मुल्क में आज की तारीख में लाखों लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो रहे हैं। खास तौर पर श्रम आधारित निर्यात सेक्टरों में काम करने वाले लोगों के सिर पर छंटनी की गाज कुछ ज्यादा ही तेजी से गिरी है।
साथ ही, अभी लाखों लोगों के सिर पर भी छंटनी की तलवार लटकी हुई है। ऐसे में मुल्क में बेरोजगारी बीमा की जबरदस्त जरूरत महसूस हो रही है। अब तक सरकार ने जितने भी कदम उठाए हैं, उनका मकसद मंदी की मार से कंपनियों को बचाना ही रहा है।
कंपनियों को आसान कर्ज और टैक्स में छूट भी मिल रही है। लेकिन इससे हालात में ज्यादा सुधार नहीं होने वाला क्योंकि एक के बाद एक बड़ी अर्थव्यवस्था मंदी के चपेट में आ रही है। इस वजह से दुनिया भर में मांग काफी कम हो चुकी है और इसमें सुधार की गुंजाइश दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून की सीमाओं को बढ़ाना एक सही कदम हो सकता है, लेकिन लोगों को शहरी इलाकों में खास तौर पर नौकरियों से निकाला जा रहा है। वहीं उद्योगों में काम कर चुके लोग आसानी से फिर से खेती करने के लिए कतई तैयार नहीं होंगे। वो भी ऐसे हालात में जब उन्हें एक दिन के काम के बदले केवल 60 रुपये मिलें।
अगर बेरोजगार हुए लोगों को हर रोज नरेगा के तहत दिए जाने वाले 60 रुपये भी साल के 300 दिन दिए गए तो उन्हें सालाना 18 हजार रुपये ही मिलेंगे। हर एक लाख बेरोजगार लोगों के लिए इसकी एक साल की कीमत कम से कम 180 करोड़ रुपये बैठेगी।
इसे जरूरत है तो बस हर उद्योग में लागू करने की। फिर इतने बड़े कार्यबल के बीच इस बीमा के प्रीमियम को बांट दीजिए और स्कीम को किसी बाहरी मदद की जरूरत नहीं होगी। अगर यह भी कम पड़ जाए, तो सरकार इसमें अपना अनुदान भी दे सकती है।
इससे रकम दोगुनी हो जाएगी। अगर हम मान लें कि मुल्क में हर वक्त कम से कम पांच फीसदी कार्यबल भी बेरोजगार रहता है, तो भी एक महीने के लिए एक नौकरी पेशा इंसान को सिर्फ 15 रुपये प्रति महीने देने होंगे। बस इतना ही सरकार भी दे दे, तो कमाल ही हो जाएगा।
अब सभी के लिए तो 60 रुपये तो काफी नहीं होंगे, इसलिए उनका भत्ता उनके अंशदान के हिसाब से तय हो सकता है। साथ ही, इस पर एक सीमा भी लगाई जा सकती है, ताकि लोगों को बेरोजगार रहने का बहाना न मिल जाए। इस कार्यक्रम की सफलता इसके उचित क्रियान्वयन के साथ-साथ सही आंकड़ों पर निर्भर करेगी।
साथ ही अगर अनुदान को सोच-समझ कर दिया जाए तो दुरुपयोग के जोखिम और कम हो जाएंगे। इसके अलावा हर तिमाही में लाभान्वितों को इससे अलग भी किया जाए और इसकी एक तय सीमा रखी जाए जिससे कि बार-बार अनुदान न देना पड़े।
योजना में सुरक्षा मानक बनाने की जरूरत होगी ताकि जिन लोगों को काम मिल जाए, वे फिर से इसका फायदा न उठा पाएं। यही एक असली खतरा है क्योंकि संभावित लाभार्थियों की संख्या असंगठित क्षेत्र से बहुत ज्यादा होगी।
इसके लिए बेहतर ढंग से काम करने वाले एक रोजगार कार्यालय या अन्य कोई उचित व्यवस्था की जरूरत हो सकती है। साथ ही योजना और उसके लाभों का सही मूल्यांकन होना चाहिए जिससे कि कर्मचारी पेंशन योजना में जैसी खामियां दिख रही हैं, वैसी इसमें देखने को न मिलें। सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली के बिना इस योजना की सफल शुरुआत नहीं हो सकती।