नैनो ने अपने उपनाम-जनता की कार (द पीपल्स कार) को बिल्कुल सार्थक किया है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार करीब 10 लाख नैनो की बुकिंग हो चुकी है।
बाजार ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि नैनो का निर्माण टाटा मोटर्स और इसके चेयरमैन रतन टाटा के लिए बड़ी उपलब्धि है। टाटा ने एक ऐसी कार की कल्पना की और इसकी डिलिवरी के लिए अपनी फौज को लगा दिया, जिसके बारे में ज्यादातर कार निर्माताओं ने ऐलान कर दिया था कि यह असंभव काम होगा।
अमेरिकी गाड़ियों में लगे कुछ डीवीडी प्लेयर की कीमत भी एक लाख रुपये से ज्यादा होती है। इस आविष्कार के केंद्र में निश्चित रूप से रतन टाटा हैं और साथ में उनकी टीम की क्षमता। टाटा ने एक दायरे से बाहर निकलकर सोचा और विभिन्न मानदंडों पर खरा उतरने वाला उत्पाद तैयार कर सपने को पूरा कर दिया।
पिरामिड की निचले सतह वाले भारत के बड़े बाजार ने दूसरे आविष्कारों को भी आकर्षित किया है। सुनील भारती मित्तल को ही देखिए, जिनके आउटसोर्सिंग के आविष्कार ने नाटकीय रूप से भारतीयों के लिए टेलीफोन की लागत कम कर दी है।
मुकेश अंबानी द्वारा पेश की गई चुनौतियों के बाद मित्तल ने दायरे से निकलकर सोचा होगा, जिसने अपने पिता धीरूभाई अंबानी की उस अवधारणा को आगे बढ़ाया जिसमें कहा गया था कि कॉल की लागत एक पोस्टकार्ड से ज्यादा नहीं होगी।
भारती एयरटेल ने ऐसे बिजनेस मॉडल का आविष्कार किया जिसके जरिए कम टैरिफ वाली चुनौतियों का सामना किया जा सके। कंपनी ने आईटी की अपनी जरूरतों को आईबीएम को सौंप दिया। साथ ही अपने नेटवर्क को एरिक्सन और नोकिया केहाथों में दे दिया।
अपनी तरह के पहले ऐसे अनुबंध के जरिए कंपनी को उन हार्डवेयर पर भी खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ी, जिन्हें उसने स्थापित किया। इसके बजाए उन्होंने इन नेटवर्क के जरिए आने वाले ट्रैफिक के लिए भुगतान किया। दुनिया भर में कई कंपनियों ने अपने-अपने बाजार में प्रतिद्वंद्वी द्वारा पेश की गई चुनौतियों से निपटने के लिए इस मॉडल को अपनाया है।
लेकिन ऐसे कम लागत वाले आविष्कार पर खुशी मनाने से पहले यह नहीं भूलना चाहिए कि यहां भी कई ऐसी चिंताएं हैं जिन पर ध्यान दिए जाने की दरकार है, जैसा कि विश्व बैंक ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है।
रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि शोध एवं विकास (आरऐंडडी) पर होने वाला घरेलू खर्च कभी भी जीडीपी के एक फीसदी को पार नहीं कर पाया है और इसका 80 फीसदी सार्वजनिक क्षेत्र से आता है। भारत में पेटेंट के लिए किए जाने वाले 50 आवेदन पत्र में से 44 विदेशी फर्मों के होते हैं और बाकी बची छह कंपनियों में भारतीय निजी क्षेत्र की दो ही कंपनियां होती हैं।
साथ ही भारत साइंस, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सालाना सात हजार से कम पीएचडी धारक पैदा कर पाता है। ये आंकड़े कह रहे हैं कि भारत के बिजनेस मॉडल सफलता से भरे पड़े हैं, लेकिन यहां आविष्कार के लिए वित्त पोषण की समस्याएं सामने आती हैं, बौध्दिक संपदा अधिकार पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता और उच्च शिक्षा व्यवस्था में खामी है। इनसे आविष्कार को प्रोत्साहन नहीं मिलता। रतन टाटा और सुनील मित्तल जैसे कम ही लोग मौजूद हैं।
