पिछले सप्ताह प्रमुख बिजनेस पत्रिका कोंडे नैस्ट पोर्टफोलियो में छपी विश्व के सर्वाधिक असफल सीईओ (मुख्य कार्याधिकारियों) की सूची पर कुछ ही लोगों को आपत्ति हो सकती है।
लीमन बदर्स के डिक फुल्ड, एनरॉन के केन ले और यहां तक कि सिटी बैंक के विक्रम पंडित को इस सूची में जगह मिली है (कुछ लोग पंडित पर असहमत हो सकते हैं। इस सूची में उनकी रैकिंग काफी पीछे है। क्योंकि उन्हें विरासत में सब कुछ ठीकठाक नहीं मिला था। )
लेकिन आश्चर्य तो कोंडे नैस्ट की दुनिया के बेहतरीन सीईओ की सूची में शीर्ष स्तर पाने वाले व्यक्ति के नाम पर हुआ। शीर्ष स्थान पर फोर्ड मोटर्स के हेनरी फोर्ड मौजूद हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि फोर्ड एक महान उद्यमी थे और उनकी कारोबारी दूरदर्शिता भी जबरदस्त थी।
लेकिन, अगर पिछली करीब एक शताब्दी पर नजर डालें तो इस बात पर निश्चित तौर से सवाल उठाया जा सकता है कि क्या वह एक अच्छे सीईओ थे। निश्चित तौर से मॉडल टी के जरिए व्यक्तिगत परिवहन उद्योग में क्रांति लाने के लिए फोर्ड को पुरस्कार मिल सकता है।
प्यार से टिन लिजी (सस्ती कार) बुलाए जाने वाला मॉडल टी अल्पविकसित कन्वेयर बेल्ड प्रौद्योगिकी पर आधारित पहला ऐसा वाहन था, जिसका बड़े पैमाने पर उत्पादन किया गया। और इस आधार पर ही आज की अत्याधुनिक कारें बनाई जा रही हैं। (यद्यपि टोयोटा ने बाद में इस अवधारणा को अनूठे और क्रांतिकारी ढंग से आगे बढ़ाया।)
टिन लिजी के बारे में मशहूर था ‘अगर आपको सिर्फ काला रंग ही चाहिए तो यह काल किसी भी रंग में उपलब्ध है’। बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए एकरूपता जरूरी थी।
फोर्ड इस बात को अच्छी तरह से समझते थे कि उत्पादन श्रृंखला में लागत को कम करके एक वाजिब कीमत वाला एक ऐसा उत्पाद तैयार किया जा सकता है, जिसकी बिक्री बड़े पैमाने पर होगी। उनकी कोशिश उस दौर की दूसरी कारों के मुकाबले अधिक बेहतर कार बनाने की थी। दूसरी कारों को केवल धनी लोग ही खरीद सकते थे।
जैसा कि सी के प्रह्लाद ने कहा है कि फोर्ड ने तस्वीर को उलट कर रख दिया। वह एक ऐसी कार बनाना चाहते थे जिसे उनके मजदूर भी खरीदने की क्षमता रखते हों। परिणाम: जब वह 1918 में सेवानिवृत्त हुए तो उस समय अमेरिकी में कारों की कुल बिक्री में फोर्ड की आधी हिस्सेदारी थी (ज्यादातर मॉडलों को टिन लिजी का आधुनिक संस्करण माना गया) और कंपनी दुनिया के दूसरे महत्त्वपूर्ण बाजारों में सबसे आगे थी।
फोर्ड मोटर कंपनी दुनिया की सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों की सूची में शामिल थी और उनका नकद भंडार एक अरब डॉलर का था (जो आज के मानकों के मुताबिक बहुत अधिक है)। इसके बावजूद, एक शीर्ष सीईओ के तौर पर उनके दर्जे पर संदेह क्यों होना चाहिए?
