हम हिंदुस्तानी बड़े जज्बाती होते हैं। हमें अपनी भावनाओं को अच्छी तरह से व्यक्त करना भी आता है और इस मामले में हम किसी से भी नहीं डरते। भरोसा नहीं होता, तो क्रिकेट मैच या फिर कोई दूसरा मौका ही ले लीजिए।
हम खुलकर और बेखौफ होकर अपने जज्बातों को बयां करते हैं। कोई हैरानी की बात नहीं, इसी वजह से हमारे ‘नाटय’ और ‘नृत्य शास्त्र’ में ‘नवरस’ का काफी अहम स्थान है। हम इसी ‘नवरस’ यानी हास्य, रौद्र, करुणा, शृंगार, अद्भुत, वीभत्स्य, शांत, वीर और भय का सहारा लेकर लोगों और उनकी भावनाओं से जुड़ते हैं।
हम आज गलाकाट प्रतियोगिता वाली दुनिया में जी रहे हैं। आज एक आम हिंदुस्तानी गृहिणी को चीजों को चुनने में तकलीफ हो रही है। उसके सामने विकल्पों का अंबार खड़ा हुआ है। वह अंबार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। अब तो संगठित रिटेल सेक्टर के देश में उतरने से विकल्पों का यह अंबार और भी तेजी से बढ़ रहा है। हर कैटेगरी में ब्रांडों की तादाद भी तेजी से बढ़ती जा रही है।
साथ ही, अब तो कई कैटेगरी के ऊपर कमोडिटी बनने का खतरा मंडरा रहा है। आज तो टेक्नोलॉजी और फाइनैंशियल जैसे तेजी से उभरते हुए सेगमेंट के नए उत्पादों में भी अंतर करना करना काफी मुश्किल हो चुका है। अगर अंतर होता भी है, तो कुछ ही महीनों के भीतर नई तकनीक या नए उत्पाद को कॉपी कर लिया जाता है।
उपभोक्ताओं और उत्पादों के समय के साथ बदलने से हर सेगमेंट के अलग-अलग सेक्टर खत्म हो गए हैं। 1990 के दशक में पसर्नल केयर सेगमेंट के बाजार में ‘हेल्थ’ और ‘ब्यूटी’ के दो सेक्टर हुआ करते थे। आज वे दो एक ही में तब्दील हो चुके हैं। जहां तक बात है कंज्यूमर डयूरेबल्स सेगमेंट यानी टिकाऊ उपभोक्ता वर्ग की तो 1990 के वक्त में दो सेक्टर हुआ करते थे।
उपभोक्ता या तो खूबसूरत उत्पादों की मांग करते थे, या फिर टिकाऊ। आज लोगों को ये दोनों खूबियां चाहिए। इस वजह से मुल्क में ब्रांड का बाजार काफी बदल चुका है। जैक ट्राउट के शब्दों में कहें तो किसी भी ब्रांड के लिए खुद को अलग दिखाना जरूरी है, नहीं तो वह खत्म हो जाएगा।
ट्राउट के पुराने साथी रीस के मुताबिक अगर कोई ब्रांड बाजार में दूसरों से अलग नहीं दिखा तो वह चुटकी बजाते ही खत्म हो जाएगा। इसीलिए अब जमाना आ गया है रोजर रीव्स के यूनिक सेलिंग प्रोपोजिशन (यूएसपी) के सिध्दांत का मतलब इस बदल रही दुनिया में फिर से निकाला जाए। इसका एक रास्ता तो ट्राउट की ब्रांड की अलग दिखाने के सिध्दांत से होकर जाता है।
अपनी कैटेगरी में हमेशा सबसे पहले बनो, उस कैटेगरी के एक हिस्से पर कब्जा बनाए रखो, अपनी विजयगाथा ग्राहकों को बारबार याद दिलाओ और अपनी अलग छवि को खुद को अलग तरीके से पेश करने में इस्तेमाल करो। हर उत्पाद के साथ एक कहानी जुड़ी होती है और इसका इस्तेमाल खुद को अलग दिखाने के लिए किया जा सकता है।
हालांकि, भारत में जज्बातों और भावनाओं को खुद को अलग दिखाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर टाटा को ही ले लीजिए। टाटा एक ऐसा ब्रांड है, जो आज की तारीख में स्टील से लेकर सॉफ्टवेयर तक बेच रही है। उसके उत्पादों की लिस्ट में चाय, नमक और कार तक शामिल है।
गोदरेज तो आज ऐसा ब्रांड बन चुका है, जो तालों से लेकर साबुन, खाद्य तेल और डिटरजेंट तक बनाते हैं। इनमें से ज्यादातर मामलों में ब्रांड लीडर को पीछे-पीछे चलते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बाजार में वह क्या बेच रहे हैं। एक मजबूत वितरण प्रणाली तो इस काम में मदद करती ही है। भारत में बाजार खानदान के नाम से चलता है, जबकि पश्चिमी मुल्कों में ब्रांड एक खास आदमी पर निर्भर करता है।
