कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले ऋण में इस साल जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है जबकि पिछले कुछ सालों में इस ऋण में खासी बढ़ोतरी देखने को मिली थी।
वित्तीय संस्थानों के जरिए कृषि क्षेत्र को इस साल 2,80,000 करोड़ रुपये का कर्ज मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था जो पूरा होता नहीं दिख रहा। वहीं पिछले साल इस क्षेत्र को 2,43,500 करोड़ ऋण वितरित किया गया था।
ताजा सरकारी अनुमानों के अनुसार इस साल के पहले 6 महीनों में वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और दूसरे सहकारी बैंक कृषि क्षेत्र को लक्षित ऋण का महज एक तिहाई हिस्सा ही बांट पाए हैं। लक्ष्य को पाने के लिए न केवल कृषि ऋण मुहैया कराने की रफ्तार धीमी है बल्कि इस साल अब तक जितना ऋण वितरित किया गया है, वह भी पिछले साल की तुलना में कम है।
हालांकि वर्ष की दूसरी छमाही में आमतौर पर कृषि ऋण में बढ़ोतरी हो जाती है पर यह बढ़ोतरी बहुत अधिक नहीं होती है। यही वजह है कि अगर वित्त मंत्रालय बैंकिंग क्षेत्र को कृषि ऋण के वितरण में तेजी लाने के लिए कहता भी है तो भी लक्ष्य को पाना मुमकिन नहीं लगता।
और अगर इस साल लक्ष्य हासिल नहीं होता है तो यह पिछले कुछ सालों से उलट स्थिति होगी जबकि अमूमन लक्ष्य से भी अधिक ऋण का वितरण किया जाता रहा है। वर्ष 2004 में भी सरकार ने कृषि ऋण को दोगुना करने का लक्ष्य रखा था और यह समय से पहले ही पूरा कर लिया गया था।
कृषि ऋण में कमी आने के कई कारण हैं पर उनमें से दो प्रमुख हैं। पहली वजह तो बाजार में नकदी की कमी रही है और दूसरी वजह सरकार द्वारा इस साल किसानों का ऋण माफ करना है जिससे कृषि क्षेत्र में ऋण लेने की परंपरा को नुकसान पहुंचा है।
ऋण माफी के फैसले के कारण बैंक और वित्तीय संस्थान किसानों को ऋण देने से कतराने लगे थे क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि ऋण अदायगी में चूक के मामले बढ़ जाएंगे। सरकार ने भरोसा जताया था कि जिस ऋण को माफ किया गया था बैंकिंग क्षेत्र को उसका भुगतान वह खुद करेगी, पर इसमें देरी होने से हालात और बिगड़े ही हैं। बैंकों को 25,000 करोड़ रुपये की पहली खेप अभी मिली है।
सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों पर इस ऋण माफी की मार सबसे अधिक पड़ी है और उन्हें इसके एवज में महज 15,000 करोड़ रुपये दिये जा रहे हैं जो काफी नहीं होंगे। ऐसे भी देश में सहकारी बैंकों की हालत पहले से भी बहुत अच्छी नहीं है और जितने बैंक हैं भी, उनमें से कई पिछले कुछ समय में बंद हो चुके हैं। हाल ही में रिजर्व बैंक ने गुजरात के नूतन सहकारी बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया था।
वित्तीय संस्थानों से ऋण के वितरण में कमी आने से किसानों को मजबूर होकर अधिक ब्याज दर पर अनौपचारिक स्त्रोतों से ऋण लेना पड़ेगा। कृषि क्षेत्र में अधिकांश ऋण कृषि यंत्रों, खाद, बीज और कीटनाशक की खरीद के लिए लिया जाता है और अगर इसमें कमी आती है तो इससे सीधे सीधे उत्पादन प्रभावित होगा। ऋण वितरण में आई कमी को दूर करने के लिए समय से कदम उठाना पड़ेगा।