कोंडे नैस्ट पोर्टफोलियो के सर्वेक्षण में बी-स्कूलों के प्रोफेसरों से मूल्यों को स्थापित करने या बिगड़ने, इनोवेशन और प्रबधंन क्षमता या इसकी कमी के लिए प्रत्येक सीईओ के रिकार्ड पर विचार करने के लिए कहा गया। निश्चित तौर से फोर्ड मूल्यों को स्थापित करने और इनोवेशन के मानकों पर खरे उतरते हैं।
लेकिन प्रबंधन क्षमता के लिहाज से उनका प्रदर्शन बुरा रहा है, और सिर्फ इस आधार पर ही वह सर्वश्रेष्ठ सीईओ की पदवी पाने के लायक नहीं रह जाते हैं। किसी सीईओ की वास्तविक सफलता सिर्फ इनोवेटिव और सफल संगठन तैयार करने से ही नहीं तय होती है, बल्कि यह तय होती है एक टिकाऊ संस्थान तैयार करने से।
फोर्ड ने दूसरी आवश्यकता को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है और कारोबार को निरंकुशता के साथ चलाया और जब वह सेवानिवृत्त हुए तो उनके अक्षम बेटे एडसल कार्यभार संभाल लिया। यह परिवर्तन एक मुश्किल वक्त में नहीं हुआ था। लेकिन खासकर जनरल मोटर्स से प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण कंपनी पर दबाव बढ़ा।
उनके सेवानिवृत्त होने के एक दशक बाद, फोर्ड घाटे में चली गई और अमेरिकी ऑटोमोबाइल बाजार में उसकी स्थिति घटकर तीसरे स्थान पर आ गई। फोर्ड का कारोबार जिस तेजी से चढ़ा था उसी तेजी से गिर गया। ऐसा परिवारवाद पर आधारित कारोबार मॉडल के कारण हुआ, जिसे कंपनी के संस्थापक ने बढ़ावा दिया था।
उस दौर में इस बारे में सोचना मुश्किल था लेकिन फोर्ड ने कभी भी प्रबंधकों और प्रबंधन की जरूरत को महसूस ही नहीं किया। उनका मानना था कि कारोबार का संचालन ‘सहायकों’ की मदद से मालिक द्वारा किया जाता है। ये ‘सहायक’ आमतौर पर फोर्ड के फैसलों को लागू करने का काम करते थे। किसी सनकी राजा की तरह वह एकतरफा फैसला करने वाले अपने प्रबंधकों पर आग बबूला हो जाते थे।
पीटर डुकर इस स्थिति की व्याख्या इस तरह की है – एक नियंत्रित प्रयोग एक कुप्रबंधन है। उन्होंने लिखा है, ‘हेनरी फोर्ड प्रबंधकों और प्रबंधन में बदलाव की जरूरत को समझने में असफल रहे क्योंकि उनका मानना था कि वास्तव बड़े और जटिल कारोबारी उद्यम दरअसल एक व्यक्ति की मेहनत का ही नतीजा होते हैं।’
यह कोई संयोग नहीं है कि 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, जनरल मोटर्स के एल्फ्रेड पी. स्लोअन ने फोर्ड का सामना करने के लिए छोटी कंपनियों के जरिए अपने संगठन को तैयार किया और शीर्ष कंपनी को पीछे छोड़ने के लिए बेहतरीन प्रबंधकों की टीम तैयार की और हमेशा के लिए नेतृत्वकर्ता बन गए (स्लोअन को कोंडे नैस्ट पोर्टफोलियो की सूची में चौथा स्थान दिया गया है)।
और यह भी कोई संयोग नहीं है कि 20 साल बाद फोर्ड को पौत्र हेनरी फोर्ड द्वितीय ने अपने दादा के सहायकों को बाहर करते हुए प्रबंधकों के एक दल को तैनात किया है। यह सुप्रसिद्ध कहानी भारतीय कारोबार के संदर्भ में भी हमें सतर्क करती है क्योंकि भारतीय उद्यम परिवारों द्वारा संचालित किए जाते हैं।
निश्चित तौर से इनमें से ज्यादातर दूरदृष्टा और तेज-तर्रार हैं तथा वैश्विक स्तर के मुकाबले में खुद को साबित कर सकते हैं। लेकिन एक सवाल यह भी है कि क्या मजबूत और टिकाऊ संस्थान अपने प्रवर्तक परिवारों को किनारे कर पाएंगे।
