करीब 15 महीने पहले हमने निजी निवेश करने का विचार किया। काफी बहस के बाद हमने यह तय किया कि इस दिशा में आगे बढ़ते हैं। हम सुनिश्चित नहीं थे कि हमें इस दिशा में आगे बढऩा चाहिए या नहीं अथवा कहीं हम गलत चयन के शिकार तो नहीं हो जाएंगे। मूल्यांकन का रुख काफी अलग नजर आया इसलिए हमने स्वयं से पूछा कि क्या हमारे पास वह मानसिक लचीलापन था जिसकी मदद से हम अपेक्षाकृत युवा कंपनियों को समझ सकें और उनमें निवेश की प्रतिबद्धता कर सकें। ज्यादातर ऐसी कंपनियां जिन्होंने कभी मुनाफा न कमाया हो। यह सवाल भी था कि कहीं हम बहुत देर से तो ऐसा नहीं कर रहे? हम ऐसे संदेहों के साथ इस क्षेत्र में घुसे। हमने अपना पहला निवेश करीब एक वर्ष पहले किया। कंपनी के साथ हमारा अनुभव अच्छा रहा। इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ा और हमने आगे देखना शुरू किया। बीते एक वर्ष के साथ हमने विभिन्न क्षेत्रों में कई लेनदेन किए तथा निजी क्षेत्र में तीन और निवेश किए। हमने खुद को अंतिम चरण में निवेश तक सीमित रखा।
इस अवधि मैंने जो देखा उसको लेकर मेरा प्रेक्षण इस प्रकार है:
1. कंपनियों तथा उनके संस्थापकों में संचालन, गुणवत्ता और खुलासों की सटीकता तथा मूल्य निर्माण की समझ का दायरा वैसा ही व्यापक है जैसा कि सार्वजनिक बाजार में। हम इस क्षेत्र में यह सोचकर गए थे कि संचालन सार्वजनिक बाजार से काफी बेहतर होगा क्योंकि ये सभी कंपनियां वेंचर कैपिटल तथा निजी इक्विटी फर्म के माध्यम से तैयार हुई थीं और संस्थापक प्राय: पहली पीढ़ी के उच्च शिक्षित मध्यमवर्गीय उद्यमी थे जो सिलिकन वैली की सफलता का अनुकरण करना चाहते थे। हालांकि यह अनुमान सही नहीं है। कंपनियां वही चुनती हैं जो वे दिखाना चाहती हैं।
अंकेक्षण की प्रक्रिया एक ही उद्योग की कंपनियों में अलग-अलग हो सकती है। यहां तक कि संचालन भी चकित करने वाला है और हालात ऐसे हैं कि सार्वजनिक बाजार की तरह यहां भी खुद ही सारी सतर्कता बरतना आवश्यक है।
2. हमारी मुलाकात हर तरह की प्रबंधन टीम से हुई। ऐसी टीम भी मिलीं जो पूंजी पर मिलने वाले प्रतिफल की पूरी समझ रखती थीं तो वहीं ऐसी भी मिलीं जो पूंजी को हल्के मे लेतीं और मानतीं कि पूंजी हमेशा उपलब्ध रहेगी। वे नकदी के इस्तेमाल को एक रणनीतिक हथियार मानतीं। उनके रवैये में अंतर इस बात पर निर्भर करता कि उन्हें शुरुआती पूंजी कितनी आसानी से या मुश्किल से मिली। जिन्हें शुरुआत में पूंजी जुटाने में मुश्किल हुई वे कभी पूंजी को हल्के में नहीं लेते और निवेश को लेकर अनुशासित रहते हैं।
3. आईपीओ बाजार का विस्तार अपेक्षित है। बाजार में ऐसी एक दो कंपनियां हमेशा होंगी जो मूल्यांकन पर जोर देंगी। बाजार भी जोर लगाएंगे। मुझे खुशी है कि बाजार नियामक ने प्रतिक्रिया देने का दबाव नहीं महसूस किया। स्टार्टअप के लिए आईपीओ दिशानिर्देश अच्छी तरह तैयार हैं तथा वे पर्याप्त संरक्षण मुहैया कराते हैं।
4. संस्थापकों को मूल्यांकन पर सतर्क रहने की जरूरत है। बैंकर अक्सर इस बात पर वजनदारी हासिल कर लेते हैं कि वे कंपनी के सार्वजनिक होने पर कीमतों के कितना ऊपर जाने का वादा करते हैं। बिकवाली करने वाले फंडों की रणनीति अक्सर आंतरिक वजहों से होती है मसलन प्रतिफल दिखाना, अगले फंड का गुणा गणित आदि। ज्यादातर मामलों में संस्थापक बिक्री नहीं करते हैं। हालांकि आईपीओ का अनुमानित मूल्यांकन अधिक होने की वजह से उनकी अपेक्षाएं अधिक हो जाती हैं। ज्यादातर संस्थापक संबंधित गतिविधियां नहीं समझ पाते हैं और आईपीओ मूल्यांकन बिक्री करने वाले फंडों के ऊपर छोड़ दिया है।
