भारत के जून 2022 के श्रम आंकड़े अत्यधिक निराशाजनक हैं। रोजगार में 1.3 करोड़ की भारी-भरकम गिरावट आई है। ये मई में 40.4 करोड़ के मुकाबले जून में घटकर 39 करोड़ रह गए। यह बिना लॉकडाउन वाले किसी महीने में रोजगार में सबसे बड़ी गिरावट है। रोजगार अप्रैल और मई 2022 के दौरान 80 लाख बढ़े थे। लेकिन मई में गिरावट ने इस बढ़त से ज्यादा रोजगार का सफाया कर दिया है। असल में जून में रोजगार पिछले 12 महीनों यानी जुलाई 2021 से सबसे कम रहे हैं। जून के दौरान श्रम बाजार सिकुड़े हैं। आलोच्य महीने के दौरान करीब 1.3 करोड़ ने रोजगार गंवा दिए, जबकि बेरोजगारों की संख्या में महज 30 लाख की बढ़ोतरी हुई। शेष श्रम बाजारों से बाहर निकल गए। इसके नतीजतन जून 2022 में श्रम बल एक करोड़ घट गया।
बड़े पैमाने पर श्रम बल की इस निकासी से श्रम बल भागीदारी दर का पता चलता है, जो घटकर 38.8 फीसदी के अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई है। यह पूर्ववर्ती दो महीनों के दौरान 40 फीसदी थी। श्रम बल भागीदारी लंबे समय से 40 फीसदी के आंकड़े पर ही अटकी हुई है। जून 2020 से लेकर मई 2022 के बीच के दो साल में श्रम बल भागीदारी 39.5 से 41 फीसदी के बीच रही है। ऐसे में इसका जून 2022 में घटकर 38.8 फीसदी पर आना तेज गिरावट कहा जाएगा। श्रम बल सिकुड़ने से बेरोजगारी की दर में तेज बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसके बावजूद बेरोजगारी की दर मई में 7.1 फीसदी थी, जो जून में बढ़कर 7.8 फीसदी पर पहुंच गई। बेरोजगारी की दर हाल के समय में ज्यादातर 7 से 8 फीसदी के बीच रही है।
रोजगार की दर जून 2022 में घटकर 35.8 फीसदी पर आ गई है। यह इसका दो साल का सबसे निचला स्तर है। एक तरह से भारत में काम-धंधा करने की उम्र वाली आबादी का 36 फीसदी से भी कम हिस्सा जून 2022 में नियोजित था। रोजगार में यह तेज गिरावट और मुख्य श्रम बाजार अनुपातों में भी इतनी ही तेज गिरावट चिंताजनक हैं, लेकिन श्रम बाजार की बदहाली देश में सभी जगह नहीं है। जून में भारी गिरावट मुख्य रूप से ग्रामीण श्रम बाजार की वजह से रही। इसके अलावा यह गिरावट मुख्य रूप से अनौपचारिक बाजारों में रही। ऐसा भी हो सकता है कि यह व्यापक आर्थिक समस्या न होकर मुख्य रूप से श्रम आप्रवास का मुद्दा हो, जिससे रोजगार में गिरावट आई है। हम निम्न पैराग्राफ में इनकी व्याख्या कर रहे हैं।
पहला, जून में कुल रोजगार 1.3 करोड़ घटे हैं, जबकि ये शहरी क्षेत्रों में एक लाख बढ़े हैं। यह भारी गिरावट पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में रही।
