देश की पुरुष और महिला हॉकी टीमें सभी समाचार पत्रों के पहले पन्नेे पर हैं और उन सभी में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी अपनी विनम्र मुस्कान के साथ मौजूद हैं। पुरुष हॉकी टीम ने चार दशक के अंतराल के बाद ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने में कामयाबी पाई है लेकिन पटनायक ने अपने लिए स्वर्ण सुनिश्चित किया है। इस रक्तहीन संघर्ष में कोई राजनीति नहीं लेकिन यही तो नवीन पटनायक की राजनीति है।
उन्हें शांत, आकर्षक, आत्मालोचक और संभावित शत्रुओं तथा प्रतिस्पर्धियों के प्रति निर्मम माना जाता है। अधिकांश राजनीतिक दल और उनके नेता राजनीति का इस्तेमाल अपने शत्रुओं को किनारे लगाने के लिए करते हैं। पटनायक राजनीति का इस्तेमाल उनसे मित्रता करने के लिए करते हैं। इस प्रक्रिया में वही यह निर्णय करते हैं कि उनका प्रतिपक्ष कौन और कैसा होगा?
उदाहरण के लिए गत वर्ष राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव की बात करते हैं। पटनायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बात करने पर अत्यंत गरिमापूर्ण प्रतिक्रिया दी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के प्रत्याशी का समर्थन किया। जबकि वह अच्छी तरह जानते थे कि यदि उनका समर्थन नहीं मिलता तो वह पद विपक्ष के पास चला जाता। ऐसा प्रतीत हुआ कि ऐसा करके वह मोर्चा हारे (भाजपा ने उनके और बीजू जनता दल के खिलाफ विधानसभा चुनाव में अत्यंत भीषण अभियान छेड़ा था) लेकिन जंग जीत गए। उनका समर्थन स्वीकारने के बाद मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को शायद ही कभी ओडिशा में यह कहकर उनकी आलोचना करते देखा गया हो कि वह विशिष्ट और अधिकारप्राप्त व्यक्ति हैं। भाजपा के सबसे प्रभावशाली उडिय़ा नेता और मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार धर्मेंद्र प्रधान को अब अगला विधानसभा चुनाव (हालांकि उसमें कुछ समय है) ऐसी स्थिति में लडऩा होगा जहां उनके हाथ बंधे होंगे।
बीजद का जन्म 1997 में हुआ था। अगले वर्ष पार्टी अपनी रजत जयंती मनाएगी। पार्टी की स्थापना के समय जो लोग साथ थे उनमें से अब कोई नजर नहीं आता। विजय महापात्र जिन्हें एक समय बीजू पटनायक का राजनीतिक वारिस माना जाता था वह अब भाजपा में हैं। वह सन 1997 में नए दल का नाम तय करने वाले समूह में शामिल थे। नवीन पहली बार आस्का से लोकसभा में पहुंचे थे। उस समय तक वह सीट कुमुदिनी पटनायक के पास थी और उनके पति रामकृष्ण पटनायक एक वरिष्ठ नेता और मंत्री थे। इन्हें बीजू पटनायक का करीबी माना जाता था। इस युगल ने विदेश से लौटे नवीन को अपनी छत्रछाया में लिया। वह प्रदेश की गरीबी, वंचना और स्वास्थ्य की खराब हालत से एकदम अपरिचित थे। आज यह दंपती भी भाजपा में है और रामकृष्ण पटनायक ने 2019 में यहां तक कह दिया था कि उन्हें नवीन पटनायक पागल लगते थे, वगैरह…वगैरह।
नवीन पटनायक सन 2000 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वह चार कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और यह उनका पांचवां कार्यकाल है। सन 2014 में ओडिशा, देश भर में चल रही मोदी लहर से पूरी तरह अछूता रहा और प्रदेश की 21 में से 20 संसदीय सीटों पर बीजद सांसद जीते। पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में 21 में से केवल 12 सीट जीत सकी लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे 146 में से 112 सीट पर जीत मिली।
नवीन पटनायक ने यह कैसे किया यह बात अब तक रहस्य है। अभी कुछ वर्ष पहले तक वह सार्वजनिक रूप से उडिय़ा नहीं बोल पाते थे। उनके भाषण रोमन में लिखे जाते थे। अब वह इस दिक्कत से उबर चुके हैं लेकिन वह बहुत अच्छे वक्ता नहीं हैं। वह नौपाड़ा में बोल रहे हों, कालाहांडी में या राउरकेला में, उनके भाषण तय रहते हैं: वह यह कहकर शुरुआत करते हैं कि उस स्थान पर आकर कितने प्रसन्न हैं, स्थानीय नेताओं के बलिदान को याद करते हैं (मसलन राउरकेला में बिरसा मुंडा को), क्षेत्र में बीजूभाई के योगदान को याद करते हैं और इसके बाद अपना संदेश देते हैं।
वह एक ऐसे राज्य के मुखिया हैं जहां एक व्यक्ति को अपनी पत्नी का शव इसलिए कंधों पर उठाकर कुछ मील दूर श्मशान तक ले जाना पड़ा क्योंकि परिवहन का और कोई साधन नहीं है। यह वह इलाका है जहां भूख से मौत होना आम बात रही है। यहां एक व्यक्ति और उसके बच्चों को इसलिए जिंदा जला दिया गया था क्योंकि वह ईश्वर का काम कर रहे थे, बस उनका ईश्वर अलग था। यह वही राज्य है जहां दक्षिण कोरियाई स्टील कंपनी पोस्को जमीन का एक टुकड़ा अधिग्रहीत करने में नाकाम रही क्योंकि केवल तीर धनुष से लैस आदिवासियों ने तीव्र विरोध किया।
सवाल यह है क्या वह चुनाव जीत सकते हैं! यहां दो बातें हैं। उनकी सार्वजनिक छवि ऐसी है कि वह सत्ता, पैसे और परिवार से विरक्त हैं। उनके खिलाफ या उनके साथ करीबी का दावा करने वाले किसी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं है। जैसे ही पटनायक को ऐसा कोई संकेत मिलता है वह तुरंत ऐसे लोगों को त्याग देते हैं। ऐसे लोगों को हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया जाता है, कई नेता और अफसरशाह इसका उदाहरण हैं। यदि राजनेताओं को भ्रष्टाचार के लिए पकड़ा जाता है तो पुलिस निश्चिंत रहती है कि मुख्यमंत्री कार्यालय से कोई फोन नहीं आने वाला। दूसरी बात, ओडिशा में कम आय वर्ग के लिए एक कल्याण योजना भी है जो कारगर है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने भाजपा के किसी मुख्यमंत्री के बजाय उन्हें बधाई दी क्योंकि भुवनेश्वर 100 प्रतिशत टीकाकरण वाला पहला शहर बना और पुरी 24 घंटे जलापूर्ति वाला शहर बन गया। ऐसा प्रतीत होता है कि वह आजीवन ओडिशा के मुख्यमंत्री बने रहेंगे क्योंकि वह ओडिशा को जानते हैं और ओडिशा उन्हें जानता है।