5. संस्थापकों को बैंकरों की रणनीति पर भी सतर्क रहना चाहिए जिसका इस्तेमाल कर वे कंपनी के हितों की चिंता किए बिना अपने बेहतरीन ग्राहकों को शेयर आवंटित करना चाहते हैं। बैंकर अपने बेहतरीन ग्राहकों को लाने के लिए आवंटन कई चरणों में करना चाहेंगे, खासकर एंकर बुक में आवंटन में वे फेरबदल करना चाहते हैं। वे ग्राहकों को इस आधार पर वरीयता देते हैं कि वे बैंक को कितना भुगतान करते हैं, न कि उन्होंने कितने लंबे समय तक निवेश किया है। नई कंपनियों के लिए दीर्घ अवधि तक साथ निभाने वाले निवेशकों को जोडऩा जरूरी है। ऐसे फंड हमेशा सबसे बड़े या सर्वाधिक कमीशन का भुगतान करने वाले नहीं होते हैं। 50-60 फंडों के बीच शेयर आवंटित करने के बजाय उन कुछ फंडों पर ध्यान केंद्रित करें जो कंपनी को समझने की कोशिश करते हैं। हाल में एक आईपीओ 40 प्रतिशत तक फिसल गया क्योंकि किसी भी फंड को अधिक आवंटन नहीं किया गया था इसलिए कोई भी कम कीमतों पर शेयर खरीदने के लिए आगे नहीं आया। संस्थापकों को आवंटन प्रक्रिया का नियंत्रण स्वयं हासिल करना चाहिए।
6. नियामकों को कंपनियों को उन मानकों की परिभाषा स्पष्ट करने के लिए कहना चाहिए जिस आधार पर वे परिचालन संबंधी आंकड़े दिखाते हैं। इसकी वजह यह है कि प्रत्येक कंपनी ग्राहक जोडऩे पर आए खर्च सहित विभिन्न खर्चों को अपने हिसाब से परिभाषित करती हैं। कंपनियों को भी स्वयं आगे आकर यह बताना चाहिए कि वे किस तरह निवेशकों के साथ संवाद करना चाहती हैं। इस स्थिति से बचा जाना चाहिए कि आईपीओ के वक्त कोई कंपनी यह कहे कि निवेशकों एवं विश्लेषकों के साथ संवाद करने का उसके पास समय नहीं है।
7. पिछले 12 महीनों में यह स्पष्ट हो गया है कि सार्वजनिक बाजार के निवेशक निजी बाजार के विशेषज्ञों से काफी अलग हटकर सोचते हैं। जब कोई कंपनी आईपीओ लाने की दिशा में कदम बढ़ाती है तो सार्वजनिक बाजार की विशेषज्ञता रखने वाले फंडों को लाने का अधिक लाभ मिलता है। बिकवाली करने वाले शेयरों के बजाय निर्गम खरीदने वाले शेयरों को शामिल करने से अधिक लाभ मिलता है। केवल बिकवाली करने वाले निवेशकों के बजाय निर्गम में बने रहना और बाद में भी साथ देने वाले कुछ निवेशकों की मौजूदगी भी जरूरी है।
8. निजी बाजार में अंतिम चरण में प्रतिस्पद्र्धा अधिक होती है मगर सूचीबद्धता के समय यह और अधिक बढ़ जाती है। सूचीबद्धता के समय कोई पर्याप्त आवंटन पाने की क्षमता सीमित हो जाती है।
9. सूचीबद्धता की तरफ कदम बढ़ा रहीं कंपनियों के पास जमा पूंजी हैरान करने वाली होती है। ज्यादातर कंपनियों के पास चीन से आई पूंजी और छोटे निवेशक होते हैं। सूचीबद्धता से पहले पूंजी संरचना दुरस्त करने की जरूरत होती है। छोटे निवेशक पूरी आईपीओ प्रक्रिया पर मनमाना दबाव डाल सकते हैं।
10. नए चरण में मूल्यांकन से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है। कई मामलों में विभिन्न चरणों में मौजूदा निवेशकों का दबदबा रहता है इसलिए सार्वजनिक बाजार कितना भुगतान करेगा इसका पता नहीं चल पाता है। मुझे लगता है कि सार्वजनिक बाजार यह समझने की कोशिश करेगा कि अंतिम चरण में पूंजी जुटने के बाद आईपीओ का मूल्य तय करना उनके लिए जरूरी नहीं है।
11. निवेशकों की गुणवत्ता और पूंजी लगाने वाले लोग काफी मायने रखते हैं। पाला बदलने वाले हेज फंडों के बजाय अगर आपके पास अधिक पूंजी एवं मजबूत इरादे वाले निवेशक हैं तो इससे आपकी रणनीति, समय-सीमा और दृढ़ता पर असर नहीं होता है। कारोबार के लिए अलग पूंजी अहम होती है तो ये बातें भी किसी आईपीओ की सफलता में उतनी ही कारगर होती हैं।
12. किसी कंपनी के लिए विदेश में सूचीबद्ध होने का कोई विशेष औचित्य नहीं है। भारतीय निवेशकों ने नए कारोबारी प्रारूप को महत्त्व देने में अधिक परिपक्वता दिखाई है और बाजार ने भी गहराई और नकदी का परिचय दिया है।
आईपीओ बाजार को लेकर हमारी जानकारी अब तक जितनी है उसी हिसाब से ये बातें कही गई हैं। सूचीबद्ध होने वाली कंपनियों और कारोबारी प्रारूपों की विविधता एवं किस्म को लेकर हम खासे उत्साहित हैं। इन कंपनियों के सूचीबद्ध होने से सार्वजनिक बाजारों को फायदा होगा। प्रत्येक उद्योग में आमूल-चूल बदलाव दिख रहे हैं इसलिए पूंजी बाजार को भी यह बदलाव परिलक्षित करना चाहिए।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)