श्रम बाजार के अनुपात जून में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बिगड़े हैं, लेकिन यह ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा स्पष्ट नजर आता है। श्रम भागीदारी दर जून में ग्रामीण भारत में 41.3 फीसदी से घटकर 39.9 फीसदी पर आ गई। यह 1.4 फीसदी गिरावट शहरी भारत की श्रम भागीदारी दर में 0.4 फीसदी गिरावट के मुकाबले काफी अधिक है। शहरी क्षेत्रों में श्रम भागीदारी दर 37.1 फीसदी से गिरकर 36.7 फीसदी पर आ गई। बेरोजगारी की दर जून में ग्रामीण भारत में 1.4 फीसदी बढ़कर 8 फीसदी पर पहुंच गई। हालांकि कस्बों और शहरों में बेरोजगारी की दर 0.9 फीसदी घटकर 7.3 फीसदी पर आ गई, जो देश में 16 महीनों में सबसे कम बेरोजगारी दर है। ग्रामीण भारत में रोजगार की दर 38.6 फीसदी से घटकर 36.7 फीसदी पर आ गई, जबकि शहरी भारत में यह लगभग अपरिवर्तित रही।
भारतीय उपमहाद्वीप में जून दक्षिण पश्चिम मॉनसून की शुरुआत का महीना होता है। इस महीने के दौरान खरीफ फसलों की बुआई रफ्तार पकड़ती है। लेकिन इस बार 15 जून तक मॉनसून छिटपुट रहा है। पहले पखवाड़े के दौरान बारिश सामान्य से 32 फीसदी कम रही। इससे खेतों में श्रमिकों का इस्तेमाल कम रहा होगा। कृषि क्षेत्र में जून में करीब 80 लाख रोजगार घटे हैं। ये रोजगार मुख्य रूप से बागानों में थे। फसल उत्पादन में 40 लाख रोजगार बढ़े हैं। यह जून 2021 और जून 2020 के मुकाबले कम बढ़ोतरी है।
रोचक चीज यह है कि पूरे कृषि क्षेत्र में रोजगार कम हुए हैं, लेकिन इस क्षेत्र से किसान के रूप में जुड़े लोगों की तादाद 18 लाख बढ़ी है। इसका मतलब है कि कृषि क्षेत्र में रोजगार में गिरावट कृषि श्रमिकों में रही। इस श्रम बल को खपाना मॉनसून की अनिश्चितताओं पर निर्भर है। मॉनसून 15 जून तक कमजोर रहा और इस अवधि में श्रम बल भागीदारी दर में गिरावट आई है। इसके बाद मॉनसून में सुधार के साथ ही श्रम बल भागीदारी दर में भी सुधार आया है। इस बात के आसार हैं कि आगामी हफ्तों में मॉनसून सुधरने के साथ ही ग्रामीण भारत में रोजगार भी सुधरेंगे।
ग्रामीण रोजगार में यह सुधार कृषि श्रमिकों के रूप में होने के आसार हैं। इस श्रम की आपूर्ति दिहाड़ी मजदूर करेंगे, जिन्होंने जून में बड़ी तादाद में रोजगार गंवाए हैं। आलोच्य महीने के दौरान 1.3 लाख करोड़ रोजगार के नुकसान में से 1.27 करोड़ लघु कारोबारी एवं दिहाड़ी मजदूरों के थे। यह नुकसान मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में हुआ। असल में ग्रामीण छोटे कारोबारियों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए रोजगार में 1.39 करोड़ की भारी-भरकम गिरावट आई है। यह नुकसान संभवतया अस्थायी था। जुलाई में बारिश सुधरने से इन श्रमिकों को श्रम बल में खपाया जा सकेगा। यह चिंताजनक है कि श्रमिकों की इतनी बड़ी तादाद मॉनसून की अनिश्चितताओं पर निर्भर है।
आंकड़ों का एक अन्य चिंताजनक बिंदु यह है कि जून 2022 में वेतनभागी कर्मचारियों के लिए रोजगार 25 लाख घटे हैं। जून में वेतनभोगी रोजगारों के लिए भी जोखिम उजागर हुए हैं। सरकार ने सैन्यकर्मियों की मांग भी घटा दी है और निजी इक्विटी वित्त पोषित नए दौर के रोजगार भी सिकुड़ने लगे हैं। बारिश का देवता इन रोजगारों को नहीं बचा सकता है। ऐसे रोजगारों को बचाने और सृजित करने के लिए अर्थव्यवस्था में उससे अधिक तेज वृद्धि जरूरी है, जितनी यह भविष्य में बढ़ सकती है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