यह लोगों के अंदर के ब्रांड के प्रति भरोसे को दिखलाता है। यही है शांत रस, दिमाग की शांति जो भारतीय बाजारों में सालों के अनुभव और परिवार के नाम के साथ ब्रांड में आती है। साफ तौर पर ये ब्रांड यूएसपी से भी काफी जा चुके हैं और आज यूएसई (यूनिक सेलिंग इमोशंस) के स्तर पर जा चुके हैं।
ब्रांडिंग का पूरा धंधा ही उत्पादों के अगल-बगल कहानियों का एक पूरा ताना-बाना बुनने पर ही निर्भर करता है, ताकि लोगों को लुभाया जा सके। इन कहानियों में छुपी होती हैं, भावनाएं यानी नवरस। यही होते हैं खुद को अलग दिखाने के तरीके। आइए जरा देखें मुल्क के कुछ बड़े ब्रांडों की मिसाल। एशियन पेंट्स कहने को तो पेंट है, लेकिन इसके साथ अपनेपन की भावना भी जुड़ी हुई है। यही चीज उसे बाजार में अलग बनाती है।
‘ब्रू’ कहने को तो बस एक फिल्टर कॉफी है, लेकिन इसके साथ भी रिश्तों की असल गर्माहट की भावना जुड़ी हुई है। ‘फेवीकॉल’ मजबूती का प्रतीक बन चुका है, लेकिन इसकी जमीन से जुड़ी हिंदुस्तानी भावनाएं ही इसे इतना अहम बनाती हैं। ‘वोडाफोन’ या ‘हच’ को दूसरों से अलग करती है, उसकी सादगी और उसका स्टाइल।
‘टाइटन’ केवल एक बेहतरीन और अच्छी घड़ी है, लेकिन यह प्यार और दुलार की भावना यानी शृंगार की भावना को दिखलाती है। आज ब्रांडों की कहानी प्रचार और विज्ञापन से कहीं ऊपर जा चुकी है। आज वे अलग-अलग कार्यक्रमों का सहारा लेकर और सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करके लोगों तक बड़े स्तर से पहुंच रहे हैं। युवाओं के ब्रांड नए सितारों को साथ लेकर युवाओं की भावनाओं को जोड़ रहे हैं।
शोधों को भी यही कहना है कि उत्पाद कैसा है, इसका केवल सात फीसदी असर पड़ता है। 40 फीसदी असर तो लोगों की राय और बाकी 53 फीसदी असर लोगों का हावभाव होता है। यही चीज काम करती है ब्रांडों को बनाने के साथ। कैसे एक उत्पाद की कहानी लोगों तक पहुंचती है, यह उस ब्रांड के बारे में काफी कुछ बताता है।
आज की दुनिया में जहां 400 से ज्यादा चैनल मौजूद हैं और 15000 से ज्यादा अखबार मौजूद हैं, ब्रांड की कहानी लोगों तक जिस माध्यम से पहुंचती है, भावनाएं उसी तरह पैदा होती हैं। अब बीएमडब्ल्यू को ही ले लीजिए। उसने अपने 7.2 करोड़ डॉलर के विज्ञापन बजट का 70 करोड़ डॉलर तो इंटरनेट के वास्ते फिल्मों बनाने के लिए हुआ था। वहीं केवल दो करोड़ डॉलर का इस्तेमाल नेट के लिए किया गया।
कई कंपनियां मीडिया का इस्तेमाल खुद को अलग दिखाने के लिए भी करते हैं। फिएट की मिनी के लॉन्च के लिए एक भी टीवी विज्ञापन नहीं बनाया गया। इसके बजाए इसमें जमीन स्तर पर लोगों को लुभाया गया। आज संदेश, कहानी और माध्यम सबका इस्तेमाल खुद को अलग साबित करने के लिए किया जा रहा है। वैसे, भारत में इस तरह की ज्यादा मिसालें नहीं हैं।
ब्रांड के आस-पास कहानियों और उनको बताने का तरीका खास तौर पर ऐसा रखा जाता है कि वे लोगों को जल्दी से जल्दी लुभा सकें। वे जज्बातों को पैदा करते और फिर वे भावनाएं हमेशा के लिए ब्रांड के साथ जुड़ जाती हैं। खुद को अलग दिखाने के लिए दिल और दिमाग दोनों का इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में हम दिल पर ज्यादा जोर देते हैं, इसलिए यह एक अच्छा तरीका है लोगों को लुभाने का। हमें अब यूएसपी से आगे बढ़कर यूएसई पर जाना होगा। यह होगा लोगों को लुभाने का हिंदुस्तानी तरीका।