भारत और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के बीच पिछले 6 सालों से बाधाओं के साथ जो बातचीत चल रही थी, उसकी परिणति आखिर एक ठोस परिणाम के रुप में हुई है।
इसके तहत इन देशों के व्यापार मंत्रियों में मुक्त व्यापार समझौता करने पर सहमति बन गई। इस वर्ष दिसंबर में भारत-आसियान देशों के बैंकाक शिखर सम्मेलन में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। ऐसी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद इस शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे।
हालांकि किसानों और भारतीय उद्योग से जुड़े कुछ लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि इस व्यापार समझौते का आयात पर कितना प्रभाव पड़ेगा, वहीं सरकार पूरी तरह से आश्वस्त है कि इस समझौते से होने वाला फायदों की सूची इससे होने वाले नुकसान से काफी बड़ी है।
इस व्यापार समझौते से भारतीय उद्योग और कारोबार जगत को उन बड़े बाजारों में कदम रखने में सहूलियत हो जाएगी जहां विकास की असीम संभावनाएं हैं। इस बाजार के विकास की संभावनाएं इसलिए भी हैं क्योंकि एशियाई कारोबारी ब्लॉक पहले से ही चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ पहले से ही मुक्त व्यापार के लिए वार्ता कर रहे हैं।
अगर इनमें से कुछ देशों के साथ भी वार्ता सफल रहती है तो यूरोपीय संघ के ढर्रे पर एक साझा बाजार बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा जिससे सबको फायदा होगा। दोहा दौर की वार्ता विफल रहने के बाद मुक्त व्यापार समझौते को उस संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।
भारत के लिए यह व्यापार समझौता पूर्वी देशों की ओर ध्यान केंद्रित करने की नीति का एक हिस्सा भी है। आने वाले समय में इस समझौते के विस्तार की संभावनाएं भी हैं क्योंकि आसियान देशों ने निवेश और सेवा क्षेत्र में कारोबार पर समझौते को लेकर भी सहमति जताई है।
इस मुक्त व्यापार समझौते के लागू होने से इन देशों के बीच जिन उत्पादों का कारोबार होता है उनमें से 80 फीसदी पर लगने वाले शुल्क को चरणबद्ध तरीके से खत्म कर दिया जाएगा। इस समझौते से कुछ क्षेत्रों को खास तौर पर फायदा होगा जिनमें स्टील, ऑटो पुर्जे और इंजीनियरिंग उत्पाद शामिल हैं। इससे भारत को विशेष रूप से फायदा होगा।
वहीं भारत भी वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों की कुछ खास मांगों को मानने को तैयार हो गया है। पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ने ही अपने रुख में नरमी बरती है। आसियान के दूसरे सदस्य देशों ने भी भारत के सामान की नकारात्मक सूची पर अपने पुराने तेवर को थोड़ा नरम बनाया है।
परिणामस्वरूप भारत को इस समझौते के बाद यह छूट मिली है कि वह नकारात्मक सूची में 489 उत्पादों को शामिल कर सकता है। साथ ही 606 संवेदनशील उत्पादों की ऐसी सूची को भी मंजूरी दी गई है जिन पर शुल्क में आंशिक छूट दी जाएगी।
भारत के लिए अगर कोई चिंता का विषय है तो वह चाय, कॉफी, मिर्च और मसालों को लेकर है क्योंकि यहां उसे शुल्क में और छूट देनी पड़ेगी। हालांकि यह छूट आंशिक ही होगी। पाम आयल समेत दूसरे संवेदनशील उत्पादों में यह छूट बाउंड दरों पर होगी जो वास्तविक शुल्कों से काफी अधिक है।