कुछ राज्य सरकारों ने परिवार का आकार छोटा रखने वाले वाले लोगों को प्रोत्साहन देने का निर्णय लिया है और अधिक सदस्यों वाले परिवारों पर दबाव बनाने की नीति तैयार की है। राज्य सरकारों के इस निर्णय को राजनीति से प्रेरित बताकर इसकी आलोचना हो रही है। यह निर्णय राजनीति से प्रेरित हो भी सकता है। वास्तव में दुनिया में किसी भी देश या राज्य के पास आबादी नियंत्रण के लिए राजनीतिक या आर्थिक प्रोत्साहन देने वाले साधनों की कमी नहीं है। अगर आप जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाना चाहते हैं तो इसका एक सर्वाधिक उपयुक्त तरीका महिला सशक्तीकरण है। अगर अधिक से अधिक महिलाएं श्रम बल का हिस्सा बनती हैं तो जनसंख्या वृद्धि स्वत: ही कम होने लगेगी। अगर आप आबादी बढ़ाना चाहते हैं तो अधिक से अधिक संतानों को जन्म देने के लिए महिलाओं को समय एवं धन उपलब्ध करा सकते हैं।
दुनिया के कुछ हिस्सों, खासकर अफ्रीका, पश्चिम एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप जैसे क्षेत्रों में आबादी नियंत्रण करने की वाजिब वजह है। माल्थस का यह दावा सही नहीं था कि जनसंख्या वृद्धि से संसाधनों की कमी की समस्या सामने आ जाएगी। हमारी समस्या ठीक इसकी विपरीत है। हम अधिक से अधिक संसाधन तो पा सकते हैं लेकिन इसके लिए हमें पर्यावरण के भविष्य की बलि चढ़ानी होगी। मगर समस्या इससे भी बड़ी है। आर्थिक वृद्धि के लिए अब श्रम संसाधन की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं रह गई है।
वृद्धि तेज करने के लिए हमेशा युवा आबादी की जरूरत भी नहीं है। यह दो कारणों से संभव हो पाया है: पहली बात तो यह है कि पूंजी एवं तकनीक का योगदान आर्थिक वृद्धि में खासा बढ़ गया है। दूसरी बात यह है कि इन दिनों अधिकांश वस्तुओं के उत्पादन में सामग्री एवं ऊर्जा का इस्तेमाल पहले की तरह नहीं होता है। उदाहरण के लिए कार बनाने के लिए कुछ दशक पहले जितनी मात्रा में इस्पात एवं एल्युमीनियम की आवश्यकता होती थी अब उतनी नहीं होती है। ज्यादातर उपकरण पहले की तुलना में कम ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। कम सामग्री एवं प्रति इकाई ऊर्जा की खपत कम रहने के मजबूत चलन का आशय है कि भविष्य में कच्चे माल की जरूरत भी अधिक नहीं रह जाएगी।
अगर आप इन पहलुओं-सामग्री एवं ऊर्जा का कम होता इस्तेमाल और आर्थिक वृद्धि में पंूजी एवं तकनीक के बढ़ते योगदान-को ध्यान में रखें तो इस तर्क में कितना दम रह जाता है कि किसी देश की कुल आबादी में एक खास वर्ग की तादाद अधिक होनी जरूरी है? हम कम लोगों के साथ भी धन एवं आय का सृजन कर सकते हैं। समाज में युवाओं की आबादी कम रही तो भी तकनीक उनकी भरपाई कर सकती है।
एक महत्त्वपूर्ण बदलाव यह भी देखा जा रहा है कि दुनिया जैसे-जैसे अत्याधुनिक तकनीकों पर आश्रित होती जा रही है, वैसे ही कुछ खास हुनर और कौशल की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। अत्यधिक कुशल और कम कुशल लोगों की जरूरत बाजार में काफी बढ़ गई है मगर औसत हुनर, मध्यम वर्ग, मध्य आय अर्जित करने वाले लोगों की मांग कम हो रही है। जो काम पहले ये लोग कर रहे थे अब तकनीक की मदद से उन्हें बखूबी अंजाम दिया जा रहा है। सबसे निचले स्तर पर एक बुनियादी काम करने के लिए आवश्यक हुनर की जरूरत तकनीक ने कम कर दी है।
उदाहरण के लिए किसी शहर की पूरी जानकारी नहीं होने के बावजूद किस तरह ओला एवं उबर के चालक गूगल मैप और ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाते हैं। हम अब बिना बैंक शाखा गए सभी लेनदेन पूरे कर लेते हैं जो एक बेहतरीन उदाहरण है।
समस्या: कम हुनर वाली नौकरियों की भरमार रहेगी लेकिन औपचारिक और औसत हुनर वाली नौकरियों की मांग धीरे-धीरे कम होती जाएगी। अगर हम इस समस्या को दूसरे तरीके से बताएं तो इसका मतलब है कि मध्यम आय वाली नौकरी तभी बचा पाएंगे जब आप नई तकनीक से स्वयं को लैस करेंगे।
