आखिरकार यह पता चल ही गया कि विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से शॉर्ट सेलिंग, शेयर बाजार में तेज गिरावट की असल वजह नहीं थी।
सरकारी आंकड़ों की मानें तो आठ अक्टूबर तक बाजार में मौजूद 224 कंपनियों के 10000 करोड़ शेयरों में से केवल 19.2 करोड़ शेयर ही उन्होंने बेचे थे। यह कुल बाजार का बस 0.2 फीसदी हिस्सा है।
इससे भी बड़ी बात यह है कि 10 में से नौ मामलों में जब बाजार में जबरदस्त गिरावट आई तो 10 हजार में से केवल एक या दो शेयरों को बेचकर उसकी कीमत विदेशों में भेजी गई। सिर्फ एक मामले में ही विदेशी संस्थागत निवेशकों ने किसी कंपनी के एक फीसदी से ज्यादा शेयर बेचे।
वह कंपनी है आईसीआईसीआई बैंक, जिसके करीब 1.27 करोड़ शेयर विदेशी निवेशकों ने बेचे। तो इस तरह इन आंकड़ों ने साबित कर दिया है गिरावट की असल वजह बिकवाली नहीं थी। कम से कम आठ अक्टूबर तक तो कतई नहीं।
अगर यह आंकड़े कुछ ज्यादा लंबी अवधि के होते तो एक बेहद रोमांचक तस्वीर सामने आ सकती थी। असल में, आठ अक्टूबर के बाद से बाजार को काफी झटके लग चुके हैं। मिसाल के तौर पर 10 अक्टूबर के दिन को ही ले लीजिए। उस इकलौते दिन के कारोबार में आईसीआईसीआई बैंक के शेयरों की कीमत में 27 फीसदी की गिरावट आ चुकी थी।
बाजार के बंद होते-होते इस शेयर की कीमत 20 फीसदी तक गिर चुकी थी। आठ से लेकर 24 अक्टूबर के बीच के 12 कारोबारी दिनों में सेंसेक्स में 23 फीसदी की गिरावट आ चुकी थी। 24 अक्टूबर वही दिन है, जब सेंसेक्स में एक हजार अंकों की गिरावट आई थी और वह 8701 अंकों के साथ साल के न्यूनतम स्तर पर बंद हुआ था।
लेकिन इससे कुछ दिनों पहले ही सेबी ने विदेशी निवेशकों की निकासी रोकने में अपनी पूरी ताकत डाली। इस तरह से उन्होंने एक नई तरह की शुरुआत कर डाली। इसलिए अगर ये आंकड़े लंबी अवधि के भी होते तो भी कोई खास असर नहीं पड़ने वाला था।
लेकिन इन आंकड़ों में सेबी के पार्टिसिपेटरी नोट्स से जुड़े उन कदमों की कोई आलोचना नहीं की गई है, जिससे शेयरों को उधार पर लेने-देने के काम में विदेशी खिलाड़ियों को देसी निवेशकों के मुकाबले ज्यादा तवज्जो मिली।
यह बात अब साफ हो चुकी है कि विदेशी फंडों को रुपये की तेजी से कमजोर हो रही सेहत के मद्देनजर मुल्क में अपने निवेश को उगाहकर बाहर निकलने की जल्दी पड़ी थी। नगदी की जबरदस्त कमी से जूझ रही इस दुनिया में अगर वे अपने घाटे को कम करके जल्दी से जल्दी भागने की सोच रहे थे, तो इसमें गलत क्या था? यही तो वे कर भी रहे थे।
नौ से लेकर 24 अक्टूबर के दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब 2.3 अरब डॉलर के स्टॉक बेच डाले, जो इस पूरे साल की बिक्री का 20 फीसदी है। विदेशी संस्थागत निवेशक जनवरी से लेकर अब तक हिंदुस्तानी कंपनियों के पूरे 12.6 अरब डॉलर कीमत के शेयरों को बेच चुके हैं।
ऐसी हालत में सबसे ज्यादा बुरी गत तो देसी संस्थागत निवेशकों, खासतौर पर म्युचुअल फंडों की है। इस तूफान में वे बेसहारा रह गए हैं। इसलिए बाजार की इतनी बुरी गत है तो किसी को इस पर हैरान नहीं होना चाहिए।