने वित्त मंत्रालय की सलाह पर आवास वित्त कंपनियों को उक्त लाभ देने के लिए चुनिंदा अर्हता तय की। तब से किसी को यह मंजूरी नहीं मिली कि वह देनदारी चूकने वालों को सरफेसी अधिनियम के तहत ले जा सके। क्या इसे सरल नहीं किया जा सकता?
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)