मगर अपने करियर के बीच पड़ाव में आ चुके लोगों के लिए नई तकनीक सीखना आसान नहीं है। क्या एक बैंक कर्मचारी अचानक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ बन सकता है? अगर ऐसे लाखों आदमी वास्तव में साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ बनेंगे तो क्या होगा? साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की कमाई स्विगी के डिलिवरी बॉय से बहुत अधिक नहीं रह जाएगी।
इस उदाहरण पर भी विचार किया जा सकता है कि युवा जनसंख्या में कमी का सामना करने वाले देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ताइवान और उत्तरी यूरोप के कुछ देश भविष्य में जनसंख्या में कमी का सामना करने वाले हैं क्योंकि वहां कुल प्रजनन दर (टीएफआर) कम होती आबादी की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे ऐसे देशों की वृद्धि कमजोर पड़ सकती है लेकिन तकनीक उनकी जीवन शैली को संभालने के लिए आगे आ रही है। जिन देशों में युवा आबादी तेजी से कम हो रही है वहां भी बिना अत्यधिक आव्रजन या ऊंची जन्म दर के बिना लोग अपनी सभी जरूरत पूरी कर रहे हैं।
असल समस्या भारत जैसे देशों के लिए है जहां कुल प्रजनन दर आबादी की कमी पूरी करने के लिए पर्याप्त है मगर कार्य करने वाली आबादी इतनी बड़ी है कि उनके लिए छोटी-मोटी नौकरी खोजना भी चुनौतीपूर्ण है। हम लोगों को नए हुनर सिखाने की प्रक्रिया जारी रख सकते हैं मगर यह कार्य दोधारी तलवार है। हुनर जितना अधिक अधिक होगा हुनरमंद लोगों का वेतन उतना कम होता जाएगा। इन दिनों महज एक स्नातक की डिग्री से आपको फ्लिपकार्ट का सामान पहुंचाने वाले लोगों को मिलने वाले वेतन से अधिक देने वाली नौकरी नहीं मिलेगी। अगर आप बेसिंग कोडिंग सीखते हैं तो सॉफ्टवेयर सेवा में आपको कहीं नौकरी नहीं मिलेगी क्योंकि यह काम अब स्वचालित हो रहा है। नौकरियों के बाजार में शीर्ष 10 प्रतिशत दायरे में बने रहने के लिए आपको तेजी से नया कौशल सीखना होगा।
कौशल के धु्रवीकरण वाली इस दुनिया में शीर्ष पर बने रहने के लिए लगातार कुछ न कुछ सीखना पड़ता है और जिनके पास संसाधन होते हैं वे ही ऐसा कर पाते हैं। इस संदर्भ में युवा आबादी का जमावड़ा शायद ही किसी काम का होगा, खासकर तब जब आप जिस कार्य को पूरी लगन से और संसाधन खर्च कर सीख रहे हैं उनके स्वचालित (मशीनीकरण) होने में अधिक दिन नहीं रह गए हैं।
जब किसी न किसी रूप में नौकरियां स्वचालित हो रही हैं तो निर्भरता अनुपात (डिपेन्डेंसी रेशियो)-काम करने वाली आबादी और उन पर निर्भर लोगों का अनुपात-जैसे मुद्दे उतने अहम नहीं रह जाते हैं। जरूरत का कोई काम रोबोट या किसी तकनीक से पूरा हो जाएगा और उसके लिए युवा पुरुष या महिला पर निर्भरता अधिक नहीं रह जाएगी।
अगर दुनिया के आर्थिक रूप से पिछड़े देशों में आबादी लगातार बढ़ती रही तो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में ह्रïास जैसी एक और समस्या खड़ी हो सकती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए खपत कम करनी होगी और यह तभी संभव होगा जब जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रित रहेगी। पुराने लोगों की तुलना में नए लोगों को अधिक संसाधन की जरूरत है इसलिए यह दुनिया गरीब देशों में तेजी से बढ़ती खपत बरदाश्त नहीं कर पाएगी। दुनिया को नुकसान पहुंचाए बिना भारत दुनिया के विकसित देशों की जीवन शैली नहीं अपना सकता है। यह मुकाम हासिल करने वाला चीन आखिरी बड़ा देश था।
तकनीक के तेजी से विकास और जलवायु परिवर्तन के इस दौर में युवा एवं तेजी से बढ़ती आबादी का तर्क कमजोर पड़ता जा रहा है।
हमें जनसंख्या में कुछ वृद्धि की जरूरत है मगर प्रति महिला 2.1 संतान का पुराना मानक अब तर्कसंगत नहीं रह गया है। हमें जनसंख्या वृद्धि दर में तेजी से कमी लाने की जरूरत है और इसका बेहतरीन उपाय महिलाओं के सशक्तीकरण पर अधिक जोर देना है। बाकी चीजें मायने नहीं रखती हैं। अगर हम स्वयं आबादी पर नियंत्रण नहीं करेंगे तो प्रकृति यह कार्य करेगी।
(लेखक स्वराज्य पत्रिका में संपादकीय निदेशक हैं।)