इस वर्ष अनुमान से अधिक राजस्व संग्रह होने के कारण सरकार की वित्तीय स्थिति बेहतर हुई है। महामारी की तीसरी लहर और उसकी वजह से आर्थिक गतिविधियों में उथलपुथल का असर पड़ेगा लेकिन इस वर्ष कर संग्रह का व्यापक रुझान बरकरार रहने की आशा है। जैसा कि ताजा आंकड़े दर्शाते हैं, नवंबर के अंत में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा बजट अनुमान के 46.3 फीसदी के बराबर था। वर्ष 2019-20 में तुलनात्मक स्तर पर यह आंकड़ा 114.8 फीसदी था। बहरहाल, अनुमान से बेहतर राजस्व संग्रह ने आयकर विभाग के उत्साह में कोई कमी नहीं आने दी और उसने अघोषित आय की तलाश जारी रखी। चालू वित्त वर्ष में उसने रिकॉर्ड तादाद में जांच की हैं। जैसा कि इस समाचार पत्र ने भी गत सप्ताह प्रकाशित किया था, अब तक विभग ने 32,000 करोड़ रुपये मूल्य की अघोषित आय का पता लगाया है। यह उत्साह बढ़ाने वाली बात है कि कर विभाग यह सुनिश्चित करने के लिए मेहनत कर रहा है कि हर व्यक्ति अपना कर चुकाए लेकिन यह भी महत्त्वपूर्ण है करदाताओं के शोषण जैसे अनचाहे परिणाम सामने न आएं।
जांच का बढ़ा स्तर देश के राजकोषीय प्रबंधन की कमी को उजागर करता है। हालांकि कर संग्रह में इस वर्ष काफी सुधार हुआ है लेकिन अभी यह देखा जाना शेष है कि यह उत्साह मध्यम अवधि में जारी रहता है या नहीं तथा इससे समग्र कर-सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात सुधरता है या नहीं। भारत का कम और स्थिर कर-जीडीपी अनुपात सरकारी वित्त पर दबाव डालता है और केंद्र एवं राज्य सरकारों की विकास योजनाओं पर व्यय की संभावना को सीमित करता है। वस्तु एवं सेवा कर के कमजोर प्रदर्शन ने हालात को खराब ही किया है तथा शायद प्रत्यक्ष कर संग्रह पर और अधिक दबाव डाला है। हाल के वर्षों में कर विभाग को जिस प्रकार अधिकार सौंपे गए हैं, इससे भी यह पता चलता है। काले धन और बेनामी लेनदेन का पता लगाने के लिए बने हालिया कानून के अलावा वित्त अधिनियम 2017 भी कर अधिकारियों को इस दायित्त्व से मुक्त करता है कि वे किसी न्यायालय के समक्ष घोषित करें कि उनके लिए कोई ऐसी खोज क्यों आवश्यक है। कर अधिकारियों को अब यह अधिकार दे दिया गया है कि अगर उनके पास इस बारे में ठोस सूचना है कि बीते तीन वर्षों में आय का आकलन छिपाया गया है तो वे ऐसी जांच कर सकते हैं। इससे जांच का स्तर बढ़ा है और यह बात करदाताओं को प्रभावित करेगी।
यह मानना होगा कि कर विभाग ने जो कुछ उजागर किया है उसका एक छोटा हिस्सा ही राजकोष तक पहुंचेगा। उदाहरण के लिए यदि 2018-19 में उसने 3,500 से अधिक मामले फाइल किए और केवल 105 में अभियोग सिद्ध हुआ। करदाताओं के साथ भी विभाग के कई विवाद चल रहे हैं। सरकार ने 2020 में विवाद से विश्वास योजना पेश की थी ताकि पांच लाख से अधिक मामलों में 9.7 लाख करोड़ रुपये की विवादित राशि का निपटारा किया जा सके। जानकारी के मुताबिक एक लाख करोड़ रुपये मूल्य के मामले निपटाए जा सके। बहरहाल, इनमें से ज्यादातर विवाद छोटी राशि के हैं और बड़े करदाता आगे नहीं आए। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि उन्हें शायद लगा कि उनका केस मजबूत है और वे लड़ सकते हैं। बड़ी तादाद में ऐसे विवाद न केवल भय और अनिश्चितता का माहौल बनाते हैं जिनसे बचना चाहिए बल्कि इससे न्यायिक क्षमता भी प्रभावित होती है तथा कर संग्रह की लागत बढ़ती है। बढ़ते डिजिटलीकरण के कारण कर विभाग के लिए वंचना का पता लगाना आसान हो सकता है। नीतिगत स्तर पर भारत को कर दायरा बढ़ाने की जरूरत है। खोज और जब्ती के द्वारा देश की दीर्घकालिक कर समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
